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Maize Cultivation In Chhindwara School Campus: कोरोना के प्रकोप के बीच संक्रमण के खतरे को देखते हुए देशभर में लॉकडाउन लगा दिया गया था. इस दौरान स्कूलों को बंद करने का आदेश दे दिया गया था, जिससे बच्चों की पढ़ाई भी डिस्टर्ब हुई. हालांकि, ऑनलाइन माध्यम से आगे चलकर छात्रों की पढ़ाई पूरी कराई गई. इन सबके बीच छिंदवाडा के सारंगबिहरी के शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय के शिक्षकों ने स्कूल कैंपस के खाली पड़े जमीन का ऐसा उपयोग किया, जिसकी चर्चा पूरे प्रदेश में हो रही है.
खाली पड़ी जमीन पर शुरू की मक्के की खेती
स्कूल के कैंपस में हर साल पौधे लगाए जाते हैं, लेकिन मवेशियों की वजह से ये पनप नहीं पाते. इसी को देखते हुए सारंगबिहरी स्कूल के शिक्षकों ने कोरोना कॉल के दौरान खाली पड़े स्कूल कैंपस की बंजर जमीन पर कम लागत वाली खरीफ फसल लगाने का फैसला किया. शिक्षकों के इस आइडिया से कैंपस के अंदर पेड़ पौधों उगने के साथ ही छात्रों को खेती-किसानी को लेकर जागरूक भी किया जा रहा है.
दिनेश कुमार खापरे (शिक्षक) कहते हैं कि फसल कटाई के बाद जो भी मुनाफा होगा, वो स्कूल के सौंदर्यीकरण के उपयोग में लाया जाएगा. साथ ही कैंपस के अंदर लगे 200 पौधे को भी संरक्षित करने के उपायों पर भी काम किया जाएगा. इसके अलावा से छात्रों के बीच कृषि को लेकर रूचि लाने के भी प्रयास किए जाएंगे.
10 हजार रुपये से शुरू की खेती
शिक्षकों ने 10 हजार रुपये की लागत से मक्का की खेती की शुरुआत की. स्कूल के ही दो स्थानीय टीचर फसल की देखरेख करते हैं. साथ ही वे छात्रों को कृषि से जुड़ी तमाम तरह की जानकारियों और तकनीकों के बारें में भी अवगत कराते हैं.
बैठक में सर्वसम्मिति से फैसला हुआ था पास
हरिपाल युइके( शिक्षक) बताते हैं कि इसके लिए हमने शाला प्रबंधन समिति की बैठक बुलाई. बैठक में इस प्रस्ताव को पेश किया गया. सर्वसम्मति मिलने के बाद हमने खाली पड़ी बंजर जमीन पर मक्के की खेती की शुरुआत की. इसके फसलीकरण में 15-16 हजार का खर्च आया है. कटाई में भी तकरीबन इतनी ही राशि लगेगी. जिन शिक्षकों ने इस काम में अपने जेब से लागत लगाई है, उन्हें मुनाफा हासिल होने के बाद सारी राशि वापस दी जाएगी, बाकि बचे मुनाफे का उपयोग स्कूल के सौंदर्यीकरण में उपयोग किया जाएगा.
हरिपाल युइके आगे बताते हैं कि स्कूल में फसल लगाने को लेकर क्षेत्र में थोड़ा बहुत विरोध भी हुआ था, लोगों का तर्क था कि टीचर का काम पढ़ाने का होता है, खेती का नहीं. लेकिन धीरे-धीरे सबको हमारा उद्देश्य समझ आ गया, फिर सबने इसका विरोध करना भी छोड़ दिया.