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कोरोना के साथ-साथ भारत ने मई के महीने में चक्रवात यास और तौकते नाम की दो प्राकृतिक आपदाएं भी झेलीं. तटीय क्षेत्रों में इन दोनों तूफानों ने काफी कहर बरपाया. लेकिन इसके प्रभाव की वजह से मैदानी इलाके भी अछूते नहीं रह पाए. असमय बारिश के चलते सब्जी और फल, किसानों की फसलें खेतों में खड़ी-खड़ी डूब गईं. ऐसे में उन्हें भारी आर्थिक नुकसान उठाना पड़ा है.
साइक्लोन तौकते ने गुजरात के सौराष्ट्र के जिलों में काफी नुकसान पहुंचाया है. यहां राजकोट जिले में मूंगफली और बाजरे की खेती प्रमुख रूप से होती है. इस बार की फसल हर बार से बेहतर हुई थी. ऐसे में यहां के किसानों की आंखों में चमक थी कि इस बार वह ठीक-ठाक मुनाफा कमा लेंगे. राजकोट भारतीय किसान संघ जिलाध्यक्ष दिलीप भाई सखिया ने अपने यहां हरिपर गांव में 6 एकड़ में मूंगफली की फसल लगाई थी. वह बताते हैं कि बारिश में उनकी पूरी की पूरी 6 एकड़ की मूंगफली की फसल डूब गई. इलाके में उनके अलावा कई और किसान हैं, जिनपर प्रकृति की सख्त मार पड़ी है.
800 रुपये का आम 120 रुपये में बिका
सौराष्ट्र में केसर आम की ठीक-ठाक खेती होती है. सौराष्ट्र के गिर सोमनाथ में 90 प्रतिशत किसान इसी पर निर्भर हैं. उनकी रोजी-रोटी इसी से चलती है. एक आम के पेड़ की तकरीबन 6 से 7 साल देखभाल करना पड़ता है. उसके बाद ही इसमें फल आते हैं. लेकिन साइक्लोन की वजह से कई हजार पेड़ गिर गए हैं. यहां के अमृतवेल गांव के किसान प्रवीण भाई बताते हैं कि उन्होंने तीन एकड़ में आम की खेती की थी. जिसमें 3 लाख रुपये की लागत आई थी. वह कहते हैं कि तूफान की वजह से खराब हो चुके तकरीबन 6000 किलो कच्चे आमों को उन्हें फेंकना पड़ा, जो कुछ बचे थे उन्हें कौड़ियों के दाम पर बेच दिया. पहले जो आम 800 रुपये में बीस किलो था, उन्हें मात्र 120 रुपये में बेचना पड़ा.
वह बताते हैं कि ये नुकसान बस इस सीजन का नहीं है, बल्कि इसकी मार आने वाले 7-8 साल दिखाई देगी. एक आम का पेड़ फल देने लायक 5 से 7 सालों में होता है. जहां वह हर सीजन में 5 लाख के आसपास मुनाफा कमा लेते थे, आने वाले कुछ सालों में वह लागत निकाल पाएं वही बड़ी बात होगी. उनका कहना है कि मुआवजे के तौर पर सरकार की तरफ से उन्हें 30 हजार प्रति एकड़ देने की बात कही गई है. लेकिन इससे उनका कोई फायदा नहीं होने वाला है.
इन सबके बीच सौराष्ट्र में भारी तबाही के बाद आम की कलमों (पौध) के दाम में भारी इजाफा हुआ है. जो कलम मात्र 200 से 300 में मिलती थी. वह 1000 रुपये में मिलने लगी हैं. ऐसे में एक तो किसान की खेती तूफान ने बर्बाद कर दी. साथ ही आम की कलम ने उनका सिरदर्द बढ़ा दिया है. आने वाला समय उनके लिए किसी इम्तिहान से कम नहीं होने वाला है.
