
उत्तर प्रदेश में इंडिगो फार्मिंग यानी नील की खेती को खूब बढ़ावा दिया जा रहा है. किसानों को इस फसल के फायदे गिनाए जा रहे हैं. बकायदे उनकी काउंसलिंग की जा रही है. कई राज्यों में नील की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है., लेकिन यूपी में इसका क्रेज फिलहाल कम है.
साल भर में दो बार फसलों की कटाई
नील की खेती में ज्यादा से ज्यादा किसान दिलचस्पी लें, इसके लिए हर्बल से संबंधित फसलों को लेकर जागरूकता फैलाने वाले एएमए हर्बल के को-फाउंडर और सीईओ यावर अली शाह बताते हैं इसकी खासियतों के बारे में बता रहे हैं. वह कहते हैं कि कि फरवरी के पहले या फिर दूसरे हफ्ते में इसकी बुवाई की जाती है. अप्रैल में पहली फसल काटी जाती है. जून में दूसरी बार फसल काटी जाती है. 5-6 महीने में दो बार नील की खेती करने के बाद किसान बाकी के 6 महीने में कोई और फसल भी कर सकता है. किसान चाहे तो गेंहू, सरसों भी उगा सकता है.
10 हजार लगात, 35 हजार तक मुनाफा
यावर अली शाह ने बताते हैं कि एक एकड़ में नील की खेती के लिए 8 से 10 हजार रुपये तक की लागत आती है. दो बार फसल लगाने के बाद किसान 30 से 35 हजार तक का मुनाफा कमा सकता है. नेचुरल तरीके से इसकी खेती होती है. इसमें किसी तरह केमिकल्स की जरूरत नहीं पड़ती है. जैविक खाद का उपयोग किया जाता है. नील की खेती से जमीन भी काफी उपजाऊ हो जाती है. जमीन में नाइट्रोजन लेवल बढ़ जाता है. इससे किसानों को ही फायदा होता है.
38 डॉलर का एक किलो नील
यावर अली शाह के मुताबिक अंतरराष्ट्रीय बाजार में एक किलो नील एक्सट्रेक्ट की कीमत 38 डॉलर प्रति किलो है. भारत में तमिलनाडु, छत्तीसगढ़ के किसान नील की खेती में बहुत आगे हैं. यहां हजारों एकड़ जमीन पर नील की खेती की जा रही है.