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Success Story: कोरोना के दौरान कई लोगों का व्यवसाय समाप्त हो गया. कई की नौकरियां अचानक छूट गईं. आमदनी का स्रोत खत्म होने की वजह से कई लोगों के सामने जीवनयापन का संकट आ गया. राजस्थान के अजमेर के रसूलपुरा गांव के रहने वाले रज़ा मोहम्मद के साथ भी बिल्कुल यही हुआ. वह अपने गांव के स्कूल में पढ़ाया करते थे. कोरोना के वक्त स्कूल बंद होने के बाद उनकी आय पूरी तरह से समाप्त हो गई.
शुरू में मोती के खेती के लिए उत्सुक नहीं थे रजा
स्कूल बंद होने के बाद रज़ा मोहम्मद ने रोजगार की तलाश में इधर-उधर हाथ-पांव मारे. हालांकि, उन्हें कहीं नौकरी नहीं मिल पाई. उनके पास दो बीघा खेती थी, लेकिन उससे भी खास मुनाफा हासिल नहीं हो पा रहा था. इस दौरान उन्हें किसी ने मोती की खेती के बारे में बताया. पहले तो इस खेती को करने में वह बिल्कुल उत्सुक नहीं थे. इस तरह की खेती के बारे में उन्हें ज्यादा जानकारी नहीं थी. नाम सुनते ही उन्हें लगा इसकी खेती बेहद कठिन होगी.
60 से 70 हजार रुपये लगाकर शुरू की मोती की खेती
इस बीच उन्हें पता चला कि राजस्थान के किशनगढ़ के नरेंद्र गरवा बड़े पैमाने पर मोती की खेती करते हैं. उनकी खेती और मुनाफे के बारे में सुनकर उन्हें इसकी खेती को लेकर ललक जगी. यहां उन्होंने सबसे पहले ट्रेनिंग ली. फिर 10 बाय 25 के आकार में तालाब का निर्माण कराया. रज़ा बताते हैं कि मोती की खेती की शुरुआत में 60 से 70 हजार रुपये लगे. मुनाफे के तौर पर डेढ़ से दो लाख रुपये हासिल हुए.
मोती की खेती करते वक्त रखें ये ध्यान
रज़ा बताते हैं कि मोती की फसल आने में 18 महीने का वक्त लगता है. इस दौरान जिस तालाब में मोती की खेती कर रहे हैं, उसका पीएच स्तर 7-8 के बीच होना बेहद जरूरी है. अमोनिया का लेवल एक जैसा ही होना चाहिए. तालाब में हमेशा पानी का प्रवाह सही होना चाहिए. शैवाल की उपस्थिति में मोती का विकास तेजी से होता है. इस दौरान अमोनिया मीटर, पीएच मीटर, थर्मामीटर, एंटीबायोटिक्स, माउथ ओपनर, पर्ल न्यूक्लियस जैसे उपकरण खरीद कर अपने पास रख लें.
1000 सीपों से की थी खेती की शुरुआत
रज़ा के मुताबिक इस बार उन्होंने 1000 सीपों से खेती की शुरुआत की थी. हर एक सीप में न्यूक्लियस डालकर तालाब में छोड़ना होता है. इस दौरान इनके भोजन का खास ख्याल रखना पड़ता है. अगर न्यूक्लियस सही तरीके से विकास करता है तो एक सीप से दो मोती मिलते हैं. इस बार उन्हें 2 से 2.5 लाख का मुनाफा मिला है.