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धान की कटाई और गेहूं बुवाई में इन यंत्रों का उपयोग करें किसान, पराली के झंझट से मिलेगा छुटकारा!

अक्टूबर के महीने में धान की कटाई और गेहूं की बुवाई शुरू हो जाती है. इस दौरान किसानों को पराली की समस्या से जूझना पड़ता है. अधिकांश किसान पराली को जला देते हैं, जिससे प्रदूषण बढ़ता है. हालांकि, पराली से छुटकारा पाने के लिए कुछ ऐसे यंत्र हैं, जिनकी मदद से पराली का प्रबंधन किया जा सकता है.

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आजतक एग्रीकल्चर डेस्क
  • नई दिल्ली,
  • 10 अक्टूबर 2024,
  • अपडेटेड 1:46 PM IST

अक्टूबर का महीना आते ही धान की कटाई शुरू हो जाती है और गेहूं की बुवाई होने लगती है. अधिकतर किसान धान की कटाई के लिए कंबाइन हार्वेस्टर का उपयोग करते हैं, जिससे फसल अवशेष खेतों में ही रह जाते हैं. किसान खेतों के इन अवशेषों यानी पराली को जला देते हैं, जिसकी वजह से दिल्ली और आस-पास के इलाकों में प्रदूषण की स्थिति गंभीर हो जाती है. पराली के धुएं से लोगों को सांस संबंधी रोग हो जाते हैं. इसके अलावा पराली जलाने से मिट्टी में रहने वाले लाभकारी कीट भी नष्ट हो जाते हैं. 

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पराली जलाने से मिट्टी की गुणवत्ता भी खराब होती है, क्योंकि मिट्टी में मौजूद जैविक तत्व, कार्बन, नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटाश नष्ट हो जाते हैं. वहीं, इससे खेत की नमी भी खत्म हो जाती है. किसानों में पराली प्रबंधन के प्रति जागरूकता अभी उस स्तर तक नहीं पहुंची है, जिससे इस समस्या का समाधान हो सके. लेकिन अब इस समस्या को हल करने के लिए सरकार ने कंबाइन मशीनों में सुपर स्ट्रॉ मैनेजमेंट सिस्टम (एसएमएस) का उपयोग अनिवार्य कर दिया है. यह प्रणाली पराली का प्रबंधन करने में सहायक है और इससे पराली को जलाने की जरूरत नहीं पड़ती. 

धान की कटाई के लिए कंबाइन मशीन में करें इन यंत्रों का इस्तेमाल 

जब किसान धान की कटाई सामान्य कंबाइन हार्वेस्टर से करते हैं तो इससे फसल का ऊपरी हिस्सा कटता है और बड़ी मात्रा में पराली खेत में रह जाती है. रबी के सीजन में गेहूं की बुवाई के लिए समय से खेत तैयार करने के लिए किसान पराली को जला देते हैं, जिससे मिट्टी की उर्वरता और पर्यावरण दोनों का नुकसान होता है. इस समस्या से निपटने के लिए अब कंबाइन हार्वेस्टर में स्ट्रॉ मैनेजमेंट सिस्टम (एसएमएस) जोड़ा जाता है, जो पराली को छोटे-छोटे टुकड़ों में काटकर मिट्टी में मिला देता है.

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एसएमएस से कटी पराली मिट्टी में मिलकर उसकी उर्वरक क्षमता को बढ़ाने का काम करती है. इस उपकरण को कंबाइन मशीन में जोड़ने की लागत लगभग 1 लाख रुपये होती है. एसएमएस वाली कंबाइनों से कटी फसल वाले खेतों में हैप्पी सीडर, सुपर सीडर और जीरो टिल सीड ड्रिल जैसी मशीनों से सीधी बुवाई संभव होती है, जिससे किसानों को रबी फसलों की समय से बुवाई और पैसे की बचत होती है. कंबाइन मशीन में एसएमएस को जोड़ना कई राज्यों में अनिवार्य कर दिया गया है और अगर कंबाइन मशीन में एसएमएस सिस्टम नहीं जोड़ा गया, तो कंबाइन मालिक को पंजाब सहित कई राज्यों में सजा और जुर्माने का प्रावधान है. इसलिए अगर किसान धान की कटाई करवा रहे हैं, तो वे यह जरूर जांच लें कि कंबाइन हार्वेस्टर में स्ट्रॉ मैनेजमेंट सिस्टम (एसएमएस) जोड़ा गया है या नहीं.

