बढ़ते शहरीकरण के कारण जमीन का बंटवारा हो रहा है. जमीन कम होती जा रही है और जो जमीन है उसकी उत्पादक क्षमता कम हो गई है इसलिए किसान परेशान हैं पर अब किसान भाईयों को परेशान होने की जरूरत नहीं है क्योंकि महाराष्ट्र के बारामती के कृषि विज्ञान केंद्र ने इस पर समाधान ढूंढ लिया है. बारामती कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिकों ने नीदरलैंड तकनीक की मदद से मिट्टी के बिना खेती करने का आसान तरीका निकाल लिया है. इस तकनीक की मदद से किसान बिना मिट्टी के और कम पानी में फसलों की ज्यादा उपज ले सकता है.
कृषि विज्ञान केंद्र में हाइड्रोपोनिक्स तकनीक के आठ अलग-अलग प्रकार किसानों को देखने को मिल रहे हैं. पहला प्रकार है ए फ्रेम, एनएफटी, फ्लैट बेड, एग्रोनॉमिक्स, डीडब्ल्यूसी जिसे हम डीप वॉटर कल्चर कहते हैं. इसके आलावा इनडोर ग्रो लाइट और डच बकेट जैसी विभिन्न प्रणालियां दिखाई गयई हैं. इस तकनीक में किसान पानी में या कोकोपीट (नारियल का भुसा) मिट्टी की खेती के विभिन्न तरीके अपना सकते हैं. जहां-जहां जमीन है, जिन भूमियों पर उत्पादन नहीं होता है, जैसे पथरीली जमीन है वहां इस तरह की तकनीक का इस्तेमाल किया जा सकता है. यह तकनीक खासकर शहरों में ज्यादा इस्तेमाल की जा सकती है. जहां जमीन कम है और घरों के आंगन में इस तरह की खेती करना बहुत ही आसान हो सकता है.
इस संबंध में कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिक यशवंत जगदाले ने बात करते हुए कहा कि एयरोपोनिक और हाइड्रोपोनिक तकनीक यानी जिसमें फसल का जमीन से कोई संबंध नहीं होता है. इसका सबसे महत्वपूर्ण फायदा यह है कि मिट्टी से होने वाली बीमारियाँ मिट्टी के संपर्क में नहीं आती हैं, इसलिए फसलों में रोग होने की संभावना नहीं रहती है. नियमित तरीकों की तुलना में फसल उत्पादन में 30 से 35 फीसदी की वृद्धि होती है. यह तकनीक सब्जी की श्रेणी में अधिक इस्तेमाल की जा रही है. सब्जियाँ और फल की श्रेणी में सलाद पत्ता, पालक सब्जी है, फल वाली सब्जी में खीरा, शिमला मिर्च लगाते हैं.
अब पिछले एक-दो सालों में ज़्यादा से ज़्यादा किसानों ने इसे अपनाना शुरू कर दिया है. भारत सरकार ने अभी इसके लिए सब्सिडी शुरू करने का विचार कर रही है. हालांकि अभी सब्सिडी शुरू नहीं हुई है. इस तकनीक के लिए किसानों को सब्सिडी देने के लिए सरकारी दिशा-निर्देश बना लिए हैं. बारामती कृषि विज्ञान केंद्र में इस तकनीक की आठ अलग-अलग प्रणालियाँ बना ली हैं. प्रत्येक प्रणाली की लागत और यह कितना क्षेत्र कवर करती है, तदनुसार, हमारा अनुमान है कि औसत लागत कम से कम 1800 रुपये प्रति मीटर होगी, तथा अधिकतम लागत 2500 रुपये होगी.
नीदरलैंड और इजराइल तकनीक की मदद से मिट्टी के बिना खेती का प्रयोग सफल रहा है. खास बात यह है कि, जो स्ट्रॉबेरी शीतकालीन वातावरण में उगाई जाती है. वह देश के किसी भी कोने में इस तकनीक की मदद से किसी भी ऋतु में उगाई जा रही है. इस नियंत्रित वातावरण में हम सालभर स्ट्रॉबेरी खा सकते हैं. स्ट्रॉबेरी का आकार व मिठास मिट्टी से भी ज्यादा होती है.
हाइड्रोपोनिक फसल उत्पादन विधियों में, फसल उर्वरक को पुनः चक्रित करते हैं, जिसका अर्थ है कि हम उस पानी को चक्रित करते हैं जिसका उपयोग पौधे विकास के लिए करते हैं, जिसका अर्थ है कि उर्वरक का कम से कम 50 फीसदी बचत हो सकती है और इसलिए यह तकनीक उपयुक्त है. जमीन का संपर्क न होने के कारण किसानों को सही तरीके से उपज मिलेगी और फायदा भी दुगना होगा.