
Organic Farming, Agriculture News: उत्तर प्रदेश के बरेली में एक होम्योपैथी डॉक्टर (Homeopathy Doctor) के खेती के प्रति लगाव ने उन्हें फसलों के डॉक्टर के नाम से मशहूर कर दिया. दरअसल, बरेली के डॉ. विकास वर्मा ने 'बैचलर ऑफ होम्योपैथी मेडिसिन' की डिग्री हासिल करने के बाद प्रैक्टिस में नाम कमाना शुरू किया, लेकिन अच्छी प्रैक्टिस के बाद भी उन्हें लगा कि जिंदगी में कुछ छूट रहा है और इसी छूटे हुए की तलाश में वह खेत-खलियान तक पहुंच गए और ऑर्गेनिक फार्मिंग करने लगे.
ऑर्गेनिक फार्मिंग में बिना पेस्टिसाइड के फसलों को कीट-पतंगों से बचना मुश्किल हो रहा था. तब डॉ. विकास वर्मा ने फसलों को बचाने के लिए अपनी होम्योपैथिक दवाओं के मिश्रण को कीटनाशक के तौर पर इस्तेमाल किया. यहीं से सफर शुरू हुआ एक होम्योपैथी डॉक्टर के फसलों के डॉक्टर बनने का. खुद की फसल पर सफल प्रयोग के बाद डॉक्टर साहब ने होम्योपैथी दवाओं से ऑर्गेनिक खेती करने वालो की निशुल्क मदद करनी शुरू कर दी.
बरेली में कुछ प्रगतिशील किसान परंपरागत रसायनिक कृषि को छोड़कर जैविक कृषि अपनाकर अपने सपनों को साकार करने की दिशा में कार्य कर रहे हैं. बरेली में कुछ प्रगतिशील किसान ऑर्गेनिक फसल कर रहे हैं. ऐसे ही बरेली शहर से लगभग सात किलोमीटर की दूरी पर रिठौरा के नजदीक माधव अग्रवाल का विनायक कृषि फार्म है, जहां पर वह धान, गेहूं, लेमन ग्रास, मेंथा सब्जियां आदि की खेती करते हैं. इस वर्ष उन्होंने पूर्वांचल में लगने वाले काले धान को चुना और बीज गोरखपुर से मंगवाया.
धान रोपते समय उनको इस बात का बिल्कुल भी अंदाजा नहीं था कि इसमें इतना जबरदस्त सूड़ी इल्ली का प्रकोप होता है. धान की बुवाई के बाद जब उन्होंने देखा कि 15 दिन के अंदर ही तना भेदक सूड़ी का प्रकोप होने लग गया. तब उन्होंने मार्केट में उपलब्ध जैविक कीटनाशक उत्पादकों को उपयोग किया, लेकिन असफलता हाथ लगी. धीरे-धीरे तना भेदक सूड़ी ने पूरी फसल को अपनी चपेट में ले लिया. जब यह लगने लगा कि अब यह फसल चौपट हो जाएगी, तभी अन्य किसानों से उनको डॉ. विकास वर्मा के बारे में पता चला, जो होम्योपैथिक दवाओं से कृषि करने वाले प्रगतिशील किसान भी हैं. माधव अग्रवाल ने डॉ. विकास वर्मा को अपनी फसल की समस्या बताई और उसको समझ कर इनको स्प्रे करने के लिए होम्योपैथिक की दवा दी. इस दवा को पानी में मिलाकर पूरी फसल पर विधिनुसार स्प्रे किया.
दसवें दिन ही दिखने लगा परिणाम
उसका परिणाम दसवें दिन से ही दिखना शुरू हो गया था. पूरी फसल से सूड़ी गायब हो चुकी थी. किसान लड़ैते राम बताते हैं कि दवा से जादुई लाभ हुआ. जहां एक ओर अन्य किसान जोकि रासायनिक विधि से खेती करते हैं. अब तक अपने खेतों में लगभग पांच से छह रासायनिक जहरीले कीटनाशकों का प्रयोग कर चुके हैं. वहीं, माधव अग्रवाल की फसल सिर्फ एक होम्योपैथिक दवा के स्प्रे से बीमारी मुक्त हो कर लहलहा रही है.
डॉ. विकास वर्मा ने बताया कि उन्होंने यह प्रयोग पहले अपने फार्म पर किया और इसी तकनीक से अमरूद, गन्ना, गेहूं, धान, सरसों, हल्दी, अलसी, लेमन ग्रास, मसूर, चना, उड़द आदि की खेती कर रहे हैं. साथ ही, भारत के कई प्रान्तों से किसान उनसे दवा मंगवा रहे हैं. जैसे- मध्य प्रदेश के मक्का और मिर्च के किसान, गुजरात के प्याज, मूंगफली और कपास के किसान. छत्तीसगढ़ के धान के टमाटर और अमरूद, महाराष्ट्र के मौसंबी, संतरा, अमरूद, उत्तर प्रदेश के आम, अमरूद, गन्ना गेहूं, धान, मेंथा, चना, मिर्च आदि.
उत्तराखंड के बेर, अमरूद के किसानों को फायदा
उत्तराखंड के बेर, अमरूद आदि के किसान लाभान्वित हुए हैं. उनका कहना है कि कीटनाशकों के अंधाधुंध प्रयोगों से कैंसर और किडनी फैलियर के मामले लगातार बढ़ रहे है. ऐसे में होम्योपैथी से कृषि यह एक ऐसा नवाचार है, जो आमजन की सेहत के साथ-साथ कृषि क्षेत्र में होने वाले खर्चों को बहुत हद तक घटाएगा और जहर मुक्त उत्तम गुणवत्ता वाली फसल का उत्पादन होगा. डॉक्टर विकास वर्मा बताते हैं कि जिस तरह होम्योपैथिक दवाइयां इंसानों पर काम करती हैं.
उसी तरह यह दवाइयां फसलों और पशुओं पर भी काम करती है. पौधे की रोग प्रतिरोधक शक्ति उसे शक्तिमान बनाती है और उसके तंत्र को मजबूत करती है और पौधे को अन्य बीमारियों व कीट पतंगों के प्रकोप से भी बचाती हैं. होम्योपैथिक दवाई पौधों की इम्यूनिटी पर काम करती है. इस तरह खेती में महंगे रसायनों का स्प्रे भी नहीं करना पड़ता और उत्तम क्वालिटी का जहर मुक्त उत्पादन होता है. उनका कहना है कि जैविक खेती से ही भारत की कृषि का गौरव वापस स्थापित होगा, जिससे कहीं-न-कहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के किसानों की आय दुगनी करने के प्रयास में मदद मिलेगी.