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यूपी के इस शहर में महिलाओं का खुद का बैंक, जहां कर्ज में पैसा नहीं मिलता है अनाज

गांव में लोग अनाज बैंकों से कर्ज लेकर खाद्यान्न लेते हैं, जिसे उन्हें फसल कटने के समय वापस करना होता है. ये अनाज बैंक गांव में छोटे पैमाने पर संचालित होते हैं और लोन ज्यादातर परिचितों और करीबी दोस्तों को दिया जाता है, लेकिन ये बैंक न केवल अनाज बल्कि शादी और आपातकालीन जरूरतों में भी मदद कर रहे हैं.

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anaj bank
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यूपी के कानपुर जिले के कई गांवों में महिलाओं ने खुद को आत्मनिर्भर बनाने और अपने साथियों की मदद के लिए कई अनाज बैंक खोले हैं. ऐसे 100 से अधिक अनाज बैंक कई संस्थाओं द्वारा संचालित किये जा रहे हैं. इन निजी संस्थाओं का गठन गांव और मोहल्ले की महिलाओं ने किया है. यह महिलाएं अनाज बैंक के माध्यम से एक दूसरे की मदद करने का काम करती हैं.
  
गांव में लोग ऐसे अनाज बैंकों से कर्ज लेकर खाद्यान्न लेते हैं.  फसल कटने के वक्त उस अनाज को वापस करना होता है. ये अनाज बैंक गांव में छोटे पैमाने पर संचालित होते हैं. अनाज के रूप में लोन ज्यादातर परिचितों और करीबी दोस्तों को दिया जाता है.  ये बैंक न केवल अनाज बल्कि शादी और आपातकालीन जरूरतों में भी मदद कर रहे हैं. कानपुर के शिवराजपुर प्रखंड के पडराहा गांव की रहने वाली सिया दुलारी एक महिला स्वयं सहायता समूह की अध्यक्ष हैं और एक अनाज बैंक भी चला रही हैं.

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सिया के मुताबिक, 5 से 6 साल पहले उन्होंने कुछ सामाजिक संस्थाओं की मदद से एक अनाज बैंक की स्थापना की, जो अब इस बैंक से जुड़ी महिलाओं की बेटियों की शादी में अनाज और पैसों से मदद कर रहा है.

वह कहती हैं कि गांव में छोटे पैमाने और ज्ञान की कमी के कारण लोग सरकारी संसाधनों से मदद लेने से कतराते हैं और लंबी प्रक्रिया और कागजी कार्रवाई के बाद भी उन्हें पूरा विश्वास नहीं होता. ऐसी स्थिति में अनाज बैंक स्थानीय स्तर पर गठित किया गया है, जिससे कई घरों को लाभ हुआ है और धीरे-धीरे कई गांवों में बड़ी संख्या में महिलाएं ऐसे बैंकों से जुड़ रही हैं.

अब इसके साथ ही कई अनाज बैंक भी इन महिलाओं को जैविक खेती का प्रशिक्षण दे रहे हैं. किसानों को बिना पैसे के बीज बैंक से बीज दिया जाता है, जिसे फसल तैयार होने पर वापस करना होता है. जैविक खेती तेजी से लोकप्रिय हो रही है, इसे अपनाने से मिट्टी की उर्वरता लंबे समय तक बनी रहती है और इसे करने की लागत भी कम आती है.

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