Kisan Andolan: केंद्र सरकार के तीनों कृषि कानूनों को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को वापस लेने का ऐलान किया है. पीएम मोदी ने आज सुबह 9 बजे राष्ट्र के नाम संबोधन करते हुए यह अहम घोषणा की. मालूम हो कि पिछले साल सरकार ने संसद में तीन नए कृषि बिलों को पारित करवाया था, जिसके बाद यह कानून बन गया था. तब से ही दिल्ली की विभिन्न सीमाओं पर पश्चिमी यूपी, पंजाब, हरियाणा के बड़ी संख्या में किसान आंदोलन कर रहे थे. किसानों की मांग इन कानूनों को रद्द करने और एमएसपी पर कानून बनाने की थी. गुरु नानक जयंती के अवसर पर पीएम मोदी ने लोगों को संबोधित करते हुए कहा, ''भले ही किसानों का एक वर्ग इसका (कृषि कानूनों) विरोध कर रहा था. हमने बातचीत का प्रयास किया. यह मामला सुप्रीम कोर्ट में भी गया. हमने अब कृषि कानूनों को वापस लेने का फैसला किया है.'' पीएम मोदी ने किसानों से अपील की, आप अपने अपने घर लौटे, खेत में लौटें, परिवार के बीच लौटें, एक नई शुरुआत करते हैं. किसानों का यह आंदोलन पिछले लगभग एक साल से चल रहा था. जानिए इसके पिछले एक साल के अहम पड़ाव...
1- कृषि कानूनों के बाद शुरू हुआ आंदोलन
पिछले साल बनाए गए तीन नए कृषि कानूनों के बाद आंदोलन की शुरुआत हुई. तीन नवंबर को पंजाब और हरियाणा में किसान संघों ने 'दिल्ली चलो' आंदोलन का आह्रवान किया. इसके बाद 27 नवंबर, 2020 को इन राज्यों की बड़ी संख्या में किसान दिल्ली की विभिन्न सीमाओं की ओर बढ़े, लेकिन सिंघु बॉर्डर पर आंसू गैस के गोले छोड़े गए. पुलिस और किसानों के बीच आमना-सामना हुआ और उन्हें वहीं रोका जाने लगा. हालांकि, बाद में किसान आगे बढ़ने में कामयाब हुए. उधर, गाजीपुर बॉर्डर पर भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत समेत पश्चिमी यूपी के नेताओं ने यहां अपना डेरा जमा लिया. इसके बाद किसानों की संख्या में लगातार इजाफा होता गया.
2- केंद्र सरकार और किसानों के बीच बातचीत का चला दौर
पंजाब में कृषि कानूनों के विरोध के दौरान ही केंद्र सरकार और किसानों के बीच बातचीत का दौरा शुरू हो गया था. पहली बातचीत 14 अक्टूबर, 2020 को हुई. इसके बाद एक दिसंबर को किसान नेता और सरकार के मंत्री फिर बैठे, लेकिन इस बार भी बातचीत बेनतीजा रही. तीसरी बैठक तीन दिसंबर को हुई. इसके बाद पांच दिसंबर को किसानों के साथ केंद्र सरकार की चौथे दौर की बैठक हुई. आठ दिसंबर को पांचवीं वार्ता हुई, इसी दिन किसानों ने भारत बंद का आह्वान किया था. 30 दिसंबर को छठे दौर, चार जनवरी को सातवें दौर की जबकि आठ जनवरी को आठवें दौर की किसानों और सरकार के बीच वार्ता हुई. 15 जनवरी को नौवीं बार सरकार के साथ वार्ता हुई.
