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Eco logical Engineering: इस तकनीक से खेतों में कीटनाशकों के इस्तेमाल से मिलेगा छुटकारा, किसानों की बढ़ेगी आय!

खेती में पारिस्थितिक यांत्रिकी तकनीक (Eco logical Engineering) से खेतों को नुकसान देने वाले कीटों को खत्म कर सकते हैं. साथ ही कीटनाशकों के इस्तेमाल से काफी हद तक छुटकारा पा सकते हैं. जिससे खेतों के उर्वरा शक्ति को नुकसान कम होता है.

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Eco logical Engineering:  farmers can get rid of the use of pesticides in crops by using this technique
Eco logical Engineering: farmers can get rid of the use of pesticides in crops by using this technique
स्टोरी हाइलाइट्स
  • नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ प्लांट हेल्थ मैनेजमेंट दे रहा ट्रेनिंग
  • खेतों को नुकसान देने वाले कीटों खत्म करने में सहायक

खेतों में फसलों का उत्पादन बढ़ाने के लिए किसान काफी मात्रा मे रसायन का इस्तेमाल करते हैं. इससे खेतों की उर्वरा शक्ति तो कम हो ही रही है, साथ ही इन फसलों से तमाम तरह की बीमारिया भी इंसानों और जानवरों के अंदर आ रही हैं. इसके अलावा रसायनिक कीटनाशकों के इस्तेमाल से खेतों में पनपने वाले मित्र कीट भी खत्म हो रहे हैं.

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नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ प्लांट हेल्थ मैनेजमेंट हैदराबाद इन सब स्थितियों के देखते हुए खेती में पारिस्थितिक अभियांत्रिकी तकनीक यानी इको लॉजिकल इंजीनियरिंग (Eco logical Engineering) को बढ़ावा देने के कार्यक्रम पर काम कर रहा है. इस कार्यक्रम के माध्यम से खेतों में रसायनिक कीटनाशकों के उपयोग को कम करके फसल के उत्पादन को बढ़ाने के लिए किसानों को ट्रेनिंग दी जाती है.

क्या है पारिस्थितिक अभियांत्रिकी तंत्र?

डॉ दयाशंकर श्रीवास्तवा (वैज्ञानिक फसल सुरक्षा एवं प्रभारी अध्यक्ष कृषि विज्ञान केंद्र 2 -सीतापुर) बताते हैं कि इस तकनीक में हम खेतों की बाउंड्री पर मक्का,बाजरा और ज्वार जैसे फसल लगाते हैं. इससे फायदा ये होता है कि खेतों की बाउंड्री पर एक घेरा बन जाता है और दुश्मन कीट खेतों में प्रवेश नहीं कर पाते हैं. इसके अलावा हम लेमनग्रास जैसे कुछ औषधीय पौधे भी लगा देते हैं, जो खराब कीट को खत्म करने में काफी सहायक होते हैं.

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उन्होंने बताया कि हम खेतों में फूलों की खेती करने की सलाह देते हैं, जो मधुमक्खियों समेत और तमाम मित्र कीट को खेतों में आने के लिए बढ़ावा देते हैं. जिससे फसलों का उत्पादन बढ़ता है. इसके अलावा बीच में सब्जी और अन्य फसलें लगाने की भी राय देते हैं, जो किसानों की आय में इजाफा करने में काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है.

Image credit: Dr. Dayashankar Shrivastava
Image credit: Dr. Dayashankar Shrivastava

इस तकनीक के कई फायदे

इस तकनीक से एक तो खेतों को नुकसान देने वाले कीटों को खत्म कर सकते हैं. साथ ही कीटनाशकों के इस्तेमाल से काफी हद तक छुटकारा पा सकते हैं. जिससे खेतों के उर्वरा शक्ति को नुकसान कम होता है और खेती में लगने वाली लागत भी कम हो जाती है. इसके अलावा पर्यावरण भी बेहतर होता है. लोग शुद्ध उत्पादित सब्जियां और अन्न ग्रहण कर पाएंगे. इसके साथ ही भारतीय फसलें अगर शुद्धता के मानक पर खड़ा उतरेंगी, तो विदेशों में भी इसका निर्यात बढ़ेगा.

Image credit: Dr. Dayashankar Shrivastava
Image credit: Dr. Dayashankar Shrivastava

कई किसानों को दे चुके ट्रेनिंग

दयाशंकर श्रीवास्तव बताते हैं कि उनके कृषि केंद्र ने नेशनल इंस्टीट्यूट प्लांट हेल्थ मैनेजमेंट हैदराबाद से एमओयू साइन किया हुआ है. इसके माध्यम से वह किसानों को खेती में पारिस्थितिक यांत्रिकी तकनीक को लेकर ट्रेनिंग देते हैं. वह अब तक 100 किसानों को इसकी तकनीकी ट्रेनिंग दे चुके हैं, साथ ही लगभग 1000 किसानों को इस बारे में बता भी चुके हैं. उन्होंने बताया कि उनकी सरकार से मांग है कि इस तकनीक को लेकर जल्द ही कोई अधिकारिक पॉलिसी बनाई जाए, साथ ही इसे कृषि के हर तरह के फसलीय कार्यक्रम में शामिल किया जाए. इस तकनीक से संबंधित अन्य जानकारियों के लिए आप नेशनल इंस्टीट्यूट प्लांट हेल्थ मैनेजमेंट हैदराबाद की वेबसाइट पर भी विजिट कर सकते हैं.

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