
प्रयागराज के रेतीले तटों पर, जहां गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती का संगम होता है, वहां महाकुंभ में नागा साधुओं की उपस्थिति आध्यात्मिकता की जीवंत प्रतिमा के रूप में दिखती है. भस्म से ढके शरीर, लंबी जटाएं, आंखों में प्राचीन ज्ञान की ज्वाला और नग्न देह—यह सब नागा साधुओं को एक अलग पहचान देती है. ये योद्धा सन्यासी भक्ति, वैराग्य और शक्ति के जीवंत स्वरूप माने जाते हैं.
इंडिया टुडे कॉन्क्लेव में शुक्रवार को श्री पंचायती महानिर्वाणी अखाड़े के दिगंबर मणिराज पुरीजी महाराज ने शिरकत की, जिन्होंने नागा साधुओं के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डाला. इस दौरान उन्होंने बंदीप सिंह (इंडिया टुडे के ग्रुप फोटो एडिटर) की नागा साधुओं के जीवन पर आधारित खास फोटोग्राफी पर बात की. बंदीप सिंह ने कहा कि, नागा साधुओं की परंपरा अत्यंत प्राचीन है. ये संन्यासी हिंदू धर्म के संन्यास आश्रम की कठोरतम धारा का पालन करते हैं. इनके शरीर पर लगी भस्म केवल एक आभूषण नहीं, बल्कि त्याग और वैराग्य का प्रतीक है. जब सबकुछ जलकर भस्म हो जाता है, तब केवल सत्य शेष रह जाता है. नागा साधु इसी दर्शन को अपनाते हैं और इसे अपने जीवन का मूल बनाते हैं.
हाल ही में प्रयागराज में आयोजित महाकुंभ में नागा साधुओं की अद्भुत छवियां देखने को मिलीं. सात वर्षों में दो कुंभ मेलों में खींची गई इन तस्वीरों को एक प्रदर्शनी में प्रदर्शित किया गया. इन चित्रों में नागा साधुओं के दैनिक जीवन, उनकी साधना और उनकी विशिष्ट जीवनशैली को दर्शाया गया.
नागा साधुओं की रहस्यमयी भस्म साधना
एक तस्वीर में नागा साधु अपनी जटाओं को झटकते हुए भस्म को हटा रहे हैं. भस्म, जिसे वे अत्यंत पवित्र मानते हैं, केवल उनकी पहचान नहीं, बल्कि उनके वैराग्य का प्रतीक है. यह दर्शाता है कि सांसारिक इच्छाएं जलकर समाप्त हो गई हैं और केवल आत्मिक शुद्धता शेष रह गई है.
क्या सच में क्रोधित होते हैं नागा साधु?
नागा साधुओं को अक्सर उनके उग्र स्वभाव के लिए जाना जाता है, लेकिन यह केवल एक बाहरी आवरण है. ऐतिहासिक रूप से, नागा साधु केवल सन्यासी नहीं, बल्कि योद्धा भी रहे हैं. वे अपने अखाड़ों की रक्षा के लिए योद्धाओं की तरह प्रशिक्षण लेते हैं. उनका क्रोधित रूप केवल एक सुरक्षा कवच होता है, जो उन्हें बाहरी हस्तक्षेप से बचाता है. यह उग्रता उनके साधना में किसी प्रकार की बाधा को रोकने के लिए होती है.
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नागा साधु और चिलम का रहस्य
नागा साधुओं को अक्सर चिलम पीते देखा जाता है. गांजा और भांग का सेवन उनकी परंपरा का हिस्सा है. कई साधु मानते हैं कि यह ध्यान और साधना में सहायता करता है. यह उनके ध्यान को गहराई देने में मदद करता है और सांसारिक इच्छाओं, विशेष रूप से भूख और वासना को नियंत्रित करने में सहायक होता है.
भस्म लगाने की विधि और महत्व
एक युवा नागा साधु को भस्म लगाते हुए देखा गया, मानो कोई नृत्य मुद्रा में हो. प्रत्येक बार जब वे भस्म लगाते हैं, तो वे पवित्र मंत्रों का जाप करते हैं. सफेद भस्म यह दर्शाता है कि वे अपनी समस्त सांसारिक इच्छाओं को जला चुके हैं और अब केवल आध्यात्मिक मार्ग पर अग्रसर हैं.
धूना: नागा साधुओं की तपस्या का केंद्र
नागा अखाड़ों में धूना (अग्निकुंड) को विशेष महत्व प्राप्त है. यह केवल एक अग्निकुंड नहीं, बल्कि एक जीवंत देवता की तरह पूजा जाता है. नागा साधु इस धूने के चारों ओर बैठकर अपनी साधना करते हैं. वे मानते हैं कि धूना का ताप आत्मशुद्धि और तपस्या का प्रतीक है.
क्या नागा साधु हमेशा नग्न रहते हैं?
एक आम धारणा यह है कि सभी नागा साधु हमेशा नग्न रहते हैं. हालांकि, यह सत्य नहीं है. कई नागा साधु सामान्य संन्यासियों की तरह मंदिरों, आश्रमों और गुफाओं में रहते हैं और नियमित वस्त्र पहनते हैं. उनकी नग्न अवस्था केवल एक आध्यात्मिक प्रतीक है, जो वे विशेष अवसरों और अनुष्ठानों के दौरान अपनाते हैं.
नागा साधुओं की अनूठी जीवनशैली
नागा साधु अपनी विशिष्ट जीवनशैली के लिए जाने जाते हैं. वे दर्शकों का ध्यान आकर्षित करने की कला जानते हैं. उनके आभूषण, उनकी वेशभूषा और उनका आचरण उन्हें और भी रहस्यमयी बना देता है. वे स्वयं को धर्म के रक्षक मानते हैं और यही कारण है कि उनका रूप भी एक योद्धा की तरह होता है.
योग और नागा साधु
अधिकांश नागा साधु किसी विशेष योग दिनचर्या का पालन नहीं करते, लेकिन कई साधु कठिन योग मुद्राओं को सहजता से कर सकते हैं. उनकी साधना और कठोर जीवनशैली उन्हें अद्वितीय शारीरिक और मानसिक संतुलन प्रदान करती है.
नागा साधुओं का आनंद और ब्रह्मानंद
एक नागा साधु को भभूत में डूबे हुए देखा गया, मानो वह किसी अनंत ऊर्जा में लीन हो. यह दृश्य उनकी तपस्या और आध्यात्मिक आनंद का प्रतीक है. उनके अनुसार, जब कोई अपनी समस्त सांसारिक इच्छाओं को त्याग देता है, तब ही उसे वास्तविक आनंद की प्राप्ति होती है. यही कारण है कि नागा साधु अपने पूरे जीवन को साधना और तपस्या में समर्पित कर देते हैं.
महाकुंभ में नागा साधुओं की उपस्थिति केवल एक धार्मिक परंपरा नहीं, बल्कि भारत की प्राचीन आध्यात्मिक धरोहर का प्रतीक है. उनकी साधना, उनकी कठोर जीवनशैली और उनकी वैराग्यपूर्ण दृष्टि समाज को आत्मशुद्धि और तपस्या का संदेश देती है. इस प्रदर्शनी के माध्यम से हमें नागा साधुओं के वास्तविक स्वरूप को देखने और समझने का अवसर मिला, जो सोशल मीडिया पर दिखने वाली छवियों से कहीं अधिक गहराई और रहस्य समेटे हुए हैं.