
Jammu Kashmir Apple Farmers Worried: कश्मीर में मौसम अनुकूल रहने की वजह से इस बार सेब की बंपर पैदावार हुई है. बढ़िया उपज हासिल करने के बाद भी किसान अपनी फसल बाजार में बेचने से हिचक रहे हैं. कई किसानों ने अभी तक सेब के फलों की तुड़ाई नहीं की है. ये किसान सेब के गिरते हुए रेट से परेशान हैं और अपनी उपज को बाजार में अभी नहीं उतारना चाह रहे हैं.
सेब का क्या है रेट
शोपियां के रहने वाले किसान मोहम्मद याकूब ने इंडिया टुडे को बताया कि उन्होंने अभी तक सेबों की तुड़ाई नहीं की है. वे बाजार में सेब की दरों में स्थिरता आने का इंतजार कर रहे हैं. पिछले साल स्थानीय फल मंडी में 15 किलो का एक सेब का डिब्बा 1000 रुपये में बिक रहा था. इस साल ये 500 रुपये में बिक रहा है. अगर इस दर पर हम अपनी उपज बेचते हैं तो हमें भारी नुकसान होगा. लागत भी निकालनी मुश्किल हो जाएगी.
क्यों आई सेब के दरों में कमी
घाटी के अन्य किसानों के सामने भी यही चुनौती है. उनका मानना है कि ईरान से आयात सेबों की वजह से दरों में कमी आई है. यही वजह है कि किसानों ने सरकार से ईरान से सेब के आयात पर प्रतिबंध लगाने का अनुरोध किया है.
किसानों के हित में लिए जा रहे ये फैसले
इंडिया टुडे ने जम्मू-कश्मीर के एलजी मनोज सिन्हा से भी इस मुद्दे पर बात की. उन्होंने बताया केंद्र सरकार के सामने इस मसले को उठाया गया है. किसानों को बांग्लादेश में सेब निर्यात के लिए सुविधा प्रदान करने का भी प्रयास किया जा रहा है. इससे किसानों को उनकी उपज पर बेहतर रेट मिलेगा.
सेब उत्पादन में 7वें नंबर पर भारत
विश्व सेब उत्पादन में भारत सातवें स्थान पर है और सभी फलों की फसलों में इसका हिस्सा केवल 3% है. जम्मू और कश्मीर देश में उत्पादित कुल सेब के लगभग 80% हिस्से में भागीदारी रखता है. सेब की खेती से प्रदेश को तकरीबन 1500 करोड़ रुपये की आय हासिल होती है. यहां श्रीनगर, गांदरबल, बडगाम, बारामूला, कुपवाड़ा, अनंतनाग और शोपियां जिलों में बड़े स्तर पर सेब की खेती की जाती है. वहीं उधमपुर, डोडा, पुंछ, रामबन और रियासी जिले भी छोटे पैमाने पर सेब की खेती करते हैं.
जम्मू और कश्मीर में गुणवत्ता वाले सेब के उत्पादन और निर्यात को बढ़ाने की जबरदस्त संभावनाएं हैं. इटली, चिली, फ्रांस आदि में 40 मीट्रिक टन/हेक्टेयर उत्पादन होता है. वहीं भारत में यह 11 मीट्रिक टन/हेक्टेयर है. फिलहाल अगर सेब की खेती में नई तकनीकें और बेहतर कोल्ड स्टोरेज की व्यवस्था की जाए तो इस अंतर को कम किया जा सकता है.