
महाराष्ट्र के महाबलेश्वर में लाल और हरे धान की बुवाई की गई है. वैज्ञानिकों ने इससे पहले नीले चावल की बुवाई कराई थी. महाबलेश्वर के कृषि विभाग के लिए यह बड़ी सफलता है. महाराष्ट्र के सतरा जिले का यह इलाका मिनी कश्मीर कहा जाता है.
प्रयोग के तौर पर बनाया गया पौष्टिक हरा और लाल धान, अब पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र बनेगा. बीरवाड़ी के एक किसान समीर चह्वाण ने अपने खेत में एसआरटी तकनीक का उपयोग किया है. यहां सगुना धान का उत्पादन किया जाएगा.
महाबलेश्वर में इससे पहले नीले धान का सफल प्रयोग किया गया था, जिसमें चावल के दाने भी नीले रंग के थे. आमतौर पर लोग चावल का रंग सफेद ही जानते हैं, लेकिन इस बार इस क्षेत्र के किसानों ने अनूठा प्रयोग किया है. बीते सप्ताह ही महाबलेश्वर तालुका में नीला धान लगाया गया था.
यहां हरे और लाल धान की रोपाई की गई है, जिसकी तारीफ हो रही है. कृषि विभाग ने किसानों का फसल रोपने तक मार्गदर्शन किया. इस मिशन में कृषि सहायक दीपक बोर्डे, विशाल सूर्यवंशी और समीर चह्वाण आए थे.
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क्या है लाल और हरे चावल की विशेषताएं?
हरा और लाल चावल अलग-अलग तरह से फायदेमंद हैं. चावल में 96 फीसदी फाइबर होता है. यह वसा रहित चावल भी होता है. इसमें एंटी ऑक्सीडेंट, पोषक तत्व और विटामिन प्रचुर मात्रा में होते हैं. यह चावल फाइबर, आयरन, मैंगनीज और विटमिन से भी भरपूर होता है, जो लाल रक्त कोशिकाओं की संख्या को बढ़ाने में मदद करता है.
इस चावल में ब्राउन राइस की तुलना में 10 गुना अधिक एंटी ऑक्सीडेंट होते हैं इसलिए चावल के दाने हरे दिखते हैं. यही वजह है कि इसे हरा चावल कहा जाता है. दरअसल लाल चावल 110 दिन पुराने लाल चावल की किस्में हैं, जिनमें एंजियोसायनिन का स्तर बहुत कम होता है. इसलिए इसका उपयोग वजन घटाने के लिए किया जा सकता है.
हरे चावल की जानकारी देते हुए कृषि सहायक दीपक बोर्डे ने बताया कि महाराष्ट्र में पहली बार हरे धान की खेती की जा रही है. क्लोरोफिल पत्तियों को हरा रंग देता है. पत्तों में वही क्लोरोफिल पाया जाता है, जो चावल के दानों में पाया जाता है.
केसर की भी हुई खेती
महाबलेश्वर में इससे पहले केसर की भी खेती की गई थी. कृषि विभाग की इस सफलता की वजह से महाबलेश्वर की पैठ अब महाराष्ट्र टूरिज्म में बढ़ती जा रही है.
(महाबलेश्वर से इम्तियाज मुजरवार की रिपोर्ट)