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इस विधि से सब्जियों की खेती बदल रही किसानों की तकदीर, उपज और क्वालिटी में भी बढ़ोतरी

अब्दुल जलील कहते हैं कि पहले मैं 3 साल से परेशान था, खर्चा नहीं निकल पा रहा था और अब मैं बचत करने लगा हूं, अब तो यह स्थिति है कि मेरा माल फोन पर बिकता है. गाड़ी से उतरते ही खरीदार तैयार मिलते हैं.

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Scaffold Method in cultivating vegetables
Scaffold Method in cultivating vegetables

किसान अब खेती करने में वैज्ञानिक पद्धतियों को अपना रहे हैं, जिससे किसान अधिक पैदावार के साथ अच्छा मुनाफा भी कमा रहे हैं. इन दिनों किसानों में मचान विधि काफी प्रचलित है. मचान विधि बेल वाली सब्जियों के लिए बेहद कारगर विधि मानी जाती है. किसान ने बेल वाली सब्जियों विशेष रूप से लौकी की खेती में केवल मचान बनाकर सीजन और ऑफ सीजन दोनों में न केवल जमीन पर पैदा होने वाली लौकी से दोगने दामों की क्वालिटी प्राप्त की बल्कि इसका उत्पादन लगभग दोगुना कर दिखाया. ये करिश्मा राजस्थान के भीलवाड़ा जिले के बीगोद के प्रगतिशील किसान अब्दुल जलील लुहार ने कर दिखाया है, जो खुद कभी स्कूल तो नहीं गए मगर ऐसे नए विचार उनके दिमाग में आते रहते हैं.

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अब्दुल जलील पिछले तीन वर्ष से अपने ढाई बीघा खेत में लौकी की फसल मचान विधि से कर रहे हैं और साथ में मिश्रित खेती भी कर रहे हैं. इस बार लौकी की नई किस्म भी लगाई है, जिसको लोग खूब पसंद कर रहे हैं. लौकी में हजारा के नाम से नई किस्म आई है, जिसमें एक पौधे पर एक हजार से भी अधिक लौकी आती हैं. इस किस्म की लौकी खाने में स्वादिष्ट होने से मंडियों में भी खूब पसंद की जा रही है.

मचान विधि से मिलता है अच्छा उत्पादन 

मचान विधि बेल वाली सब्जियों जैसे लौकी, खीरा और करेला के लिए उपयुक्त मानी जाती है. इसमें बांस या तार की मदद से खेत में मचान तैयार करके उस पर सब्जियों की बेल को चढ़ा देते हैं. मचान विधि से फसल में खराबी कम होती है. बारिश होने पर बेल वाली सब्जियों के खराब होने का अंदेशा बना रहता है लेकिन मचान विधि से फसल सुरक्षित रहती है. फसलों में किसी प्रकार का रोग या कीट लगने पर दवाईयां छिड़कने में भी बेहद आसानी होती है. मचान के नीचे धनिया, टमाटर, मिर्ची, पालक लगाकर अतिरिक्त आय अर्जित की जा सकती है. मचान विधि से फ़सल की गुणवत्ता और पैदावार दोनों में बढ़ोत्तरी होती है.

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तीन साल पहले अपने खेत पर लौकी की फसल में मचान तैयार करने वाले किसान अब्दुल जलील कहते हैं, "जमीन पर लौकी की खेती में उसका रंग और आकार अच्छा नहीं होने से मंडी में उचित दाम नहीं मिलता था. बस यहीं से मुझे यह आइडिया आया कि लौकी की बेल को क्यों न मचान पर चढ़ाया जाए. मेरे इस आइडिया में एक अन्य किसान अब्दुल रजाक ने साथ दिया, अब मचान से खेती ने मेरी किस्मत ही बदल दी है."

