
प्रसिद्ध सितार वादक पंडित रविशंकर के सबसे युवा शिष्य ऋषभ शर्मा ने शुक्रवार को इंडिया टुडे कॉन्क्लेव के सत्र 'अ सितार इज़ बॉर्न' में अपनी कला और संगीत सफर को लेकर खास बातचीत की. 26 वर्षीय ऋषभ, जिन्होंने महज 10 साल की उम्र में सितार बजाना शुरू किया था, उन्होंने इस वाद्य यंत्र के प्रति अपने लगाव, व्हाइट हाउस में प्रस्तुति देने और सितार को लोकप्रिय बनाने के अपने सफर को लोगों के साथ साझा किया.
इस खास बातचीत में जब उनसे पूछा कि गया कि क्या वह खुद को रॉकस्टार मानते हैं, तो ऋषभ ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया, "अगर मैं खुद को रॉकस्टार समझने लगूं, तो मैं बनना बंद कर दूंगा. यह सब मनोस्थिति की बातें हैं. मेरा मानना है कि बेहतर यही है कि सिर झुकाकर मेहनत करते रहो और फिर ब्रह्मांड को अपना काम करने दो. फिर उन्होंने हंसते हुए कहा, खैर, मैं झूठ नहीं बोलूंगा... कई बार भीड़ मुझे घेर लेती है."
'गिटार से सितार तक का सफर'
ऋषभ शर्मा ने बताया कि शुरुआत में वे गिटार बजाते थे, लेकिन फिर उन्हें सितार की ध्वनि और उसके प्राकृतिक नाद ने अपनी ओर आकर्षित किया. मैं इसकी ओर खिंचता सा चला गया. सितार को वाद्ययंत्र के तौर पर अपनाने का मेरा अनुभव मेरे लिए बेहद ही दिलचस्प रहा और फिर इसके बाद मेरे भीतर जो बदलाव आने शुरू हुए, वह मेरे लिए स्वाभाविक था."
उन्होंने आगे कहा, "मैंने हमेशा इस संगीत को सही तरीके से प्रस्तुत करने की कोशिश की है. मैंने इसे लोगों तक पहुंचाने में भी ईमानदारी ही बरती है. यही वजह थी कि जब मुझे व्हाइट हाउस में दिवाली के मौके पर प्रस्तुति देने के लिए बुलाया गया, तो मैंने वहां की व्यवस्थाओं को देखकर पहले तो मना कर दिया था."
ऋषभ शर्मा ने अमेरिका के व्हाइट हाउस में प्रस्तुति देने के अपने अनुभव को भी साझा किया. उन्होंने बताया कि जब उन्हें पहली बार वहां परफॉर्म करने का अवसर मिला, तो उन्होंने आयोजकों को मना कर दिया क्योंकि वहां सितार वादन के लिए उपयुक्त मंच नहीं था. उन्होंने कहा, "हमारा संगीत जिस तरीके से प्रस्तुत किया जाता है, वह बहुत महत्वपूर्ण होता है. मैंने आयोजकों को समझाने की भी कोशिश की कि सही मंच न होने पर मैं प्रस्तुति नहीं दे सकता. लेकिन बाद में परिस्थितियां ऐसी बनीं कि मैंने वहां परफॉर्म किया."
'सितार को लोकप्रिय बनाना मेरा मिशन'
ऋषभ शर्मा ने बताया कि वह सितार को आधुनिक दौर में लोकप्रिय बनाने के लिए काम कर रहे हैं. उन्होंने कहा, "आज के युवाओं को यह समझाना जरूरी है कि भारतीय शास्त्रीय संगीत केवल पारंपरिक रूप में ही नहीं, बल्कि नए तरीकों से भी पसंद किया जा सकता है. मैं चाहता हूं कि आने वाली पीढ़ियां भी इस संगीत को महसूस करें और इसे अपनाएं."
उनकी इस सोच का असर उनकी प्रस्तुतियों में भी साफ झलकता है. ऋषभ अपने सितार वादन में आधुनिक और पारंपरिक दोनों शैलियों का मिश्रण करते हैं, जिससे युवा पीढ़ी भी उनसे जुड़ सके. उन्होंने कहा, "संगीत की कोई सीमा नहीं होती. अगर इसे सही तरीके से पेश किया जाए, तो यह हर किसी तक पहुंच सकता है."
'संगीत सिर्फ सुनने का नहीं, महसूस करने का अनुभव है'
ऋषभ शर्मा ने संगीत के महत्व पर जोर देते हुए कहा कि यह केवल सुनने का माध्यम नहीं, बल्कि इसे आत्मा से महसूस करने की जरूरत होती है. उन्होंने कहा, "सितार मेरे लिए सिर्फ एक वाद्य यंत्र नहीं, बल्कि आत्म-अभिव्यक्ति का जरिया है. मैं जब इसे बजाता हूं, तो यह मेरी भावनाओं का प्रतिबिंब बन जाता है." उनकी यह सोच उन्हें आज के समय में एक अलग पहचान दिला रही है. उनका मानना है कि भारतीय संगीत को नए आयाम देने के लिए सही मंच और सही प्रस्तुति का होना बहुत जरूरी है. उन्होंने कहा, "मैं चाहता हूं कि भारतीय संगीत को वैश्विक स्तर पर उसी गरिमा के साथ प्रस्तुत किया जाए, जिसके वह योग्य है."
अपनी आगामी योजनाओं के बारे में बात करते हुए ऋषभ शर्मा ने बताया कि वह भारतीय शास्त्रीय संगीत को वैश्विक स्तर पर ले जाने के लिए लगातार प्रयासरत हैं. वह चाहते हैं कि भारतीय सितार को दुनिया के हर कोने में सुना और सराहा जाए. उन्होंने कहा, "आज भी बहुत से लोग भारतीय शास्त्रीय संगीत से पूरी तरह परिचित नहीं हैं. मेरा लक्ष्य इसे उन लोगों तक पहुंचाना है, जो इसे समझना और महसूस करना चाहते हैं."
इस खास बातचीत के दौरान ऋषभ ने सितार पर 'ओ री चिरइया, नन्हीं सी गुड़िया... गीत के सुर भी सजाए. इसे उन्होंने महिला दिवस के लिए समर्पित किया. ऋषभ शर्मा का यह जुनून और समर्पण उन्हें भारतीय संगीत जगत में एक महत्वपूर्ण स्थान दिलाने में मदद कर रहा है.