देश के ग्रामीण क्षेत्रों की अर्थव्यवस्था खेती-किसानी के साथ-साथ पशुपालन पर निर्भर है. यहां बड़ी संख्या में किसान गाय और भैंस के पालन से बढ़िया मुनाफा कमा रहे हैं. हालांकि, लोग भैंसे या सांड को छोड़ देते हैं. ये आवारा पशुओं की तरह सड़कों पर घूमते नजर आते हैं या खेतों की फसल को बर्बाद करते हैं. इन भैंसा या सांड को खुला छोड़ने की जगह किसान इनसे बढ़िया मुनाफा कमा सकते हैं.
युवराज मुर्रा भैंसा के सीमन की भारी मांग
देश में ऐसे कई उदाहरण भी मौजूद हैं, जिसकी मदद से भैंसा और सांड मालिक लाखों का मुनाफा कमा रहे हैं. हरियाणा के युवराज मुर्रा भैंसा के सीमन की मांग पंजाब, उत्तर प्रदेश और राजस्थान सहित कई राज्यों में है. ये नस्ल भारत में पाए जाने वाली नस्लों में सबसे बढ़िया मानी जाती है. युवराज की कीमत 9-10 करोड़ रुपये बताई जाती है. एक बार में 4 से 6 मिलीलीटर सीमन इकट्ठा होता है. इससे 500-600 डोज तैयार हो जाते हैं. स्पर्म को माइनस 196 डिग्री सेल्सियस के तापमान पर 50 लीटर लिक्विड नाइट्रोजन के कंटेनर में रखा जाता है.
गोलू-2 भैंसा के सीमन की भारी मांग
वहीं, हरियाणा के पानीपत के किसान नरेंद्र सिंह का भैंसा भी आजकल पशु मेलों की शान बना हुआ है. गोलू-2 का वजन 1.5 टन और इसकी उम्र 4 वर्ष 7 माह है. इसकी कीमत भी 9 से 10 करोड़ रुपये आंकी गई है. इसका सीमन भैंसों की नस्ल सुधारने के लिए उपयोग किया जाता है. इसके अलावा बेंगलुरु के कृष्णा सांड की कीमत भी 1 करोड़ रुपये है. इसका सीमन भी हजारों रुपये मे बिकता है.
देखभाल में सावधानी की जरूरत
बता दें कि युवराज कद में 5 फुट 9 इंच है. वजन 14 क्विंटल से अधिक है. इसे रोजाना पीने के लिए 20 लीटर दूध और करीब 19 किलो की खाद्य सामग्री दी जाती. इसपर रोजाना हजारों रुपये खर्च होते हैं. वहीं 1.5 टन के गोलू के देखभाल में भी इतने ही रुपये खर्च होते हैं. इनके देखभाल में काफी सावधानी बरतनी पड़ती है.
किसान के दुविधाओं का होगा निपटारा
किसान दुविधा में रहते हैं कि गाय या भैंस की कौन सी नस्ल सबसे बेहतर है. ऐसे में अच्छी नस्ल का भैंसा और सांड के सीमन के सहारे कम दूध देने वाली भैंस और गायों से भी अच्छे नस्ल के बच्चे प्राप्त किए जा सकते हैं.
सीतापुर कृषि विज्ञान केंद्र के पशु वैज्ञानिक डॉ आनंद सिंह कहते हैं आपको पहले गाय और भैंस, जो सबसे ज्यादा दूध देती हैं, उनके सांड और भैंसा का चुनाव करना होगा. उन सांड और भैंसा से सीमेन कलेक्ट किया जाता है. उसी वक्त किसी दूसरे गाय और भैंस के हीट पीरियड में उनके अंदर से अंडाणु कलेक्ट कर लेते हैं और लैब में सीमेन और अंडाणु की सहायता से एक अन्य फर्टाइल अंडाणु का विकास करते हैं. इन अंडाणु के विकसित होने के बाद गाय वाले विकसित अंडाणु को गाय में ट्रांसप्लांट कर देते हैं. ठीक उसी तरह भैंस के विकसित अंडाणु को भैंस में ट्रांसप्लांट करते हैं. डॉक्टर आनंद सिंह के मुताबिक, पहले एक वक्त में एक गाय और भैंस ही गाभिन हो सकती थी. लेकिन एंब्रियो ट्रांसप्लांट तकनीक की मदद से अब एक ही वक्त में कई सारी गाय और भैंसों को गाभिन करा सकते हैं.
यहां करें संपर्क
पशुपालक अपने भैंसा और सांड के सीमन को राष्ट्रीय डेयरी बोर्ड द्वारा स्थापित विभिन्न सीमन स्टेशनों पर बेच सकते हैं. इस बारे में अधिक जानकारी के लिए राष्ट्रीय डेयरी बोर्ड के अधिकारिक वेबसाइट पर विजिट कर सकते हैं. इसके अलावा किसान पशुपालन विभाग से इसके लिए ट्रेनिंग भी ले सकते हैं.