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मिट्टी की सेहत को लेकर अब सवाल खड़े होने लगे हैं, चिंताएं जताई जाने लगी हैं. एक्सपर्ट पहले से चेताते रहे थे लेकिन ईशा फाउंडेशन के संस्थापक जग्गी वासुदेव ने सेव सॉयल मूवमेंट के तहत दुनिया भर के देशों तक ये बात पहुंचाई तो आम लोग भी इस बारे में बात करने लगे हैं.
सदगुरु ने मिट्टी बचाओ अभियान के तहत 24 देशों में करीब 30 हजार किलोमीटर की यात्रा करके लोगों को ये समझाने का प्रयास किया कि मिट्टी को जीवन के इस चक्र का हिस्सा बनाएं वर्ना देर हो गई तो आने वाली पीढ़ियों को हमारी कमियों का खामियाजा भुगतना पड़ेगा. सदगुरु कहते हैं कि पूरे विश्व का पिछले 25 सालों में उपजाऊ जमीन का 10 प्रतिशत हिस्सा बंजर हुआ है. अगर ऐसे ही हालात रहे तो 40 से 50 सालों के बाद हमारे पास खेती के लिए जमीन न के बराबर होगी.
सवाल उठता है कि आखिर उपजाऊ जमीन बंजर कैसे हुई
भारत में कृषि एक मात्र साधन है जो सदियों से चलता आ रहा है, कृषि के क्षेत्र में ज्यादा फसल कम लागत का फॉर्मूला, जल्द से जल्द फसल बदलना, रासायनिक खाद का हद से ज्यादा इस्तेमाल मिट्टी को अंदर ही अंदर कमजोर करता चला गया. दिल्ली के पूसा इंस्टीट्यूट के संयुक्त निदेशक अनुसंधान इन्द्र मणि कहते हैं कि हरित क्रांति के दौर में किसानों को अधिक पैदावार के लिए प्रोत्साहित किया गया लेकिन मिट्टी के भौतिक, रासायनिक, जैविक स्वास्थ्य पर ध्यान नहीं दिया गया. वो जिस रासायनिक खाद का अधिक से अधिक उपयोग कर रहे थे,वो मिट्टी के समग्र स्वास्थ्य में कमी ला रही थी.
मौसम ने भी बनाया मिट्टी को मरुस्थली
देश में पिछले कुछ सालों में क्लाइमेट चेंज या फिर ग्लोबल वार्मिंग की वजह से मौसम के व्यवहार में कई फेर बदल देखने को मिले, कहीं बाढ़, तो कहीं सूखा. ये ऐसे हालात रहे जिसने मिट्टी की नमी को या तो खत्म कर दिया या उसके पोषक तत्व को खत्म कर दिया. साल दर साल एक इलाके में इस तरह के व्यवहार से मिट्टी की गुणवक्ता खत्म होती चली गई.
मौसम विभाग में कृषि विभाग के निदेशक के.के. सिंह बताते हैं कि ये शायद प्रकृति का ये एक खेल है जिसको हमको समझना होगा. मौसम बदलना क्लाइमेट चेंज का एक उदाहरण है और इसको रोकना है तो पूरे विश्व को सोचना होगा, बात कृषि की हो तो अब भी भारत में 79 प्रतिशत किसान बारिश पर निर्भर होकर खेती करते हैं, ऐसे में बदलते मौसम का सबसे ज्यादा असर खेती पर ही पड़ा है.
मिट्टी से गायब हो रहे पोषक तत्व
आज के दौर में हर किसान कोशिश करता है कि खेत की एक गज जमीन को भी खेती में प्रयोग कर ले. रासायनिक खाद, कीटनाशकों का इस्तेमाल खेतिहर जमीन में मौजूद पोषक तत्वों को (जिनसे उपजाऊ क्षमता तय होती है) खत्म कर देती है और धीरे धीरे वो जमीन बंजर होनी शुरू हो जाती है.
कहां गलती कर रहे हैं किसान
फसल चक्र अपनाना न अपनाना, गोबर, हरी खाद, वर्मी कम्पोस्ट, नाडेप कम्पोस्ट का इस्तेमाल नहीं करना, मृदा परीक्षण कराए बिना अंधाधुंध उर्वरकों का इस्तेमाल ,मिट्टी से आर्गेनिक मैटर का घटना, अधिक उत्पादन देने वाली किस्मों की बुवाई करना, लगातार नहरों/लवणीय जल से सिंचाई करने के कारण खेतों से सूक्ष्म पोषक तत्व कम हो रहे हैं. रोटावेटर/कल्टीवेटर से ज्यादा गहरी जुताई करने से जिंक, सल्फर, आर्गेनिक मेटर और नाइट्रोजन की कमी होने लगती है. खेतों की मेड़बंदी न किए जाने से भी पोषक तत्व पानी के साथ बहकर निकल जाते हैं.
समय-समय पर मिट्टी की जांच जरूरी
हिमाचल प्रदेश के डायरेक्टर एग्रीकल्चर एन के धीमान बताते हैं पिछले कुछ समय से हमने किसानों को ऑर्गेनिक खेती के लिए प्रेरित किया है और किसान अब उसको अपना रहे है पर असल में किसानों को ये समझना होगा की ये जमीन ये मिट्टी उनको अपनी अगली पीढ़ी को देकर जानी है, अब वो उपजाऊ जमीन देना चाहते है या बंजर उसके लिए उनको सोचना होगा सरकार की तरफ से हम लोग किसानों को हर संभव मदद करते हैं. हमारी टीम मिट्टी की जांच समय समय खेतो से सैंपल लेकर करती जाती है और कमी होने पर हम उस मिट्टी में पोषक तत्वों को पूर्ति भी करते है पर बंजर होती जमीन के दो मुख्य कारण है एक तो किसी उपजाऊ भूमि को खेती के लिए प्रयोग नही करना या किसी उपजाऊ भूमि पर हद से ज्यादा रसायनों का प्रयोग करना.
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक मिट्टी की गुणवत्ता में कमी जहां सबसे ज़्यादा देखने को मिल रही है उसमे पंजाब, हरियाणा, बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, गुजरात, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश शामिल हैं. इनमें से अधिकांश राज्यों में सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी व्यापक है. अगर ऐसे ही हालात रहे है तो 2045 तक हमारी 40 प्रतिशत उत्पादन क्षमता में कमी आएगी.
कहते है वक्त रहते सुधार ही भविष्य को बेहतर करने का प्रयास होता है किसान अपनी भूमि को मां की तरह पूजते हैं, इसलिए उनको जरा सा जागरूक करने से मिट्टी की गुणवक्ता में वृद्धि होगी और इससे भविष्य में दिखने वाली एक बड़ी विश्वव्यापी समस्या से निजात भी मिलेगा, इसके लिए हमें आज ही सोचना होगाय कबीर दास का ये दोहा बताता है कि समय रहते नहीं सचेत हुए तो देर हो जाएगी.
माटी कहे कुम्हार से तु क्यों रोंधे मोए
एक दिन ऐसा आएगा मैं रोधुगी तोए