गेहूं निर्यात बैन को सरकार बता रही महंगाई रोकने वाला कदम, किसान क्यों कर रहे विरोध?

गेहूं के निर्यात पर रोक लगाने से केंद्र सरकार ने महंगाई को तो काबू में लाने का दावा किया है, लेकिन किसान नाराज हो गए हैं. उन्हें इस फैसले में अपना नुकसान दिख रहा है. वे इसे किसान विरोधी फैसला मान रहे हैं.

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Wheat Export Ban से किसान नाराज Wheat Export Ban से किसान नाराज

मनजीत सहगल

  • चंडीगढ़,
  • 16 मई 2022,
  • अपडेटेड 5:21 PM IST
  • किसानों का तर्क, फसल पहले ही बेच दी, कोई फायदा नहीं
  • विपक्ष बोला- सरकार ने नहीं खरीदा किसानों से समय रहते गेहूं
  • सरकार का तर्क- दाम में आएगी कमी, महंगाई से मिलेगी राहत

केंद्र सरकार की तरफ से गेहूं के निर्यात पर रोक लगा दी गई है. गेहूं के बढ़ते दामों को काबू में लाने के लिए सरकार ने ये फैसला लिया है. तर्क दिया जा रहा है कि इस कदम की वजह से बढ़ती महंगाई से राहत मिल सकती है. गेहूं की कीमतों में गिरावट देखने को मिल सकती है. लेकिन जिस फैसले का सरकार और कुछ व्यापारी संगठन स्वागत कर रहे हैं, कई किसान उसी फैसले से खुश नहीं हैं.

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किसानों को कैसे नुकसान हो रहा?

किसानों की नजरों में गेहूं के निर्यात पर लगाए गए बैन की वजह से उन्हें भारी नुकसान उठाना पड़ेगा. इसके अलावा क्योंकि सरकार ने अब गेहूं खरीद के नियमों में ढील देने का फैसला किया है, कई किसान इसे भी अपने लिए नुकसान मान रहे हैं. किसानों का मानना है कि गेहूं पर लगाए गए निर्यात बैन की वजह से अब वे कम दामों में अपनी उपज बेचने को मजबूर होंगे, वहीं दूसरी तरफ सरकार ने खरीद के नियमों में जो ढील दी है, उसका फायदा किसानों से ज्यादा उन निजी प्लेयर्स को होने वाला है जिन्होंने उनसे काफी पहले ही गेहूं खरीद लिया था.

इस बारे में मोहाली के किसान जसप्रीत सिंह बताते हैं कि गेहूं पर लगाए गए निर्यात बैन को तुरंत हटा देना चाहिए. उनकी माने तो सूखे की वजह से पहले ही किसानों ने काफी नुकसान झेला है, अब उन्हें पूरा हक है कि उन्हें अपनी फसल का उचित दाम मिले. किसान नेता रुलदू सिंह मानसा भी सरकार के इस फैसला का विरोध कर रहे हैं. जोर देकर कहा जा रहा है कि सरकार के इस फैसले से किसानों से ज्यादा निजी प्लेयर्स को फायदा होने वाला है.

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सरकार ने फैसला देर से लिया?

वे कहते हैं कि खरीद के नियमों में ढील देना, खरीद अवधि को बढ़ा देना, इन तमाम फैसलों से सिर्फ निजी खिलाड़ियों को फायदा पहुंचने वाला है क्योंकि किसान तो पहले ही उन्हें अपनी फसल बेच चुके हैं. ये बैन लगाने का फैसला भी सरकार ने तब लिया है जब किसानों द्वारा पहले ही ज्यादातर गेहूं निर्यात के लिए भेजा जा चुका है.

अब सिर्फ किसान नेता ही इस फैसले का विरोध नहीं कर रहे हैं, कुछ राजनीतिक दल भी सरकार पर निशाना साध रहे हैं. पंजाब में बीजेपी से अलग हो चुका अकाली दल भी केंद्र के इस फैसले पर सवाल खड़े कर रहा है. इसे किसान विरोधी करार दिया जा रहा है. मांग की गई है कि इस बैन को तत्काल प्रभाव से हटा दिया जाए और अगर ये पाबंदी नहीं हटाई जाती तो सभी किसानों को इसका समय रहते हरजाना दिया जाए. सुखबीर बादल कहते हैं कि इस बैन की वजह से गेहूं की कीमत कम रहने वाली है. अगर इस बैन को नहीं हटाया गया, तो किसानों को कम से कम 500 रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से मुआवजा देना चाहिए.

वहीं आप प्रवक्ता मलविंदर सिंह कांग भी मानते हैं कि एक्सपोर्ट से किसानों को जो लाभ मिल सकता है, उनसे उन्हें वंचित रखना सही फैसला नहीं है. वे भी यही चाहते हैं कि इस बैन को तुरंत हटा दिया जाए. वैसे उन्होंने सरकार के खरीद अवधि को बढ़ाने वाले फैसले का स्वागत किया है.

