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Animal Care: मॉनसून में ज्यादा बीमार पड़ते हैं पशु, दिखाई दें ये लक्षण तो हो जाएं सावधान, जानें कैसे रखें पशुओं का ख्याल

Animal Care Tips: राजस्थान में लंपी वायरस की चपेट में आकर अब तक 100 से ज्यादा पशुओं की मौत हो चुकी है. ऐसे में लक्षण देखकर पशुओं की बीमारी को पहचानना बेहद जरूरी है. जिससे किसानों को भारी नुकसान झेलना पड़ सकता है. आइए जानते हैं लक्षणों को देखकर कैसे आप पशुओं के बीमार होने का अंदाजा लगा सकते हैं.

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aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 31 जुलाई 2022,
  • अपडेटेड 9:42 AM IST
  • मॉनसून में पशुओं के संक्रमित होने का खतरा
  • राजस्थान में लंपी वायरस का कहर

How to take care of Animals in Rainy Season: मॉनसून की बारिश कई सारी बीमारियां लेकर आती है. इंसानों से लेकर जानवरों तक में संक्रमित होने का खतरा बढ़ जाता है. लेकिन अपनी बीमारियों को बताने में असमर्थ होते हैं. ऐसे में पशुओं में कुछ लक्षणों को देखकर आप उनके बीमार होने का अंदाजा लगा सकते हैं.

ग्रामीण क्षेत्रों में अधिकतर लोग गाय या भैंसे पालते हैं. कई बार देखा जाता है कि पशुओं में लंपी वायरस जैसे कई तरह के रोग लग जाते हैं. ये रोग इन पशुओं को कमजोर कर देते हैं. कई स्थितियों में  पशुओं की मौत भी हो जाती है. राजस्थान में लंपी वायरस की चपेट में आकर 100 से ज्यादा पशुओं की मौत हो चुकी है. ऐसे में पशुपालकों के लिए बेहद महत्वपूर्ण है कि लक्षण देखकर पशुओं की बीमारी को पहचान लिया जाए, वरना भारी नुकसान झेलना पड़ सकता है.

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खुरपका- मुंहपका रोग
खुरपका और मुंहपका रोग पशुओं में तेजी से फैलने वाला विषाणु जनित रोग है. मॉनसून के महीने में ये रोग पशुओं में अक्सर देखा जाता है. इससे पशुओं के दुग्ध उत्पादन क्षमता पर प्रभाव पड़ता है. पशुओं के मुंह से अत्यधिक लार टपकना, जीभ बाहर आना या पशु का जुगाली बंद होना इस रोग के मुख्य लक्षण हैं. पशुओं में जब ये रोग दिखाई दे तो अन्य स्वस्थ पशुओं से दूर कर दें. डॉक्टर की सलाह लेकर पशु इलाज कराना शुरू कर दें.

गलघोंटू
गलघोंटू एक घातक बीमारी है जो मानसून के दौरान गाय भैंसे इस बीमारी के चपेट में आ जाते हैं. इस बीमारी में पशुओं को तेज बुखार होता है और उनकी चंद घंटे में मौत हो जाती है. अगर आपका पशु लार टपका रहा हो या उसे सांस लेने में दिक्कत हो तो तुरंत पशु चिकित्सक से सलाह लें. बता दें कि अगर पशु का इलाज समय पर शुरू कर दिया जाए तब भी इस जानलेवा बीमारी से पशु को बचाने की उम्मीद काफी कम होती है.
 

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