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लखपति दीदी से लेकर खेतों में ट्रैक्टर दौड़ाती किसान तक...पढ़ें महिलाओं की सफलता की कहानी

15 अक्टूबर का दिन महिला किसानों के नाम है. भारत में हर साल 15 अक्टूबर को महिला किसान दिवस के रूप में मनाते हैं. अगर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देखें तो यह दिन अंतरराष्ट्रीय ग्रामीण महिला दिवस के रूप में मनाया जाता है. देश में कई राज्य ऐसे हैं जहां पुरुषों की तुलना में महिलाएं खेती का काम बड़े स्तर पर संभालती हैं. हम इन्हीं में से कुछ महिलाओं के बारे में आपको बता रहे हैं.

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Women farmer day
Women farmer day

बदलते दौर के साथ खेती-किसानी में महिलाएं भी खूब दिलचस्पी दिखाने लगी हैं. इनमें से कुछ महिला किसान बंपर मुनाफा भी कमा रही हैं. इन्हीं महिलाओं की सफलता को सेलिब्रेट करने के उद्देश्य से हर साल 15 अक्टूबर को महिला किसान दिवस मनाया जाता है. साथ ही अन्य महिलाओं को खेती-किसानी में हाथ आजमाकर अपना भविष्य सुरक्षित करने के लिए जागरूक भी किया जाता है. आज महिला किसान दिवस के मौके पर हम तीन ऐसी महिलाओं का जिक्र कर रहे हैं, जिन्होंने खेती-किसानी में पूरी दुनिया में अपना डंका बजाया है.

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मजदूर से लखपति दीदी बनने का सफर

छत्तीसगढ़ के कोंडागांव जिला मुख्यालय से 32 किमी की दूरी पर बसा ग्राम पंचायत बादालुर की ऊषा कोर्राम बेहद गरीब परिवार से ताल्लुक रखती हैं. इनके परिवार में कुल 9 सदस्य हैं. कृषि भूमि कम होने और कोई रोजगार नहीं होने की वजह से पूरा परिवार आर्थिक तंगी से जूझ रहा था. लखपती दीदी योजना की मदद से उनकी आर्थिक स्थिति सही हुई. अब वह लखपति दीदी के तौर पर पहचानी जाने लगी हैं.

ऊषा के कंधों पर पूरे घर की जिम्मेदारी थी. वह इस जिम्मेदारी को पूरा करने के लिए दूसरों के खेतों में काम करती थीं. अब ऊषा की लाइफ में बदलाव आ गया है. वह सब्जियों की खेती कर रही हैं. रोजाना हजारों रुपये से अधिक की सब्जियां बाजार में बेच रही हैं.सब्जी उत्पादन के साथ-साथ वह महुआ, साल, ईमली, टौरा का भी संग्रहण कर विक्रय भी कर रही हैं. इससे उन्हें 10 से 12 हजार रुपये की अतिरिक्त आय भी हासिल हो रही है. लाल किले के प्राचीर से प्रधानमंत्री भी ऊषा का जिक्र कर चुके हैं. पूरी कहानी पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.

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साइकिल से अचार बेचती किसान चाची

बिहार की मुजफ्फरपुर की रहने वाली किसान चाची (राजकुमारी देवी) ने खुद को स्वावलंबी बनाने के साथ ही अन्य महिलाओं को भी आत्मनिर्भर बनाने का काम कर रही हैं. शुरुआती दौर में आस-पास की महिलाओं के साथ जुड़कर रोजाना कई किलोमीटर खुद साइकिल चलाकर आम, बेल, नींबू और आंवला आदि के आचार को बाजार में बेचना शुरू किया. फिर धीरे-धीरे समूह में महिलाओं और उनका क्षेत्र बढ़ता चला गया. अब, वह उन्हीं महिलाओं को साथ लेकर अचार की बिक्री करती हैं साथ ही अपने खेतों में कई तरह की फसलें भी उगा कर बढ़िया मुनाफा कमा रही हैं. किसान चाची के साथ काम करने वाली महिलाओं ने बताया कि परिवार चलाना मुश्किल था. पति खेती और मजदूरी करते थे, हम लोगों ने किसान चाची के साथ काम शुरू किया अब अच्छी आमदनी हो रही है. यहां क्लिक करके पढ़ें सफलता की पूरी कहानी.

ट्रैक्टर से खेतों की खुद ही जुताई करती ललिता मुकाती

55 साल की ललिता मुकाती मध्य प्रदेश के बड़वानी जिले के बोड़लई गांव की रहने वाली हैं. वह मध्य प्रदेश की ही नहीं बल्कि पूरे भारत की महिलाओं के लिए एक उदाहरण हैं. उन्हें भारत सरकार द्वारा 1999 में इनोवेटिव किसान पुरस्कार और फिर 2019 में भी हलधर पुरस्कार भी दिया जा चुका है. खुद ही खेतों में फावड़ा चलाती थीं, साथ ही ट्रैक्टर से भी खेतों की जुताई खुद ही किया करती थीं. अब कमर दर्द की शिकायत के चलते वह खेतों में ट्रैक्टर नहीं चलाती हैं. 

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ललिता बताती हैं कि कुल 30 एकड़ शरीफे की खेती में ललिला मुकाती 5 से 6 लाख रुपये खर्च होती है. शरीफा का बाजार बेहद आसानी से उपलब्ध है. आसपास के सभी मंडियों में इसका फल आसानी से बिक जाता हैं. मांग ज्यादा होने पर 150 किलो रुपये तक इस फसल की बिक्री होती है. सब मिलाकर उन्हें 20 से 25 लाख रुपये का मुनाफा हो जाता है. साथ ही पके हुए शरीफे से आइसक्रीम, जूस और रबड़ी बनाती हैं. इसे मार्केट में बेचती हैं और बढ़िया मुनाफा कमाती हैं. पूरी कहानी पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.

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