
दिल्ली में सर्दियों का मौसम आने से पहले किसान, फसल कटाई पर फोकस कर रहे हैं. तो सरकार पराली को जलने से रोकने की तैयारियों में जुट गयी है. इस बीच 'आजतक' की टीम ने साउथ-वेस्ट दिल्ली के नजफगढ़ में झटीकरा गांव पहुंचकर किसानों से बातचीत की और ये जानने की कोशिश की है कि क्या किसान इस साल अपने खेतों में बायो डी-कंपोजर का छिड़काव करवाना चाहते हैं? दिल्ली सरकार ने इस साल बासमती और नॉन बासमती खेतों में कटाई के बाद बायो डी-कंपोजर के छिड़काव का ऐलान किया है. फिलहाल कृषि विभाग गांव-गांव जाकर किसानों के बीच बायो डी-कंपोजर के छिड़काव को लेकर सर्वे कर रहा है.
'आजतक' की टीम ने किसानों के साथ खेत में सर्वे कर रहे कृषि विभाग के अधिकारी सतेंदर कुमार मलिक से बातचीत की. उन्होंने बताया कि किसान बायो डी-कंपोजर के छिड़काव को लेकर उत्सुक हैं. अधिकारी के मुताबिक पिछले साल साउथ-वेस्ट दिल्ली के 1700 एकड़ खेतों में बायो डी-कंपोजर का छिड़काव हुआ था, जबकि इस साल सर्वे के दौरान 4000 एकड़ खेत मे छिड़काव के लिए किसानों ने सहमति जताई है.
दिल्ली सरकार ने कृषि विभाग के अधिकारियों के साथ 25 सदस्यीय तैयारी समिति (मेंबर प्रिपरेशन कमेटी) बनाई है. यह समिति दिल्ली के सभी गांव में जाकर किसानों से एक फॉर्म भरवा रही है. फार्म में किसान कितने एकड़ खेत में छिड़काव करवाना चाहते हैं और कब उनकी फसल कब कटेगी? यह दोनों रिकॉर्ड में शामिल कर रहे हैं. किसान जितने एकड़ खेत में बायो डी-कंपोजर के छिड़काव की मांग और छिड़काव की तारीख फॉर्म में दर्ज कर रहे हैं, उसी हिसाब से उनके खेत में छिड़काव का इंतजाम किया जाएगा.
'आजतक' की टीम ने सर्वे के दौरान खेतों में कटाई करवा रहे किसानों से बातचीत की. पिछले 17 साल से किसानी कर रहे 42 साल के किसान बालकृष्ण ने पिछले साल 53 एकड़ खेत मे बायो डी-कंपोजर का छिड़काव करवाया था. बालकृष्ण ने कहा कि बायो डी-कंपोजर से फायदा हुआ है. मेरी वजह से पड़ोसी भी किसान बायो डी-कंपोजर के छिड़काव में दिलचस्पी दिखा रहे हैं. किसान बालकृष्ण ने कहा कि जब बायो डी-कंपोजर का छिड़काव नही होता था तब कई बार जुताई करनी पड़ती थी और जुताई के बावजूद खेत में धान के अवशेष रह जाते थे. जबकि बायो डी-कंपोजर से पराली जल्दी गल जाती है. बायो डी-कंपोजर में गुड़ और बेसन का घोल होता है, जो मिट्टी में केंचुओं के लिए भोजन होता है जिससे मिट्टी उर्वरक हो जाती है. किसान बालकृष्ण ने दावा किया कि बायो डी-कंपोजर के छिड़काव के बाद प्रति एकड़ गेंहू की फसल में 4 से 5 मन का फायदा हुआ था.
वहीं पिछले साल बायो डी-कंपोजर के छिड़काव से घबरा रहे किसान संजीव कुमार ने कहा कि बायो डी-कंपोजर का रिजल्ट क्या होगा, क्या नहीं होगा? ये सोचकर काफी डरा हुआ था. हम 20 एकड़ खेत पर फसल उगाते हैं लेकिन बायो डी-कंपोजर का छिड़काव 5 एकड़ जमीन पर ही कराया था. मैं डरा हुआ था कि आगे की फसल में नुकसान हो जाएगा लेकिन अब डर ख़त्म हो गया है और पराली अच्छे से गल रही है तो 20 एकड़ में बायो डी-कंपोजर का छिड़काव करवाएंगे. सबसे बड़ा फायदा ये है कि कम जुताई में नई फसल की बुआई कर देते हैं. पिछली बार मुझे पछतावा हुआ लेकिन इस साल छिड़काव करवाने के लिए सर्वे में सहमति दी है.