3- 10वें दौर की वार्ता में कानूनों को निलंबित करने पर हुआ विचार
20 जनवरी को 10वें दौर की वार्ता हुई, जिसमें सरकार ने कृषि कानूनों को डेढ़ से दो साल के लिए निलंबित करने और कानूनों पर विचार करने के लिए समिति के गठन का सुझाव दिया. हालांकि, किसानों ने इसे खारिज कर दिया. इसके बाद 22 जनवरी, 2021 को किसानों और सरकार के बीच 11वें दौर की वार्ता हुई. सरकार और किसानों के बीच अब तक 11 दौर की बातचीत हो चुकी थी.
4- 26 जनवरी को हुआ हिंसक आंदोलन
सरकार से चल रही बातचीत के बीच ही किसान संगठनों ने 26 जनवरी को ट्रैक्टर रैली निकालने का ऐलान किया. गणतंत्र दिवस के दिन बड़ी संख्या में ट्रैक्टर-ट्रॉली पर पहुंचकर किसानों ने विरोध जताया. किसान संगठनों ने दिल्ली में 26 जनवरी की ट्रैक्टर रैली के लिए पुलिस से इजाजत मांगी थी. दिल्ली पुलिस और किसान संगठनों के बीच हुई वार्ता में आउटर रिंग रोड पर रैली निकालने की अनुमति मिली. पुलिस ने ट्रैक्टर रैली के लिए बाहरी दिल्ली के रूट तय किए, लेकिन आंदोलनकारियों में से कुछ लोग उग्र हो गए. दिल्ली के आईटीओ, लालकिला, नांगलोई समेत दिल्ली के अलग-अलग इलाकों में हुई हिंसा और उपद्रव हुआ. इस दौरान लाल किले पर धार्मिक झंडा भी फहराया गया, जिसे लेकर काफी विवाद हुआ. बाद में दिल्ली पुलिस ने इस मामले में कई एफआईआर भी दर्ज की और कुछ लोगों को गिरफ्तार किया गया.
5- ...जब राकेश टिकैत के निकले आंसू, तेज हुआ आंदोलन
26 जनवरी को हुई हिंसा के बाद लगने लगा कि आंदोलन शायद खत्म हो जाएगा. इस बीच कुछ किसान संगठनों ने भी अपने आप को आंदोलन से पीछे कर लिया. वहीं, 28 जनवरी को भारतीय किसान यूनियन के प्रवक्ता राकेश टिकैत बातचीत के दौरान भावुक हो गए, जिसके बाद पूरा मामला पलट गया. कुछ ही समय में राकेश टिकैत के निकलते हुए आंसू वाला वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया, जिसके बाद रात में ही बड़ी संख्या में किसान गाजीपुर बॉर्डर पहुंचने लगे. सुबह तक पूरा माहौल बदल गया और किसानों की संख्या में काफी इजाफा हो गया.
6- ग्रेटा थनबर्ग ने किसान आंदोलन पर किया ट्वीट
किसान आंदोलन पर कई अंतरराष्ट्रीय हस्तियों की भी प्रतिक्रिया सामने आईं, जिसका सरकार ने विरोध किया. चाइल्ड एक्टिविस्ट ग्रेटा थनबर्ग ने किसान आंदोलन के पक्ष में ट्वीट किया, जिसमें एक टूलकिट नाम का एक डॉक्यूमेंट शेयर हो गया था. इसके बाद कई बॉलीवुड सितारों, क्रिकेटर्स, नेताओं ने टूलकिट पर ग्रेटा थनबर्ग का विरोध किया. वहीं, इसी मामले में बाद में 21 साल की छात्रा और पर्यावरण एक्टिविस्ट दिशा रवि को भी गिरफ्तार किया गया. कुछ दिनों के बाद उन्हें कोर्ट ने जमानत दे दी.
