
Straw Cirsis In Uttar Pradesh: देश में इस बार गेहूं का उत्पादन पहले के वर्षों की तुलना में काफी कम हुआ है. सरकार ने स्थिति की गंभीरता को देखते हुए इसके निर्यात पर भी रोक लगा दी है. खबर आ रही है कि उत्तर प्रदेश में गेहूं से बनने वाले भूसे की भी कमी हो गई है. इसके कीमतों में भारी इजाफा देखने को मिल रहा है. लेटेस्ट रिपोर्ट के मुताबिक किसानों ने इस बार गेहूं की फसल कम उगाई है और सरसों की फसल को ज्यादा तवज्जो दिया है.
पहले के वर्षों में भूसा 30 से 40 रुपए प्रति बंडल बिकता था लेकिन इस बार भूसे को स्टॉक कम कर दिया गया है. ताकि आने वाले समय में इसको डेढ़ सौ रुपए तक बेचा जा सके. इसके अलावा इसका कॉमर्शियल उपयोग भी भूसे के स्टॉक में कमी की वजह माना जा रहा है. दरअसल, हाल के कुछ वर्षों में भूसे का इस्तेमाल गत्ता और रद्दी बनाने के कामों में भी किया जा रहा है.
क्या कहते हैं भूसे की कमी के मामले में एग्रीकल्चरल एक्सपर्ट?
एग्रीकल्चर मामले के जानकारी दयाशंकर सिंह कहते हैं कि जितना अनाज होता है उतना ही भूसा भी होना चाहिए, लेकिन अब हम फसलों की कटाई कंबाइन मशीनों से करने लगे हैं. ऐसा करने से 6 इंच फसल बचकर खेत में ही रह जा रही है. कंबाइन एक बड़ी मशीन होती है, यह ऊपर के फसल को तो काट लेती है लेकिन नीचे के हिस्से की फसल रह जाती है. पहले रीपर मशीन का इस्तेमाल मशीन किया जाता था लेकिन अब कंबाइन मशीनों का इस्तेमाल किया जा रहा है इसी वजह से फसल अगर 12 इंच की है तो 6 इंच का पौधा खेत में ही रह जाता है. इसका लोग इस्तेमाल नहीं कर रहे हैं.
दयाशंकर सिंह के मुताबिक मॉडर्नाइजेशन अच्छी चीज है लेकिन कहीं ना कहीं इसके दुष्परिणाम भी हैं. पहले खेतों में किसान अपने औजारों से गेहूं की कटाई करता था,जिससे पूरा पेड़ का पौधा काटा जाता था और फिर भूसा का उत्पादन भी ज्यादा मात्रा में होता था लेकिन अब ऐसा बेहद कम हो रहा है. हम लोग मॉर्डनाइजेशन की तरफ बढ़ रहे हैं जिसकी वजह से आधी फसल खेत में ही रह जा रही है. कृषि मामले के जानकार दयाशंकर आगे बताते हुए कहते हैं कि,हालांकि अब भूसे की पैदावार में लोग आगे बढ़कर भाग लेना चाह रहे हैं इसका मुख्य कारण है, मशरूम की खेती इसमें भूसे का इस्तेमाल होता है क्योंकि कॉमर्शियल तौर पर मशरूम की खेती मुनाफा ज्यादा देती है. अगर एक लाख की लागत मशरूम की खेती में लगी है तो वह 3 से 4 महीने में हमें सवा से डेढ़ लाख रुपए तक का मुनाफा मिल जाता है.
एक्सपर्ट ने बताया,आखिर दाम बढ़ने के क्या है कारण?
दयाशंकर सिंह,भूसे के दाम बढ़ने के कारण को बताते हुए कहते हैं कि,इसका कारण सीधा यह है कि,जब प्रोडक्शन कम होगा तो जाहिर सी बात है दाम लोग बढ़ा चढ़ाकर बताएंगे और उसे मनमाने दामों पर बेचेंगे क्योंकि उत्पादन कम है लेकिन यही अगर ज्यादा उत्पादन होता तो औऱ भूसे को भरमार रहती तो लोग इसे कम दामों में बेचते. ठीक उसी तरह जैसे अगर आलू मार्केट में ज्यादा आ जाती है तो वह सस्ती रहेगी लेकिन मार्केट में अगर आलू की कमी है तो उसे महंगे दामों में बेचा जाना स्वभाविक है.
दया शंकर ने बताया कि, निजी कंपनी ब्रिटानिया गेहूं का 5 हज़ार टन 2260 रुपए में खरीद रही है वहीँ सरकार 5 टन को 2015 रुपए में खरीद रही है,ऐसे में पूरे देश को 1 साल अनाज खिलाने के लिए दो करोड़ टन के अनाज की जरूरत होती है और हमारा भंडारण 3 साल का 6 करोड़ टन का होता है लेकिन सरकार ने गेहूं अफगानिस्तान और अन्य देशों को दे दिया. साथ ही साथ,रूस और यूक्रेन में लड़ाई चल रही है और इसीलिए 4 दिन पहले सरकार ने निर्यात पर रोक लगा दी. हमारा भंडारण खाली है इसलिए रेट बढ़ रहा है.
गर्मी की वजह से इस बार गेहूं की फसल को हुआ नुकसान
कृषि के जानकार दयाशंकर ने दाम बढ़ने का कारण एक और कारण बताया है. वह कहते हैं देश का दुर्भाग्य की खेती को बिजनेस का दर्जा नहीं दिया गया है. बार गर्मी भीषण पड़ रही है,जिसके कारण टेंपरेचर बहुत ज्यादा बढ़ गया है जिसके चलते गेंहू की फसल में भी नुकसान देखा गया है क्योंकि तापमान अधिक होने से अनाज हल्का हो जाता है और प्रोडक्शन में कमी आ जाती है और जब प्रोडक्शन कम होगा तो रेट बढ़ जाएगा. ऐसे में अगर डिमांड और सप्लाई संतुलित नहीं है तो दामों में बढ़ोतरी होना लाजमी है और अगर फसलों को बड़ी हार्वेस्टर मशीनों का इस्तेमाल करके कटाई को जाएगी तो लागत ज्यादा पड़ेगी तो जाहिर सी बात है दाम तो बढ़ेंगे ही.