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Success Story: सॉफ्टवेयर इंजीनियर ने लाखों की नौकरी छोड़, गाय पालन से खड़ी की 6 करोड़ के टर्नओवर की कंपनी!

पेशे से सॉफ्टवेयर इंजीनियर रहे असीम अमेरिका समेत कई देशों में नौकरी कर चुके हैं. एक दिन टीवी चैनल पर गायों के अस्तित्व पर डिबेट हो रही थी, उस डिबेट को सुनने के बाद असीम ने पशुपालन के क्षेत्र में उतरने की ठान ली और नौकरी छोड़ने का फैसला किया.

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सचिन धर दुबे
  • नई दिल्ली,
  • 18 अक्टूबर 2023,
  • अपडेटेड 1:24 PM IST

गाय पालन से खड़ी कर ली 6 करोड़ रुपये की टर्नओवर वाली कंपनी...इस बात पर शायद कोई विश्वास ना करे लेकिन ऐसा कर दिखाया है गाजियाबाद के रहने वाले असीम रावत ने. उन्होंने गाजियाबाद के सिकंदरपुर गांव में हेथा नाम की डेयरी खोल रखी है. दो देसी गायों से शुरू की गई इस डेयरी में अब 1000 से ऊपर गोवंश हैं. इनमें गायें, बछड़े, बछिया, सांड सभी शामिल हैं. 

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सॉफ्टवेयर की नौकरी छोड़ क्यों गाय पालन में उतरे असीम?

असीम अमेरिका समेत कई देशों में नौकरी कर चुके हैं. वह पेशे से सॉफ्टवेयर इंजीनियर थे. सैलरी भी काफी अच्छी थी. नौकरी के दौरान एक दिन टीवी चैनल पर गायों के अस्तित्व पर डिबेट हो रही थी. उस डिबेट को सुनने के बाद उन्होंने पशुपालन के क्षेत्र में उतरने का ठान लिया. 15 साल तक कई कंपनियों में काम करने के बाद 2015 में उन्होंने नौकरी छोड़ दी. उसी साल दो गायों से अपनी डेयरी की शुरुआत कर दी. आज उस डेयरी का टर्नओवर महज 8 सालों में 6 करोड़ रुपये से ज्यादा हो गया है.

घी, खोया, मिठाई समेत कई प्रोडक्ट बनाते हैं असीम

असीम बताते हैं कि उन्होंने गाजियाबाद के अलावा बुलंदशहर, उत्तराखंड में भी अपनी डेयरी खोल रखी है. उनकी डेयरी में गिर, साहिवाल, हिमालयन बद्री देसी गायें हैं. इन गायों के दूध से वह घी, खोया, मिठाइयां समेत कई तरह के प्रोडक्ट बनाते हैं. साथ ही गौमूत्र का उपयोग जीवामृत और दवाएं बनाने में करते हैं. गोबर से खाद और लकड़ियां बनाई जाती हैं. इनकी बिक्री करके अच्छा मुनाफा कमाते हैं. इसके अलावा वह जैविक खेती भी करते हैं. उसकी भी बिक्री मार्केट में अच्छे रेट पर होती है.

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देसी गायों का ही पालन क्यों?

असीम शुरुआत से ही सिर्फ देसी गाय का पालन करना चाहते थे. भैंस पालन और विदेशी गायों के पालन में उनकी कोई दिलचस्पी नहीं थी. देसी गाय के दूध में विटामिन्स ज्यादा होते हैं और पचने में भी आसान होता है. वहीं, भैंस का दूध थोड़ा देर से पचता है. इसके अलावा खाद और गौमूत्र के देसी गायें ही उपयुक्त मानी जाती हैं, भैंस नहीं. वहीं, विदेशी गायें के लिए यहां का जलवायु बेहतर नहीं है. वह हमेशा बीमार ही रहती हैं. उनके पालन में खर्च भी ज्यादा है.

85 लोगों को रोजगार

असीम के मुताबिक, उन्होंने अपने डेयरी में 85 लोगों को सीधे रोजगार दिया हुआ है. वह अपने प्रोडक्ट की बिक्री कई तरह से करते हैं. एक तो उन्हें डायरेक्ट ऑर्डर आता है. साथ ही अपनी वेबसाइट पर भी प्रोडक्ट खरीदने का ऑप्शन दे रखा है. इसके अलावा उनके सभी प्रोडक्ट ई-कॉमर्स वेबसाइटस पर भी उपलब्ध है.

किसी भी गोवंश को बेसहारा नहीं करते हैं असीम

असीम कहते हैं कि पलने वाली गायों की साफ-सफाई और खान-पान का विशेष ख्याल रखा जाता है. सर्दियों में उन्हें दलिया, बाजारा तो बाकी दिनों में गन्ने का चारा दिया जाता है. उनके डेयरी में दूध ना देने वाली गाय भी हैं. उनका भी वह पालन करते हैं. उन्हें बेसहारा नहीं छोड़ते हैं. इसके अलावा सांड और बछड़ों का भी उनकी डेयरी में खास ख्याल रखा जाता है. असीम के मुताबिक, गाय के दूध के साथ-साथ उसके गौमूत्र और गोबर का सही उपयोग किया जाए तो अच्छी-खासी कमाई की जा सकती है. ऐसे में किसी भी गोवंश को बाहर छोड़ने की जरूरत नहीं पड़ेगी.

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पीएम मोदी भी कर चुके हैं तारीफ

गाय पालन के क्षेत्र में बेहतर काम करने के लिए असीम को कई अवॉर्ड्स भी मिल चुके हैं. उन्हें साल 2018 में राष्ट्रीय गोपाल रत्न अवॉर्ड से नवाजा गया था. इसके अलावा आईसीआर उन्हें स्टार्टअप ऑफ दी ईयर 2022 का पुरस्कार दे चुकी है. उत्तराखंड सरकार से उन्हें शक्ति अवॉर्ड मिला हुआ था. इसके अलावा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी उनसे मिल चुके हैं और उनके काम की तारीफ कर चुके हैं.

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