7- सुप्रीम कोर्ट पहुंचा मामला
किसानों के लगातार विरोध के बाद पूरा मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया, जहां पर कई दौर की सुनवाई चली. कोर्ट ने 11 जनवरी को तीनों कृषि कानूनों पर रोक लगाने का आदेश दिया और इस मामले में चार सदस्यीय कमेटी का गठन किया. हालांकि, इसके बाद किसान नेता भूपिंदर सिंह मान ने इससे खुद को अलग कर लिया था. इस तरह से कमेटी में कृषि विशेषज्ञ अशोक गुलाटी, डॉ. प्रमोद कुमार जोशी और अनिल धनवत शामिल रहे. बाद में कमेटी में शामिल हुए सदस्यों पर भी किसान नेताओं समेत कइयों ने सवाल खड़े किए.
8-बंगाल चुनाव में पहुंचे किसान नेता
किसान नेताओं ने अपना विरोध तेज करते हुए बीजेपी के खिलाफ बयान देना शुरू कर दिया. इसके बाद बंगाल में हुए विधानसभा चुनाव में किसान नेता राकेश टिकैत समेत अन्य नेता पहुंचे और बीजेपी को वोट न देने की लोगों से अपील की. किसान नेताओं ने पूरे राज्य में कई रैलियां कीं, जिसमें लोगों की अच्छी-खासी संख्या रही. दो मई को आए नतीजों में बंगाल चुनाव में बीजेपी की करारी हार हुई और ममता बनर्जी एक बार फिर से मुख्यमंत्री बन गईं.
9- विपक्षी दलों ने संसद सत्र में सरकार को घेरा
जुलाई महीने में केंद्र सरकार ने संसद का मॉनसून सत्र बुलाया, जिसमें विपक्ष सरकार पर कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग करता रहा. पूरे सत्र के दौरान कांग्रेस के नेतृत्व में विपक्षी दलों ने कई विरोध प्रदर्शन किए और किसानों को अपना समर्थन जताया. नेताओं ने महात्मा गांधी की प्रतिमा के सामने विरोध प्रदर्शन भी किया.
10-कई राज्यों में हुई किसान महापंचायत
किसान नेता अपने प्रदर्शन को महापंचायत तक लेकर गए. वे जगह-जगह महापंचायत करते हुए सरकार का विरोध करने लगे. यूपी, राजस्थान, हरियाणा, पंजाब समेत कई राज्यों में किसानों ने महापंचायत बुलाई. सितंबर महीने में यूपी के मुजफ्फरनगर में हुई महापंचायत में बड़ी संख्या में किसानों की उपस्थिति दर्ज की गई.
11-किसानों के समर्थन में आए राज्यपाल सत्यपाल मलिक
मेघालय के राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने किसानों के आंदोलन का जबरदस्त समर्थन किया. उन्होंने सरकार से कानूनों को रद्द करने की मांग की और साथ ही यह भी कहा कि अगर किसानों की मांगें नहीं मानी जाती हैं तो केंद्र सरकार को करारी हार का सामना करना पड़ेगा. सत्यपाल मलिक ने कहा कि पश्चिमी यूपी में बीजेपी का कोई भी नेता किसानों के बीच उनके गांव नहीं जा सकता है.
12- सुप्रीम कोर्ट ने लगाई फटकार
सुप्रीम कोर्ट में 21 अक्टूबर को किसान आंदोलन के चलते बंद सड़कों को खुलवाने को लेकर दायर याचिका पर सुनवाई की. इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया कि विरोध-प्रदर्शन किसानों का अधिकार है, लेकिन सड़कों को अवरुद्ध नहीं किया जा सकता है और इस संबंध में कोई संदेह नहीं होना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट ने फटकार लगाते हुए कहा, ''आप किसी भी तरह विरोध करिए, लेकिन इस तरह सड़क रोक कर नहीं. कानून पहले से तय है. हमें क्या बार बार ये ही बताना होगा. जस्टिस एसके कौल ने कहा, सड़कें साफ होनी चाहिए. हम बार-बार कानून तय करते नहीं रह सकते. आपको आंदोलन करने का अधिकार है लेकिन सड़क जाम नहीं कर सकते. अब कुछ समाधान निकालना होगा.''