Coffe Cultivation In Bastar: बस्तर का नाम आते ही जेहन में सबसे पहले उसकी पहचान नक्सली बेल्ट के तौर पर ही उभरती है. बस्तर के नाम पर हिंसा की तस्वीर सामने आती है. झीरम और सुकमा कांड अभी भी लोग नहीं भूल पाए हैं. छत्तीसगढ़ सरकार ने अब नक्सली नाम से बदनाम बस्तर की पहचान बदलने की ठान ली है. सरकार यहां के कोलेंग और दरभा की पहाड़ियों पर 320 एकड़ में कॉफी की खेती करा रही है.
70 से अधिक आदिवासी किसानों की जमीन पर हो रही कॉफी की खेती
छत्तीसगढ़ को धान का कटोरा कहा जाता है, लेकिन जल्द ही यह कॉफी की खेती के लिए भी जाना जा सकता है. यहां सबसे पहले 20 एकड़ में कॉफी की खेती शुरू की गई थी. इस दौरान यह प्रयोग सफल रहा था. पाया गया था कि यहां की जलवायु दुर्लभ किस्मों की कॉफी के लिए अनुकूल है. इस वक्त 70 से अधिक आदिवासी किसानों की जमीनों पर काफी समेत 5 अन्य मुनाफे वाले फसलों की खेती की जा रही है. इन फसलों के माध्यम से किसानों की आय बढ़ाने की कोशिश की जा रही है.
35 साल तक फल देती है कॉफी
कॉफी की फसल एक बार लगाने के बाद लगातार 35 साल तक फल देती है. 4 साल में कॉफी के फल आने शुरू हो जाते हैं. 5वें साल से इसे बाजार में बेचना शुरू किया जा सकता है. हालांकि, 35 साल बाद आपको फिर से नई फसल लगानी पड़ेगी.
डिलमिली, उरूगपाल एवं मुंडागढ़ की पहाड़ियों से निकलकर देश-विदेश में फैलेगी 'बस्तरिया कॉफी' की महक
— CMO Chhattisgarh (@ChhattisgarhCMO) October 29, 2022
- राज्य सरकार के कुशल प्रबंधन से ग्रामीणों की आय की मुख्य लाइफ लाइन बनेगी 'बस्तरिया कॉफी'@bhupeshbaghel @AgriCgGov #BastarCoffee #Chhattisgarh pic.twitter.com/rkIr01LCSk
कॉफी की खेती के लिए छायादार जगह उपयुक्त
विशेषज्ञों की मानें तो काफी के खेती छायादार जगह पर करनी चाहिए. तेज धूप वाली जगह पर कॉफी की खेती करने से कॉफी पैदावार पर असर पड़ता है. छायादार जगह पर कॉफी की खेती से उसके पौधे में विकास सही तरीके से होता है. इस फसल की खास बात है कि इसे सिंचाई की अधिक आवश्यकता नहीं पड़ती है. ठंड का मौसम भी इसकी खेती के लिए ज्यादा उपयुक्त नहीं है. इसकी खेती के लिए 18 से 30 प्रतिशत का सबसे ज्यादा उपयुक्त माना जाता है.
बस्तर का तापमान कॉफी की खेती के लिए उपयुक्त
बता दें कि कॉफी की खेती ज्यादातर पहाड़ी जगहों पर की जाती है. बस्तर की जलवायु इसके लिए काफी उपयुक्त मानी जाती हैं. यहां के पहाड़ों पर जो खेत हैं, वह स्लोपी हैं. ऐसी स्थिति में यहां बारिश का पानी खेतों में रुकता नहीं हैं, इससे फसल खराब होने की आशंका कम बनी रहती है. साथ ही यहां का तापमान इसकी खेती के लिए सबसे ज्यादा उपयुक्त माना जाता है.