
बाढ़ग्रस्त क्षेत्र होने के चलते बिहार के सीमांचल में खेती-किसानी करना काफी मुश्किल है. यहां साल के 6 महीने खेती होती है. वहीं, 6 महीने तक इलाका पूरी तरह से बाढ़ में डूबा रहता है. हालांकि, ऐसे क्षेत्र में भी किसान तरबूज की खेती से ठीक कमाई कर रहे हैं.
सलाह के बाद शुरू की तरबूज की खेती
पूर्णिया क्षेत्र की मिट्टी बालू वाली है. यहां पारंपरिक फसलों की खेती करना मुश्किल है. ऐसे में कस्बा एग्रीकल्चर कॉलेज के प्रोफेसर ने किसानों को बलुआही मिट्टी में तरबूज की खेती की सलाह दी. प्रोफेसर की बात मानकर यहां के किसान तरबूज की खेती में लग गए और अब बहुत अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं.
अन्य राज्यों को भी जाता है यहां का तरबूज
तरबूज की खेती करने वाले बायसी के डंगरा पुल के नीचे खेती कर रहे किसान मोहन ने बताया कि हमारा खेत नदी के जलस्तर बढ़ने के कारण तकरीबन 6 माह जलमग्न रहता है, साल के बचे छह माह में खेत के सूखे रहने पर तरबूज की खेती करते हैं. बालू मिट्टी में तरबूज की खेती अच्छे से होती है. यहां का तरबूज अन्य राज्यों में निर्यात किया जा रहा है. तरबूज की खेती करना ही जीवनयापन का प्रमुख जरिया है.
तरबूज के साथ खीरे की भी होती है खेती
तरबूज की खेती के साथ-साथ यहां खीरे की भी खेती की जाती है. खीरे को सारस नामक रासायनिक उर्वरक से बड़ा किया जाता है. ऐसा इसके बीज को निकालने के लिए किया जाता है. इस बीज से अगले सीजन में खीरे की खेती होती है. इससे भी किसानों थोड़ी आमदनी हासिल कर लेते हैं. किसानों का कहना है कि खीरा और तरबूज की खेती करने में बहुत नुकसान भी होता है. ऐसे में सरकार को इनकी खेती पर सब्सिडी भी देनी चाहिए.