जानें क्या है बायो डी-कंपोजर बनाने की तकनीक:
पराली को खाद में बदलने के लिए भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान ने 20 रूपए की कीमत वाली 4 कैप्सूल का एक पैकेट तैयार किया है. प्रधान वैज्ञानिक युद्धवीर सिंह के मुताबिक 4 कैप्सूल से छिड़काव के लिए 25 लीटर घोल बनाया जा सकता है और एक हेक्टेयर में इसका इस्तेमाल कर सकते हैं. सबसे पहले 5 लीटर पानी में 100 ग्राम गुड़ उबालना है और ठंडा होने के बाद घोल में 50 ग्राम बेसन मिलाकर कैप्सूल घोलना है. इसके बाद घोल को 10 दिन तक एक अंधेरे कमरे में रखना होगा. जिसके बाद पराली पर छिड़काव के लिए पदार्थ तैयार हो जाता है. इस गोल को जब पराली पर छिड़का जाता है तो 15 से 20 दिन के अंदर पराली गर्मी शुरू हो जाती है और किसान अगली फसल की बुवाई आसानी से कर सकता है. आगे चलकर यह पराली पूरी तरह गलकर खाद में बदल जाती है और खेती में फायदा देती है.
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अनुसंधान के वैज्ञानिकों के मुताबिक किसी भी कटाई के बाद ही छिड़काव किया जा सकता है. इस कैप्सूल से हर तरह की फसल की पराली खाद में बदल जाती है और अगली फसल में कोई दिक्कत भी नहीं आती है. कैप्सूल बनाने वाले वैज्ञानिकों ने पर्याप्त कैप्सूल के स्टॉक का दावा किया है. वैज्ञानिकों का कहना है कि पराली जलाने से मिट्टी के पौषक तत्व भी जल जाते हैं और इसका असर फसल पर होता है. युद्धवीर सिंह ने कहा कि ये कैप्सूल भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान द्वारा बनाया गया है. ये कैप्सूल 5 जीवाणुओं से मिलाकर बनाया गया है जो खाद बनाने की रफ़्तार को तेज़ करता है.
बता दें, केजरीवाल सरकार ने पिछले साल की तरह इस बार भी इच्छुक किसानों के खेत में बायो डी-कंपोजर का निःशुल्क छिड़काव करने के लिए घोल बनाने की तैयारी शुरू कर दी है. मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल 24 सितंबर को बायो डी-कंपोजर का घोल बनाने की प्रक्रिया की शुरूआत करेंगे. भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, पूसा के सहयोग से कड़कड़ी नाहर में यह घोल तैयार किया जाएगा. इस बार 2 हजार एकड़ के बजाय 4 हजार एकड़ खेत के लिए घोल तैयार किया जाएगा और इस पर करीब 50 लाख रुपए खर्च आएगा.
पर्यावरण मंत्री गोपाल राय ने कहा है कि पिछली बार जब हम दिल्ली में पराली से निजात के लिए बायो डी-कंपोजर के छिड़काव की तैयारी कर रहे थे, तब कई किसानों का यह कहना था कि थोड़ा जल्दी तैयारी करनी चाहिए थी, ताकि गेहूं की बुवाई में देर ना हो. पिछली बार हमने 5 अक्टूबर से बायो डी-कंपोजर का घोल बनाना शुरू किया था, लेकिन इस बार सरकार ने पहले से ही इसकी तैयारी करने का निर्णय लिया है.
हमने निर्णय लिया है कि हम 24 सितंबर को बायो डी-कंपोजर घोल बनाने की तैयारी शुरु कर देंगे. पिछली बार हमने कड़कड़ी नाहर स्थित हॉर्टिकल्चर डिपार्टमेंट के नर्सरी में पूरी दिल्ली के लिए सेंट्रलाइज घोल बनाया था. इस बार भी वहीं पर 24 सितंबर से सेंट्रलाइज घोल बनाना शुरू करेंगे. 29 सितंबर तक हम घोल की मात्रा को दोगुना कर लेंगे और 5 अक्टूबर तक छिड़काव के लिए घोल बनकर तैयार हो जाएगा. 5 अक्टूबर के बाद जहां से भी दिल्ली के अंदर मांग आएगी, हम वहां पर छिड़काव की प्रक्रिया शुरू कर देंगे. पिछली बार हमने 5 अक्टूबर से घोल बनाने की प्रक्रिया शुरू की थी, जबकि इस बार 5 अक्टूबर तक घोल बना कर तैयार कर लेंगे.