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पेड़-पौधों और प्रकृति के प्रेमी तो आपने कई देखे होंगे लेकिन एक शख्स ने अपने इस प्रेम को दिल खोलकर जाहिर किया है. हरियाणा के करनाल स्थित घर में पेड़-पौधे लगाने की जगह नहीं बची तो प्रकृति प्रेमी रामनिवास ने घर की छत को फूलों के बगीचे में तब्दील कर दिया. जिसे देखने के लिए आसपास के लोगों के अलावा देशभर से प्रकृति प्रेमी पहुंच रहे हैं. फूल पौधों की प्रजातियों को विलुप्त होने से बचाने के लिए छत पर एक नहीं बल्कि पूरे 5 हजार गमलों में विभिन्न फूलों सहित सब्जियों के पौधे लगाएं गए हैं. जो लोगों के लिए चर्चा का विषय बने हुए हैं. यहां आकर लोगों को सुकून मिलता है और प्रकृति से जुड़ने का एहसास होता है.
8 गमलों से की थी शुरुआत
प्रकृति प्रेमी रामनिवास ने बताया कि उन्हें बचपन से ही प्रकृति से बहुत प्यार रहा है. जब वे करनाल में रहने आए तो उनके घर पर पेड़ पौधे लगाने की जगह तक नहीं थी तब उन्होंने ठान लिया कि वो प्रकृति से दूर नहीं जा सकते. इसी सोच को देखते हुए 8 गमलों को घर की छत पर लगाया और उनमें फूलों के पौधे लगाकर प्रकृति से जुड़े. फिर बढ़ते-बढ़ते 5 हजार गमलों में विभिन्न वैरायटियों के फूल और सब्जियों के पौध लगाए और अब घर की छत बगीचे में तब्दील हो चुकी है. लोग सुबह शाम यहां पर आकर प्रकृति की सुंदरता को अनुभव करते है, जो भी यहां पर आता है, प्रकृति से जुड़ने का संकल्प लेकर जाता है.
तनाव से मुक्ति के लिए प्रकृति की शरण जरूरी
उन्होंने बताया कि थकान मिटाने के लिए लोग प्रकृति की शरण में जाते हैं, जैसे पहले राजा-महाराजा भी तनाव से मुक्ति पाने के लिए जंगलों में जाते थे. प्रकृति की शरण में जाकर उन्हें अच्छा लगता था. आजकल भी वैसा हो रहा है, लेकिन इस वक्त पूरा शहर कंक्रीट के जंगल में बदल गया है. शहर में ऐसी कोई जगह नहीं है, जहां पर पेड़-पौधे रोपित किए जा सकें. जो लगे है, उन्हें भी विकास के नाम पर काटा जा रहा है. ग्रीन बेल्ट और बड़े पार्क को छोड़कर कोई जगह ऐसी नहीं है, जहां पर प्रकृति का एहसास हो. सड़कों के किनारे, घर के आगे सब कुछ कंक्रीट का हो चुका है.
इसे बदलने के लिए लोगों को घर की छत पर ही मिनी गार्डन बनाना चाहिए, इसके लिए ज्यादा परिश्रम करने की आवश्यकता भी नहीं होती. कुछ गमलों में फूलों के पौधे लगाएं जा सके हैं, जो उनके लिए सुकून देने वाला होगा. अगर ऐसा नहीं हुआ तो जो फूलों के पौधे आज दिखाई दे रहे है, वे आने वाले दिनों में विलूप्त हो जाएंगे इसलिए पृथ्वी को बचाना है तो प्रकृति की तरफ मुड़ना ही पड़ेगा.
(इनपुट-कमाल)