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5 लाख की लागत से करें Custard Apple की खेती, मिलेगा 25 से 30 लाख तक मुनाफा!

मध्यप्रदेश के बड़वानी जिले के बोड़लई गांव की रहने वाली 54 वर्षीय ललिता मुकाती बताती हैं कि वह 32 एकड़ में शरीफे की खेती करती हैं, जिसमें उनको 6 लाख के आसपास लागत लगती है, और वह सालाना 30 लाख के आसपास मुनाफा भी निकाल लेती है.

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Image credit: Lalita Mukati
Image credit: Lalita Mukati
स्टोरी हाइलाइट्स
  • पके हुए शरीफे का प्रयोग आइसक्रीम और रबड़ी बनाने में भी किया जा सकता है
  • सीताफल की खेती के लिए ललिता मुकाती को मिल चुका है पुरस्कार

भारत कृषि प्रधान देश है. देश की तकरीबन आधी से ज्यादा आबादी खेती से ही अपना भरण - पोषण कर रही है. अक्सर देखा जाता है कि खेती को पुरुषों का काम माना जाता है. लेकिन अब स्थितियां बदल रही है, महिलाएं भी कृषि के क्षेत्र में अपना योगदान दे रही हैं. भारत सरकार की तरफ से भी महिला सशक्तिकरण किसान योजना जैसे कई कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं, जिससे महिलाएं किसानी की तरफ अपना रूख करें. ऐसी ही एक महिला हैं मध्य प्रदेश की ललिता मुकाती जो सीताफल यानी शरीफा की जैविक तरीके से खेती करके भारी मुनाफा कमाती हैं.

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सरकार की तरफ से की जा चुकी हैं पुरस्कृत

ललिता मुकाती जैसी महिलाएं केवल मध्य प्रदेश की ही नहीं बल्कि पूरे भारत के लिए उदाहरण हैं कि अगर हौसला हो तो कुछ भी हासिल किया जा सकता है. ललिता मुकाती कई सालों से जैविक आधारित खेती करते आ रही हैं. वह भारत सरकार की तरफ से कई बार पुरस्कृत भी की जा चुकी हैं. सबसे पहले उन्हें 1999 में इनोवेटिय किसान पुरस्कार और फिर 2019 में भी हलधर पुरस्कार दिया गया था.

Image credit: Lalita Mukati, women farmer
Image credit: Lalita Mukati, farmer

32 एकड़ में करती हैं सीताफल की खेती

मध्यप्रदेश के बड़वानी जिले के बोड़लई गांव की रहने वाली 54 वर्षीय ललिता मुकाती बताती हैं कि वह 32 एकड़ में शरीफे की खेती करती हैं, जिसमें उनको 6 लाख के आसपास लागत लगती है, और वह सालाना 30 लाख के आसपास मुनाफा भी निकाल लेती हैं. इसके अलावा वह बताती हैं कि उन्होंने अपने स्तर पर एक निजी किसान समूह भी बनाया है, जिससे वह अपने क्षेत्र के महिलाओं को किसानी की तरफ मोड़ने के लिए उत्साहित करती हैं.

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रासायनिक खाद्य का नहीं करती हैं इस्तेमाल

सरकार की तरफ से किसानों को खेतों में रासायनिक खाद्य की जगह जैविक रूप से तैयार खाद्य का उपयोग करने का बढ़ावा दिया जाता है. ललिता मुकाती भी इसी का पालन करती हैं. वह नीम के फल से खली और तेल तैयार करती हैं. नीम के फल से बने तेल का उपयोग करने से खेतों में कीट नहीं लगते हैं. इसके अलावा वह बर्मी कम्पोस्ट और जीवामृत का खाद्य भी घर पर बनाती हैं. इससे उनकी लागत में भी कमी आती है.

Image credit: Lalita Mukati, women farmer
Image credit: Lalita Mukati, women farmer

बाजार है आसानी से उपलब्ध 

शरीफा का बाजार बेहद आसानी से उपलब्ध है. आसपास के सभी मंडियों में इसका फल आसानी से बिक जाता हैं. मांग ज्यादा होने पर 150 किलो रूपये तक इस फसल की बिक्री होती है. इसके अलावा ललिता मुकाती बताती हैं कभी-कभी खेतों में ही शरीफा पक जाता है. ऐसे में ये मार्केट में नहीं बिकता है. बिकता भी है तो 20 से 25 रुपये किलो, लेकिन उन्होंने इसका भी तोड़ निकाल निकाल लिया है. वह इन पके शरीफे से पल्प निकालती हैं, जिसका प्रयोग आइसक्रीम, जूस और रबड़ी बनाने में होता है. अब वह पल्प 100 से 150 रुपये किलो में बिकता है, खेती से होने वाली कमाई के अलावा वह पल्प की बिक्री से ही 3 लाख सालाना अलग से मुनाफा कमा लेती हैं.

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Image credit: Lalita Mukati, farmer
Image credit: Lalita Mukati, women farmer

सरकार से है नाराजगी

ललिता मुकाती पूरी तरह से जैविक आधारित खेती करती हैं. लेकिन इसको लेकर सरकार की उदासीनता से वह नाराज हैं. वह कहती हैं कि अन्य कृषि आधारित फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य है, लेकिन जैविक फसलों पर ऐसा कोई नियम नहीं हैं. अगर जैविक कृषि के फसलों पर न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित हो जाए तो उनका मुनाफा काफी हद तक बढ़ सकता है.


 

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