बिहार के गया के दशरथ खुद छेनी और हथौड़ी लेकर पहाड़ काटने निकल पड़े थे. 1960 से लेकर 1982 तक एक पहाड़ को छेनी और हथौड़ी से काटते रहे. 22 साल में उन्होंने लोगों के आने जाने के लिए अच्छी-खासी सड़क बना डाली.
अब झारखंड को भी अपने दशरथ मांझी मिल गए हैं. देवघर के रहने वाले समीर अंसारी नाम के एक किसान ने. समीर ने 5 साल पहले अपने गांव को पानी की समस्या से निजात दिलाने के लिए तालाब खोदने का बीड़ा उठाया था. उन्होंने तख्तियों में जल संचय का संदेश लिख लोगों से पानी बचाने का आग्रह किया. इनकी इस पहल का लोगों ने शुरू में मज़ाक उड़ाना शुरू कर दिया. लेकिन समीर अंसारी जल संचय के अपने जुनून से डिगे नहीं.
बता दें कि घर के समीप बहने वाली डढ़वा नदी की साफ-सफाई से इसकी शुरुआत करने की कोशिश की. वहां इन्हें लोगों के ताने सुनने पड़े.अंत में समीर ने अपने घर के समीप खाली पड़े बड़े से भूभाग पर तालाब खोद कर वर्षा का जल उसमे संचित करने की ठान ली.
समीर रोज सुबह अपने फावड़े के साथ वहां पहुंच जाते और अकेले ही धरती का सीना चीर कर तालाब खोदने के काम में जुट जाते. तालाब खोदने के समीर की जिद्द का उनके परिवार में भी विरोध शुरू हो गया. घर में बूढ़ी मां के अलावे पत्नी और दो बच्चे थे. किसी तरह उनके खाने भर का जुगाड़ हो जाता था. समीर के इस तरह तालाब खोदने के जुनून को देख लोग उसे पागल कहने लगे थे. लेकिन इन सब की परवाह किये बगैर समीर रोज सुबह से शाम तक तालाब खोदने के काम में ईमानदारी के साथ जुटे रहते थे.
कुछ महीने की कड़ी मेहनत के बाद समीर को तालाब का एक खाका दिखने लगा. दोगुने उत्साह के साथ समीर ने अपना प्रयास जारी रखा. समीर ने अकेले अपने दम पर तालाब खोद कर तैयार कर लिया. पिछले वर्ष बारिश के मौसम में जब बर्षा के पानी से तालाब लबालब भर गया,तब उसकी खुशी का ठिकाना नहीं था.
समीर की इस उपलब्धि की गूंज दूर-दूर तक गई और उसके इस प्रयास के लिए उसकी सभी ओर प्रशंसा हो रही है. समीर की इस उपलब्धि के लिए बीते 30 मार्च को भारत सरकार के जलशक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने उन्हें नई दिल्ली में आयोजित एक कार्यक्रम में जल प्रहरी के सम्मान से भी नवाजा है.
(रिपोर्ट: सत्यजीत कुमार और धनंजय भारती)