प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बीते रविवार को ओडिशा के वैज्ञानिकों द्वारा विकसित की गई चावल की तीन नई किस्मों को राष्ट्र को समर्पित किया है. राष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान (एनआरआरआई) के वैज्ञानिक इस बात से बेहद खुश हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनके द्वारा विकसित चावल की तीन नई किस्मों को जारी किया. देश में कम जमीन पर अधिक पैदावार की पहल को बढ़ावा देते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने बीते रविवार को फसलों की कम से कम 109 नई किस्मों को राष्ट्र को समर्पित किया. इनमें चावल, गन्ना और तिलहन की फसलें शामिल हैं.
पीएम मोदी ने दी किसानों को सौगात
देश के प्रमुख चावल अनुसंधान संस्थान ने पिछले साल चावल की आठ नई किस्मों की पहचान की और उन्हें जारी किया, जिनमें से प्रधानमंत्री ने तीन महत्वपूर्ण किस्मों को चुना था, जो बायो-फोर्टिफाइड, ज्यादा उपज देने वाली और जलवायु के प्रति लचीली किस्में थी. एनआरआरआई के निदेशक ए के नायक ने बताया कि हाल ही में जारी की गई आठ किस्मों में से प्रधानमंत्री ने सीआर धान 108, सीआर धान 810 और सीआर धान 416 को उनके समृद्ध पोषण मूल्यों, जलवायु के अनुकूल और उच्च उपज देने वाली विशेषताओं के लिए राष्ट्र को समर्पित किया है.
चावल की सीआर धान 108 किस्म पूर्वी भारत की सूखा-ग्रस्त परिस्थितियों के लिए उपयुक्त है. वहीं इस किस्म की औसत उत्पादकता 32 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है. एनआरआरआई के निदेशक ने बताया कि इस किस्म के मैच्योर होने की समय सीमा 112 दिन है और इसके दाने मीडियम पतले हैं और इससे किसानों की आय बढ़ेगी. इसी तरह सीआर धान 810 एक ऐसी किस्म है, जो पानी को सोखने की क्षमता रखती है और इसे ओडिशा, पश्चिम बंगाल व असम के बाढ़-ग्रस्त निचले इलाकों में आसानी से लगाया जा सकता है.
इसके अलावा सीआर धान 416 पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र और गुजरात की खारी मिट्टी के लिए उपयुक्त है, जिसकी औसत उत्पादकता 43 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है और परिपक्वता अवधि 125 दिन है. एनआरआरआई के निदेशक ने बताया कि चावल की इन तीन नई किस्मों के बीज खराब मौसम की स्थिति में भी अच्छी उपज देने की क्षमता रखते हैं.
हाल ही में एनआरआरआई द्वारा विकसित चावल की आठ नई किस्मों के साथ इस संस्थान ने अपने 78 वर्षों के अस्तित्व में अब तक चावल की 188 किस्में विकसित की हैं, जो ना सिर्फ उच्च उपज देने वाली हैं बल्कि देश के विभिन्न प्रणालियों के लिए उपयुक्त हैं. बता दें कि पहले एनआरआरआई का नाम केंद्रीय चावल अनुसंधान संस्थान (सीआरआरआई) था. इसकी स्थापना अप्रैल 1946 में हुई थी और वर्तमान में यह भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के प्रशासनिक नियंत्रण में है.