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पेड़-पौधों के बिना धरती पर जीवन की कल्पना करना भी संभव नहीं है. वृक्ष ही जीवन का आधार हैं. ऐसे में ओडिशा के गंजाम जिले के एक शिक्षक सुधीर राऊत ने 13 बंजर पहाड़ियों पर हजारों की संख्या में पेड़-पौधे लगाकर पहाड़ियों को हरा-भरा कर दिया है. हालांकि कई बार चक्रवाती तूफान की तबाही के कारण सैकड़ों पेड़-पौधे नष्ट हो गए थे, लेकिन राऊत ने हार नहीं मानी और दोबारा उस इलाके को हरा-भरा कर दिया.
आजतक से बातचीत में 59 वर्षीय सुधीर राउत ने बताया कि कहानी की शुरुआत 2002 में हुई थी. उन्होंने कहा, "मैं उस समय विजयवाड़ा इलाके के एक नालंदा आवासीय कॉलेज का प्रधानाध्यापक के रूप में कार्यभार संभाल रहा था. मैंने देखा कि करीब 150 इंजीनियरिंग के छात्र क्लास करना पसंद नहीं कर रहे हैं. मुझे पता चला कि क्लास रूम के उपर टीन की वजह से विद्यार्थी गर्मी के कारण क्लास में आना पसंद नहीं करते हैं. साथ ही कॉलेज में पर्याप्त सुविधा नहीं होने के कारण विद्यार्थियों में निराशा देखने लगा."
राउत ने 2003 में कॉलेज कैंपस का विकास के साथ परिसर में तेजी से बढ़ने वाला पेड़-पौधे लगाने का अभियान शुरु किया. कुछ ही सालों में पेड़ बड़ा हुआ और गर्मी से तपती क्लासरुम को छाया देने लगा. इसके बाद संस्थान पेड़-पौधों के बीच गुरुकुल जैसा दिखने लगा.
राउत ने कहा कि इससे पहले उनकी पर्यावरण या पेड़-पौधे में कोई दिलचस्पी नहीं थी. लेकिन जब उन्होंने देखा कि सुहावने पर्यावरण के कारण विद्यार्थियों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है तो उसके बाद से पेड़ लगाने का कार्यक्रम जारी रखा. उन्होंने विस्तार से बताया कि उन्होंने 2005 में ओड़िशा के गंजाम जिले का ब्रहमपुर शहर में नीजि आर्यभट कोचिंग संटेर शुरु किया. यहां विद्यार्थियों को फिजिक्स पढ़ाई जाती थी और साथ ही साथ सड़क के किनारे एवं खाली स्थानों पर पेड़ लगाने का भी काम शुरु हुआ.
उन्होंने बताया कि कई बार सड़क के किनारे कई पेड़ नष्ठ हो गए. लेकिन उन्होंने पेड़ लगाने की प्रक्रिया जारी रखी और दोबारा 2008 में करीब 300 पेड़ सड़क के किनारे पर लगाए. इसके बाद 2010 में एक गाड़ी को एक रथ के रुप में तैयार किया. इसे लाउडस्पीकर के साथ जागरूकता के लिए आधुनिक उपकरणों से लैस किया. उन्होंने इस रथ का नाम “सबुज रथ” रखा और लोगों को पेड़ लगाने के साथ स्वस्थ और स्वच्छ पर्यावरण की भूमिका के बारे में जागरूक करना शुरू कर दिया.
राऊत को सबसे बड़ा झटका 2013-14 के बीच लगा जब सड़क निर्माण के दौरान लगे हुए पेड़ों को नष्ठ किया गया. ठीक उसी के बाद चक्रवती तूफान फैलिन ने तबाही मचाई जिसके कारण बड़े पैमाने पर पेड़ जड़ से उखड़ गए. राऊत ने अपनी गलती से सीख लिया और पेड़ लगाने के लिए एक सुरक्षित स्थान का चुनाव किया.
उन्होंने 2016 में गंजाम जिले में 32 हेक्टेयर जमीन की तलाश की. स्थानीय लोग वहां जानवरों को चराया करते थे. बंजर जमीन होने के कारण पौधा उगाना वहां बहुत ही मुश्किल था. उन्होंने बंजर जमीन पर बाहर से उर्वरता वाली मिट्टी की सतह बनाई और फिर वहां 1,000 पेड़ लगाए. इसके बाद उन्होंने कम रखरखाव वाले पेड़ जैसे बरगद, खजूर एवं अन्य पेड़ों पर ध्यान केंद्रित किया. इस दौरान उन्होंने वन विभाग के कर्मचारियों के साथ विश्वविद्यालय एवं स्कूली विद्यार्थियों की सहायता भी ली.
राउत ने कहा, "2017 में मेरे साथ करीब 100 वॉलेंटियर्स इकट्ठा हो गए और तकरीबन 1.5 लाख देशी बीज ग्रामीण पहाड़ियों पर फेकें. कुछ ही दिनों के बाद करीब 40,000 पैधों अंकुरित हो गए." उसी साल 5 एकड़ जमीन और मिली जहां 5,000 पेड़ लगाने का निर्णय लिया. हमने बंजर पहाड़ी इलाके को एक आरिक्षित वन में बदल दिया. यहां जामुन, नारियल, अनार और अन्य पेड़ों को लगाया गया है जो कि फल और छांव दोनों देते हैं."
उन्होंने 2018 में 9 बंजर पहाड़ी इलाके में रहने वाले स्थानीय लोगों को पहाड़ी को पेड़-पौधा लगाकर हरा-भरा करने के लिए राजी किया. उसके कुछ ही दिनों के बाद अन्य 3 बंजर पहाड़ियों को जोड़ कर कुल 13 बंजर पहाड़ियों को हरा-भरा कर आरिक्षित वन में तबदील कर दिया.
राउत ने बताया कि अबतक वह बंजर पहाड़ियों के बीच 1.5 लाख पेड़ लगा चुके हैं. साथ ही करीब 5 लाख सीडबॉल को पहाड़ी के चारों तरह फैला चुके हैं. इस प्रयास के साथ हरित आवरण एवं स्वस्थ पर्यावरण स्थापित करने की योजना है. कुछ सालों के बाद स्थानीय लोग फलों कि बिक्री कर आर्थिक तंगी से छूटकार पा सकेंगे.
राउत के स्वयंसेवक इधर-उधर घूम रहे हैं और लोगों से सिंगल यूज प्लास्टिक का इस्तेमाल बंद करने का आग्रह करते हुए कह रहे हैं कि वे अपने बच्चों के लिए घर बना सकते हैं, उन्हें कार दे सकते हैं लेकिन वर्तमान स्थिति में जलवायु परिवर्तन के कारण स्वच्छ वातावरण देना प्राथमिकता होनी चाहिए.