
ताल की गति के साथ उंगलियां जिस तरह अलग-अलग भाव पर अपनी भंगिमा बदल लेती थीं, आंखों की पुतलियां भी उतनी ही तेजी से कभी कोरों तक आतीं तो कभी दूसरी तरफ जाते हुए दर्शकों की आंखों से जा मिलतीं, लेकिन ठहरती नहीं, बल्कि गीत की अगली पंक्ति में आने वाले अगले शब्द के भाव के अनुसार खुद को ढाल लेतीं थीं.
इस तरह पैरों की थाप जो मृदंगम की ताल के साथ कदमताल कर रही थी, गीत के अनुसार आगे बढ़ती जाती थी और ओडिसी नृत्य की प्रस्तुति देती इन नृत्यांगनाओं का समूह कभी कमलिनी सा खिलता नजर आता, कभी चांदनी सा चमकता, तो कभी तितलियों सा मचलता तो कभी लहरों की तरह उफान पर तो नदियों की तरह बहता सरीखा लग रहा था.
‘नृत्य मोहा’ की प्रस्तुति ने मोहा मन
मौका था, उत्सव एजुकेशनल एंड कल्चरल सोसाइटी द्वारा आयोजित और पद्मश्री व संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से सम्मानित गुरु रंजना गौहर की शिष्याओं द्वारा ‘नृत्य मोहा’ की प्रस्तुति का. ओडिसी नृत्य की मनमोहक प्रस्तुति ने दर्शकों पर ऐसी सम्मोहिनी शक्ति चलाई कि, 21वीं सदी का मौजूदा जनसमूह समय में पीछे की ओर सफर करते हुए शताब्दियों के प्राचीन सफर पर निकल पड़ा, और जब ठहरा तो वहां पहुंच चुका था, जहां 12वीं शताब्दी में महान भक्ति कवि जयदेव, गीत-गोविंद की रचना कर रहे थे और उनके शृंगार में पगे भक्ति गीतों और भजनों में राधा-कृष्ण का आध्यात्मिक प्रेम बिखरा पड़ा था.
नृत्यांगना स्वाति शर्मा ने राग पहाड़ी पर आधारित इस भक्ति गीत पद रचना पर भावपूर्ण प्रस्तुति दी. उनकी भंगिमाओं में राधा की मूर्ति मंच पर यूं साकार हो उठी कि मानो वो मधुवन की घनी लताओं के बीच किसी छायादार तरुवर के नीचे बैठ अपने प्रियतम कान्हा को पुकार रही हैं. इससे पहले अर्चिषा आर्या ने महादेव शिव की आराधना की गंगा की लहरों के साथ-साथ काशी की भक्ति यात्रा कराई. राग आसावरी में बंधी इसी भावपूर्ण बंदिश में उन्होंने नृत्य के जरिए जहां पहले राजीव लोचन जगदीश्वर विष्णु की आराधना की तो इसी के साथ त्रिनेत्रधारी त्रयम्बकेश्वर के चरणों में भी प्रणाम किया.
'विश्वेशर दर्शन को चलो मन काशी' भजन पर अर्चिषा ने ऐसी नृत्य अर्चना की कि मन आदि महादेव की भक्ति के रंग में रंग गया.
इन प्रस्तुतियों से पहले गुरु रंजना गौहर की पांच शिष्याओं, स्वाति शर्मा, उर्जस्वी दत्ता, अर्चिषा आर्य, शंभवी गुप्ता और लावण्या चुग ने अपनी शानदार प्रस्तुतियां सामूहिक तौर पर सामने रखीं, जिनमें भाव और भक्ति का अद्भुत समायोजन देखने को मिला. सबसे पहले ‘मातृ भूमि मंगलाचरण’ प्रस्तुत किया गया, जिसमें धरती मां को नमन करते हुए उनकी दिव्यता और संगीत की महत्ता को दर्शाया गया.
इसके बाद उर्जस्वी दत्ता ने ‘राधा रानी’ की प्रस्तुति दी, जिसमें राधा और कृष्ण के होली के उत्सव को जीवंत किया गया. शंभवी गुप्ता ने ‘शंकराभरणम पल्लवी’ पेश किया, जिसमें सरल से जटिल गतियों के जरिये आध्यात्मिक प्रगति का मार्ग सामने रखा गया. लावण्या चुग ने ‘संगिनी रे चाहन’ नृत्य से रंग जमाया, जो प्रसिद्ध कवि बन्माली दास की कृष्ण भक्ति पर आधारित था. अर्चिषा आर्य ने ‘विश्वेश्वर’ प्रस्तुत किया, जिसमें राजा स्वाति तिरुनल की रचना के जरिए भगवान शिव की महिमा और वाराणसी की आध्यात्मिक यात्रा को नृत्य के जरिए जीवंत कर दिया.
गुरु-शिष्य परंपरा की अमूल्य विरासत
अपने शिष्यों के प्रदर्शन से अभिभूत गुरु रंजना गौहर ने कहा, "अपनी शिष्याओं को मंच पर प्रदर्शन करते देखना मेरे लिए गर्व और आनंद का क्षण है. वे केवल प्रतिभाशाली नृत्यांगनाएं ही नहीं, बल्कि सच्ची साधक भी हैं, जिन्होंने अपने नृत्य में भाव, समर्पण और कला की गहराई को आत्मसात किया है. गुरु-शिष्य परंपरा की यह अमूल्य विरासत देखकर मन आनंदित होता है."
‘नृत्य मोहा’ न केवल ओडिसी नृत्य की उत्कृष्टता का प्रदर्शन था, बल्कि यह गुरु-शिष्य परंपरा का एक सजीव उदाहरण भी बना. इस कार्यक्रम के माध्यम से दर्शकों को ओडिसी नृत्य की परंपरा, भक्ति और नवीनता का अद्भुत मिश्रण देखने को मिला.
बता दें कि बीते रविवार (16 मार्च 2025) संस्कृति मंत्रालय के समर्थन से, सी.डी. देशमुख सभागार, इंडिया इंटरनेशनल सेंटर, नई दिल्ली में इस अभूतपूर्व कार्यक्रम का आयोजन हुआ, जिसमें बतौर मुख्य अतिथि प्रसिद्ध नृत्यांगना पद्म विभूषण डॉ. सोनल मानसिंह की भी मौजूदगी रही.
इस मौके पर ओडिसी नृत्यकला पर एक संगोष्ठी और विचार-विमर्श सत्र भी आयोजित हुआ. ‘ओडिसी एट द क्रॉसरोड्स’ नाम के इस सत्र में ओडिसी नृत्य के विकास, संगीत, साहित्य और तकनीकी पक्षों पर विचार रखे गए. पैनल में पद्मश्री माधवी मुद्गल, शैरन लोवेन (साहित्य), ज्योति श्रीवास्तव (संगीत), कविता द्विवेदी (तकनीक) मौजूद रहीं. पैनस और परिचर्चा का संचालन खुद, डॉ. सोनल मानसिंह ने किया.