
भारत में अधिकतर किसान वही सालों से चली आ रही फसलों और पुरानी तकनीक के सहारे ही खेती करते हैं. ऐसे में उन्हें कोई खास मुनाफा भी नहीं होता और साथ ही जमीन की उर्वरक शक्ति भी धीरे-धीरे घटत जाती है. हालांकि, कुछ भारतीय किसान पूरी तरह से जागरूक हो गए हैं. किसान अब स्ट्रॉबेरी, मशरूम और मेंथा की फसलों पर अपना हाथ आजमा रहे हैं. इन्हीं में से एक प्रयोग है लेमनग्रास (Lemon Grass) की खेती. इसकी सबसे खास बात ये है कि इसे सूखाग्रस्त इलाकों में भी लगाया जा सकता है. लेमनग्रास लगाने में लागत भी ज्यादा नहीं है. साथ ही भारत सरकार एरोमा मिशन के तहत इसकी खेती को बढ़ावा दे रही है.
बनते हैं कई तरह के प्रोडक्ट
लेमनग्रास के पौधे के सबसे ज्यादा इस्तेमाल परफ्यूम, साबुन, निरमा, डिटर्जेंट, तेल, हेयर आयल, मच्छर लोशन, सिरदर्द की दवा व कास्मेटिक बनाने में भी प्रयोग किया जाता है. इन प्रोडक्ट्स में से जो महक आती है वह इस पौधे से निकलने वाले तेल की होती है. हालांकि, ज्यादातर लोग इस पौधे को लेमन टी की वजह से जानते हैं. इसकी खेती आजकल किसानों के लिए वरदान बनती जा रही है. भारत हर वर्ष करीब 700 टन नींबू घास के तेल का उत्पादन करता है. इसे बाहर विदेशों में भी भेजा जाता है. ऐसे में कई विदेशी कंपनियां में भी तेल की उच्च गुणवत्ता की वजह से काफी मांग है. जिसका सीधा असर किसानों के आमदनी के इजाफे के रूप में होगा.
बारहमासी मुनाफा देता है ये पौधा
लेमनग्रास पौधे इसकी खेती साल में किसी भी समय की जा सकती है, लेकिन अगर सबसे मुफीद महीने की बात करें तो जुलाई के शुरुआत में इसे लगाना ज्यादा सही है. सबसे पहले इसकी नर्सरी तैयार की जाती है, फिर बाद में इसकी रोपाई की जाती है. इस पौधे की घास काफी घनी होती है, ऐसे में इसका विकास बेहतर हो इसके लिए दो-दो फीट की दूरी पर बोने की सलाह दी जाती है.
गोबर की खाद और लकड़ी की राख और 8-9 सिंचाई में ये पौधा तैयार होकर लहलहाने लगती है. इस फसल की जो सबसे खास ये है कि एक तो इसकी खेती में ज्यादा लागत नहीं लगती. दूसरा इसे लगाने के बाद 7-8 साल तक इसकी दोबारा रोपाई से छुटकारा पा जाएंगे और हर साल 5 से 6 कटाई संभव है. इस हिसाब से जितना जितना बड़े स्तर इसकी खेती की जाएगी, उतना ही मुनाफा होगा.
हर जगह बाजार उपलब्ध
अक्सर नए फसलों की खेती करने वाले किसानों को उसके बाजार की चिंता रहती. लेकिन इस फसल को लेकर ज्यादा चिंता करने की आवश्यकता नहीं है. आजकल इस पौधे के तेल से तमाम तरह के प्रोडक्ट बनते हैं, उन्हें बनाने वाली कंपनियां इसे हाथोंहाथ लेती हैं. ऐसे में अगर आपके पास तेल की पेराई की सुविधा भी ना हो तो भी कंपनियां इसका भार उठाने को तैयार रहती हैें.