पराली वाले खेतों में करें सुपर सीडर से बुवाई

किसान धान की पराली वाले खेत में सुपर सीडर मशीन से आसानी से बुवाई कर सकते हैं. ये मशीन फसल अवशेषों को काटते हुए उन्हें मिट्टी में मिला देती है और साथ ही फसल के बीजों की कतारों में बुवाई भी करती जाती है. इस तरह पराली जलाए बिना ही गेहूं की फसल की बुवाई हो जाती है. सुपर सीडर में रोटावेटर, रोलर और फर्टीसीड ड्रिल लगा होता है. इसे ट्रैक्टर के साथ 12 से 18 इंच खड़ी पराली के साथ खेत में चलाया जाता है. रोटावेटर पराली को मिट्टी में दबाने, मिट्टी को समतल करने और फर्टीसीड ड्रिल खाद के साथ बीज की बुवाई करने का काम करता है. इसमें बीजों की बुवाई 2 से 3 इंच की गहराई पर होती है और बुवाई से पहले खेतों की सिंचाई की जरूरत नहीं होती.

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इससे धान की फसल में बची नमी का उपयोग हो जाता है, जिससे पानी की भी बचत होती है. पराली मिट्टी में मिलकर जैविक खाद का काम करती है. सुपर सीडर मशीन गेहूं की बुवाई के बाद रोटावेटर का काम भी कर सकती है. इसके उपयोग से पराली जलाने की समस्या का समाधान होता है और किसानों की उपज बढ़ती है और खर्च कम होता है. खेत में नमी ज्यादा समय तक रहती है, जिससे सिंचाई के लिए पानी की जरूरत कम होती है. इस मशीन की कीमत बाजार में 2 से 2.25 लाख रुपये तक होती है. 

पराली वाले खेत में हैप्पी सीडर से करें बुवाई

धान के पराली वाले खेत में बुवाई के लिए हैप्पी सीडर मशीन काफी अच्छी है. इस मशीन की मदद से गेहूं की बुवाई करने पर सिंचाई की जरूरत कम हो जाती है, क्योंकि धान की फसल के अवशेषों से खेत में नमी बनी रहती है. इससे पानी की बचत होती है और पराली मिट्टी में मिलकर जैविक खाद का काम करती है. हैप्पी सीडर मशीन को 45 से 50 हॉर्सपावर वाले ट्रैक्टर के साथ जोड़कर एक दिन में 6 से 7 एकड़ खेत की बुवाई की जा सकती है. इस विधि से फसलों की उपज भी बढ़ती है और खरपतवार की समस्या भी कम होती है.

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हैप्पी सीडर से गेहूं की बुवाई करने पर सिंचाई की जरूरत कम हो जाती है, क्योंकि धान की फसल के अवशेषों से खेत में नमी बनी रहती है. इससे पानी की बचत होती है और पराली मिट्टी में मिलकर जैविक खाद का काम करती है. हैप्पी सीडर मशीन को 45 से 50 हॉर्सपावर वाले ट्रैक्टर के साथ जोड़कर एक दिन में 6 से 7 एकड़ खेत की बुवाई की जा सकती है. इस तरीके से फसलों की उपज भी बढ़ती है और खरपतवार की समस्या भी कम होती है.

अगर आप भी पराली की समस्या से जूझ रहे हैं, तो गेहूं की बुवाई के लिए सुपर सीडर और हैप्पी सीडर जैसे यंत्र आपके लिए बेहद मददगार साबित हो सकते हैं. इन यंत्रों के उपयोग से न सिर्फ पराली का सही प्रबंधन किया जा सकता है, बल्कि पर्यावरण और मिट्टी की गुणवत्ता भी सुरक्षित रहती है, जिससे फसल उत्पादन भी बढ़ता है. 

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