
हाल के कुछ वर्षों में मशरूम की खेती को लेकर देश के किसानों के बीच लोकप्रियता बढ़ी है. छोटे गांवों से लेकर आदिवासी इलाकों तक में अच्छे-खासे पैमाने पर मशरूम की खेती की जाने लगी है. इसी कड़ी में महाराष्ट्र के सतपुड़ा जंगल के आदिवासी भी मशरूम की खेती करने लगे हैं.
इस इलाके में कैसे शुरू हुई मशरूम की खेती?
महाराष्ट्र के नंदुरबार जिले के रहने वाले राजेंद्र वसावे क्षेत्र में मशरूम की खेती कर असंभव चीज को संभव कर दिखाया है. सबसे पहले उन्होंने गुजरात जाकर मशरूम की खेती का प्रशिक्षण लिया. वापस लौटकर, सतपुड़ा डोंगर के गांवों काठी, मोहाड़ी के बेरोजगार युवाओं को प्रशिक्षित किया. अब यही युवा मशरूम की खेती से अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं.
नंदुरबार के सतपुड़ा के इलाकों में न मोबाइल नेटवर्क है, न ही पर्याप्त संचार सुविधाएं, पीने का साफ पानी भी नहीं उपलब्ध है, अस्पताल भी नहीं है. यहां के आदिवासी समुदाय के अधिकतर लोग छोटे-मोटे काम करके अपनी आजीविका चलाते हैं और खेती करके आपना पेट भरते हैं. ऐसे में यहां के किसान मशरूम की खेती से अच्छा पैसा हासिल कर रहे हैं.
महीने में 10 से 12 हजार का मुनाफा
मशरूम की खेती करने वाले यहां के अधिकतर आदिवासी किसान 10 बाय 10 की छोटी सी जगह में भी ब्लू ऑयस्टर मशरूम की खेती कर रहे हैं. इस मशरूम का उत्पादन मात्र 15 दिनों में हो जाता है. महीने में दो से तीन बार इस मशरूम की खेती करना संभव है. किसान को इससे आराम से महीने में 10 से 12 हजार रुपये का मुनाफा हो जाता है. यही वजह है कि इस गांव के कई युवा अब मशरूम की खेती की ओर रुख कर रहे हैं.
(नंदुरबार से रोहिणी ठाकुर की रिपोर्ट)