इन सबके अलावा साइक्लोन के प्रभाव के चलते बिहार-उत्तर प्रदेश- झारखंड में भी जून के पहले सप्ताह में भारी बारिश हुई. इसका परिणाम ये हुआ कि इन राज्यों में सब्जियों के साथ-साथ तरबूज और खरबूज, मिर्च और मेंथा जैसी फसलों को काफी नुकसान हुआ है.
उत्तर प्रदेश के बाराबंकी में बड़े पैमाने पर मिर्च और मेंथा की खेती की जाती है. बाराबंकी के बेलहरा के निवासी जितेंद्र सिंह बताते हैं कि उन्होंने 5 एकड़ में मिर्च और मेंथा की फसल लगाई थी. बारिश की वजह से किसानों को इस कदर नुकसान हुआ कि वे बर्बादी की कगार पर हैं. वह बताते हैं कि क्षेत्र में कई किसानों ने अनाज बेचकर इन फसलों को लगाया था. ऐसे में फसल बर्बाद होने के बाद उन्हें दोतरफा नुकसान हो गया है.
वहीं उत्तर प्रदेश के सीतापुर में भी तरबूज और खरबूजे की बड़े स्तर पर खेती होती है. यहां के सीतापुर के इमलिया गांव के रोहित सिंह बताते हैं कि उन्होंने 10 एकड़ में तरबूज लगाए थे. लेकिन बारिश की वजह से आधी फसल बर्बाद हो गई और जो बच गए उनकी मिठास खत्म हो गई. इसकी वजह से उन तरबूज को अब तीन से चार गुने कम दामों पर बेचना पड़ रहा है. वह आगे बताते हैं कि इस बार उन्होंने 4 लाख रुपये इस फसल में लगाए थे. अब तक वह केवल एक लाख रुपये की फसल बेच पाए हैं, यानि कि वह लागत भी नहीं बचा पाए.
यही हाल बिहार और झारखंड का भी है. प्रतिदिन 2 कुंतल तक सब्जियां खेतों से निकालने वाले किसान अब केवल 10 किलो ही निकाल पाते हैं. झारखंड का भी यही हाल है, लेकिन इसबीच वहां की सरकार ने कृषि विभाग को आदेश दिया है कि पहले वह किसानों के नुकसान का आकलन करे, उस आधार पर मुआवजा तय किया जाएगा. बिहार के बिहटा के दिलावरपुर गांव के गुड्डू सिंह कहते हैं उन्होंने ऐसी स्थिति पिछले 15 से 20 सालों में नहीं देखी. इस बार लॉकडाउन और बारिश ने हमारी स्थिति पूरी तरह से खराब कर दी है.
बारिश के अलावा अन्य वजहों से भी परेशान हैं किसान
किसानों को बारिश के अलावा अन्य कारणों की वजह से भी नुकसान हो रहा है. लॉकडाउन ने किसानों की कमर तोड़ दी है. एक तो मंडियों की दूरी अधिक होने और ट्रांसपोर्टेशन की सुविधा नहीं होने की वजह से उनको दिक्कतों का सामना करना पड़ा है. इसके अलावा मंडियां भी काफी कम अंतराल के लिए खुल रही थी. ऐसे में उन्हें अपनी सब्जियां औने-पौने दाम पर बेचने पड़ीं.
देवास के अशोक परिहार बताते हैं कि उन्हें अपने यहां उगाए गए करेले दो से तीन रुपये किलो में बेचने पड़े. इसके अलावा सीतापुर के इमलिया के रोहित सिंह कहते हैं कि जब किसान दूसरी फसल की तैयारी करते हैं, तो खेत को सोलराइजेशन के लिए तैयार करना पड़ता है. ऐसे में उन्होंने खेत की जुताई की, लेकिन तबसे दो से तीन बार बारिश हो चुकी है खेत को सूखने तक अवसर नहीं मिल रहा है और सारी मेहनत पानी में जा रही है.