Scaffold Method in cultivating vegetables

मिट्टी से खराब हो जाती है लौकी

लौकी पैदा करने वाले किसान अब्दुल जलील कहते हैं, "जमीन पर बेल पड़ी रहने से लौकी का कलर एक जैसा नहीं होता है, उसका आकार भी टेढ़ा-मेंढा  हो जाता है जबकि अब मचान पर लौकी की बेल चढ़ाने से यह चारों तरफ से चमकदार हरे रंग वाली और सीधी होती है. मिट्टी से लौकी खराब भी हो जाती है. अब इसकी क्वालिटी अच्छी होने से जहां जमीन पर पैदा होने वाली लौकी मंडी में ₹5 प्रति किलो बिकती है. वहीं, मचान वाली हमारी लौकी का भाव ₹10 प्रति किलो आसानी से मिल जाता है. यहां तक की हमारे उपज को मंडी में बिकने में 5 मिनट भी नहीं लगते हैं."

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अब्दुल जलील आगे कहते हैं, "मचान लगाने से उत्पादन में भी जबरस्त प्रभाव पड़ा है. गर्मी के दिनों में जमीन पर तैयार होने वाली लौकी को 3 से 4 दिन में तोड़ना होता है और ठंड के दिनों में 10 दिन में तोड़ना होता है जबकि मचान पर लगाई गई लौकी को गर्मी के दिनों में प्रतिदिन तोड़ना होता है और ठंड के दिनों में 4 दिन में तोड़ना हो जाता है. डेढ़ बीघा जमीन में गर्मी में फसल से 150 किलो लौकी का उत्पादन होता है तो मचान पर मेरा यह उत्पादन 400 किलो तक पहुंच जाता है. अभी सर्दी के दिनों में मैं अपनी डेढ़ बीघा जमीन से 4 दिन में 216 किलो लौकी का उत्पादन ले रहा हूं जबकि जिनके जमीन पर लौकी लगी है वह मुश्किल से 150 किलो लौकी की उपज ले पा रहे हैं.

'नहीं निकल पा रहा था खर्चा, अब हो रही बचत'

अब्दुल जलील कहते हैं कि मचान विधि से पहले मैं 3 साल से परेशान था, खर्चा नहीं निकल पा रहा था और अब मैं बचत करने लगा हूं, अब तो यह स्थिति है कि मेरा माल फोन पर बिकता है. गाड़ी से उतरते ही खरीदार तैयार मिलते हैं. सीजन में 16रुपए प्रति किलो और अभी ₹20 प्रति किलो लौकी आराम से बेच लेता हूं जबकि सीजन में जमीन पर पैदा हुई लौकी कोई ₹4 किलो में भी लेने को तैयार नहीं होते थे. अब्दुल जलील बताते हैं कि डेढ़ बीघा लौकी की खेती के लिए मचान तैयार करने में उन्हें लकड़ी, लोहे के तार और प्लास्टिक की डोरी में बमुश्किल ₹40000 का खर्चा आया था जो कभी का निकल चुका है.

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अब्दुल ने कहा अब ये लौकी की फसल जब खत्म होने वाली है तो इसके नीचे टमाटर की पैदावार लेने के लिए पौध लगा दी है. जैसे ही धूप मिलेगी मार्च में मेरी टमाटर की फसल तैयार हो जाएगी. इस फसल को भी मैं प्लास्टिक की डोरी से ऊपर बांध रहा हूं. गरीब परिवार में पैदा होने के कारण अब्दुल जलील कभी स्कूल तो नहीं गए मगर ये आइडिया उनके दिमाग में हमेशा आते रहते हैं. अब्दुल जलील बताते हैं कि उसकी डेढ़ बीघा जमीन में ₹40000 की मचान के साथ-साथ उन्होंने अब तक कुल 70000  रुपए लौकी की बुवाई, खाद और दवाइयों में खर्च किये हैं और वो डेढ़ लाख रुपए से अधिक लौकी की फसल ले चुके और अभी वह दो तुड़ाई  और करेंगे.

(इनपुट- प्रमोद तिवारी)

 

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