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निजी खिलाड़ियों को ज्यादा छूट देना गलत?

कुछ अर्थशास्त्री भी सरकार के इस फैसले को तर्कसंगत नहीं मान रहे हैं. उनकी नजरों में सरकार ने निजी प्लेयर्स को जरूरत से ज्यादा छूट दे रखी है. उनका किसानों से सीधे फसल का खरीदना भी थोड़ा नुकसान दे गया है. इस बारे में अर्थशास्त्री देविंदर शर्मा बताते हैं कि रूस-यूक्रेन युद्ध की वजह से किसानों को कुछ मुनाफा हो सकता था, लेकिन असल फायदा कुछ प्राइवेट प्लेयर्स ले गए.

कुछ आंकड़ों के जरिए देविंदर शर्मा ने समझाया कि जो इन निजी खिलाड़ियों ने किसानों से तो गेहूं 2300 से लेकर 2400 रुपये क्विंटल तक में खरीदा, लेकिन बाद में अंतरराष्ट्रीय बाजार में उसी गेहूं को 4000 रुपये प्रति क्विंटल तक के दाम में बेच दिया है. ऐसे में सारा मुनाफा इन निजी प्लेयर्स के पास चला गया और किसान खाली हाथ रह गए. वे मानते हैं कि अगर सरकार खुद किसानों से गेहूं खरीदती, तो इससे किसानों को भी फायदा पहुंचता और ये तत्काल प्रभाव से बैन लगाने की भी जरूरत नहीं पड़ती.

खबर तो ऐसी भी सामने आई है कि कुछ निजी खिलाड़ियों ने इस बात का फायदा उठाया है कि उन्हें मार्केट कमेटी फी से छूट दे दी गई है. इस वजह से पहले तो उन्होंने भारी मात्रा में गेहूं की जमाखोरी की और फिर बाद में उसे अंतरराष्ट्रीय बाजार में बेच दिया. ये भी बताया जा रहा है कि निजी प्लेयर किसानों से जो भी फसल खरीदते हैं, औपचारिक रूप से उसका कोई रिकॉर्ड नहीं है.

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दुनिया ने भारत के फैसले का स्वागत किया या विरोध?

अब एक बार के लिए सरकार अपने फैसले से पीछे नहीं हटने वाली है, लेकिन इसका विरोध जमीन पर तेज हो गया है. इस फैसले की आलोचना कुछ अंतराराष्ट्रीय संगठन भी कर रहे हैं. जी 7 के सदस्य जर्मनी के कृषि मंत्री केम ओजडेमिर ने कहा है कि भारत के इस कदम से दुनियाभर में खाद्यान्न संकट बढ़ेगा.

संयुक्त राष्ट्र के वर्ल्ड फूड प्रोग्राम के चीफ इकोनॉमिस्ट आरिफ हुसैन ने बताया कि वो गेहूं की खरीद के लिए भारत से बात कर रहे हैं, क्योंकि रूस-यूक्रेन जंग से कई देशों को खाद्य सुरक्षा की चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है. उन्होंने बताया कि कुछ दिन पहले ही वर्ल्ड फूड प्रोग्राम, IMF, वर्ल्ड बैंक और वर्ल्ड ट्रेड ऑर्गनाजेशन (WTO) जैसी संस्थाओं ने सरकारों से गेहूं के निर्यात पर रोक न लगाने की अपील की थी, ताकि कीमतों को बढ़ने से रोका जा सके.

सरकार के वो तर्क जिससे किसान सहमत नहीं

लेकिन सरकार इस आलोचना को ज्यादा गंभीरता से नहीं ले रही है. उनकी नजरों में देश में गेहूं की कमी ना हो, ये पहली प्राथमिकता है. इसके अलावा आर्थिक संकट से जूझ रहे श्रीलंका और कुछ दूसरे देशों तक भी समय रहते गहूं की सप्लाई होती रहे, इसलिए भी निर्यात पर रोक लगाई गई है. सरकार इस बात पर भी जोर दे रही है कि पिछले एक साल में गेहूं और आटे की कीमतों में 14 से 20 फीसदी तक की बढ़ोतरी हुई है, वहीं उत्पादन में कमी देखने को मिली है. एक आंकड़ा ये भी जारी किया गया है कि सालाना हो रहे गेहूं उत्पादन में 42 फीसदी तक की कमी दर्ज हो सकती है. वहीं क्योंकि किसान भी दाम बढ़ने की वजह से फसल बेचने के बच रहे हैं, इस कारण भी उत्पादन में कमी रह सकती है.

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