वर्तमान समय में कृषि आदान (Input)के बढ़ते दामों के कारण जहां लोग खेती को घाटे का सौदा मानते हैं, उसी खेती में किसान शीला जाट ने अपने खेत में कम पानी के बावजूद नवाचार उन्नत तरीके और उन्नत बीज के आधार पर यह सिद्ध कर दिया है कि खेती घाटे का सौदा नहीं बल्कि इससे लाखों रुपए की पैदावार प्राप्त की जा सकती है.
नए तरीके से शुरू की सरसों की खेती
राजस्थान के भीलवाड़ा जिले आसींद उपखंड के मोतीपुरा गांव की शीला जाट पहले परंपरागत तरीकों से खेती-बाड़ी करती थीं जिससे उन्हें विशेष लाभ नहीं होता था. उच्च शिक्षा प्राप्त शीला ने खेती में धीरे-धीरे नवाचारों के साथ उन्नत तरीके और उन्नत बीज के साथ-साथ बढ़ते जल संकट के कारण कम सिंचाई में अधिक फसल की कल्पना के साथ गेहूं को छोड़कर सरसों की खेती की. पिछले साल ही 9 बीघा में सरसों की फसल से शीला को 4 लाख की कमाई हुई. इस साल अच्छे मुनाफे की उम्मीद में शिला ने 50 बीघा में सरसों की फसल बोई है.
भीलवाड़ा जिले के आसींद क्षेत्र को सबसे कम वर्षा वाला क्षेत्र माना जाता है और गेहूं की फसल लगाने के लिए कम से कम 5 से 6 बार सिंचाई की आवश्यकता होती है. इस कारण प्रगतिशील किसान शीला जाट ने कम पानी में अच्छी क्वालिटी के सरसों के बीज का प्रयोग किया जिसमें उन्हें भरपूर सफलता मिली.
इस बार 25 से 30 लाख तक का मुनाफा कमाने का लक्ष्य
शीला खुद पंचायत समिति सदस्य हैं. इनके परिवार के लोग राजनीति से जुड़े हुए हैं जो खेती बाड़ी में कम समय देते हैं. ऐसे में यह अपने खेत पर 10 से 15 महिला कृषि मजदूरों को काम भी देती हैं. शीला ने इस बार 50 बीघा सरसों के साथ-साथ 25 से 30 लाख रुपए का लाभ कमाने का लक्ष्य भी रखा है. इन्होंने कम पानी में खेती करने के कृषि वैज्ञानिकों से पूरा सिस्टम भी समझ रखा है.
शीला जाट की जेठानी मोतीपुर ग्राम पंचायत की सरपंच हैं, जेठ बड़े बिजनेसमैन हैं और पति ओमप्रकाश जाट भी राजनीति में सक्रिय होने के कारण घर की खेती में ध्यान कम देते हैं. इन्हीं परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए शीला जाट ने पंचायत समिति सदस्य का चुनाव जीतने के बाद भी खेती की ओर अपना रुझान बरकरार रखा. इनके खेत की सरसों क्वालिटी अच्छी होने के कारण समीपस्थ बिजयनगर कृषि उपज मंडी के साथ-साथ जोधपुर की मंडी तक इनकी सरसों की डिमांड रहती है.
सरसों की खेती पर मुनाफे को लेकर क्या कहती हैं शीला?
प्रगतिशील किसान शीला जाट कहती हैं की परंपरागत रूप से खेती-बाड़ी के तरीकों को छोड़कर मैंने नवीन तरीके से कम पानी में खेती करने के साथ-साथ अच्छी क्वालिटी के 45 R 46 क्वालिटी के बीजों का उपयोग किया. शिला यह भी कहती हैं कि वैसे भी सरसों की खेती में कम पानी की आवश्यकता होती है और निराई गुड़ाई का खर्चा भी नहीं आता है. जरूरत हमें नवाचार के साथ-साथ अच्छी तकनीक और अच्छी क्वालिटी के बीजों का उपयोग करने की है, सफलता खुद-ब-खुद हमारे दर पर चलकर आएगी.
(इनपुट: प्रमोद तिवारी)