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गुब्बारे बनाने से शुरू हुआ था कारोबार! अब इस देशी टायर कंपनी ने रच दिया इतिहास, जानें पूरी कहानी

MRF के शेयर ने आज इतिहास रच दिया है. ये देश का पहला स्टॉक है, जिसने एक लाख रुपये (1 Lakh Per Share) के आंकड़े को छुआ है. इस कंपनी की शुरुआत मद्रास (अब चेन्नई) में एक छोटे से शेड में गुब्बारे के निर्माण से शुरू हुई थी.

MRF Tyre MRF Tyre
अश्विन सत्यदेव
  • नई दिल्ली,
  • 13 जून 2023,
  • अपडेटेड 2:34 PM IST

देश की आजादी के पहले एक युवा उद्यमी, के.एम. मामेन मपिल्लई ने तिरुवोट्टियूर, मद्रास (अब चेन्नई) में एक छोटे से शेड में गुब्बारा (Ballon) बनाने का काम शुरू किया था. उस वक्त किसी को इस बात का अंदाजा भी नहीं था कि, गुब्बारे बनाने वाली ये कंपनी एक दिन दुनिया की दूसरी सबसे स्ट्रांगेस्ट टायर ब्रांड के तौर पर उभरेगी. इतना ही नहीं, आज इस कंपनी के शेयरों ने दलाल स्ट्रीट में तकरीबन भूचाल ही ला दिया. हम बात कर रहे हैं मद्रास रबर फैक्ट्री (MRF) की, जिसके शेयरों ने आज इतिहास रच दिया है. ये देश का पहला स्टॉक है, जिसने एक लाख रुपये (1 Lakh Per Share) के आंकड़े को छुआ है.

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MRF जिसकी पहुंच सड़क से लेकर सचिन के बल्ले तक रही है, उसकी शुरुआत बेहद ही दिलचस्प थी. टायर की दुनिया का बादशाह बनने से पहले इस कंपनी के फाउंडर के.एम. मामेन मपिल्लई (K. M. Mammen Mappillai) गुब्बारे बनाने का काम करते थें. मपिल्लई का जन्म केरल में साल 28 नवंबर 1922 को एक सीरियाई ईसाई परिवार में हुआ था. उनके माता-पिता के. सी. मामन मपिल्लई और कुंजनदम्मा थे, जिनके आठ बेटे और एक बेटी थी और वह सबसे छोटे थें. उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा अपने गृह नगर से प्राप्त की और प्रारंभिक शिक्षा पूरी करने के बाद उन्होंने मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज में एडमिशन लिया जहां उन्होंने स्नातक की पढ़ाई पूरी की. 

के.एम. मामेन मपिल्लई

कैसे शुरू हुई कंपनी: 

मपिल्लई ने साल 1946 में कारोबारी दुनिया में कदम रखा उस वक्त उन्होनें तिरुवोट्टियूर, मद्रास में एक छोटे से शेड में गुब्बारे बनाने का कारोबार शुरू किया. इस फैक्ट्री में कोई बड़ी मशीनरी नहीं थी और ज्यादातर बच्चों के खिलौने, इंडस्ट्रियल ग्लव्स और लैटेक्स से बनी हुई चीजों का ही निर्माण किया जाता था. समय के साथ कारोबार आगे बढ़ा और साल 1952 में मपिल्लई ने मद्रास रबर फैक्ट्री (MRF) के नाम से ट्रेड रबर बनाने वाली कंपनी की स्थापना की. तो आइये टाइमलाइन से समझते हैं MRF के दिग्गज बनने की कहानी- 

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1956: 

यही वो समय था, जब एक नई कहानी लिखी जाने वाली थी. MRF का जन्म हुआ और कंपनी का पहला ऑफिस 334, थम्बू चेट्टी स्ट्रीट, मद्रास (अब चेन्नई), तमिलनाडु में शुरू किया गया. ट्रेड रबर कारोबर की दुनिया में प्रवेश करने के महज 4 वर्षों के भीतर ही कंपनी तेजी से आगे बढ़ी और साल 1956 तक MRF 50% शेयर के साथ भारत में ट्रेड रबर का मार्केट लीडर बन गया. 

1961: 
 
साठ के दशक की शुरुआत थी और साल लगभग खत्म होने वाला था और MRF एक नई इबारत लिखने जा रही था. 5 नवंबर को MRF को एक प्राइवेट लिमिटेड कंपनी के रूप में शामिल किया गया. उस वक्त तक कंपनी मैन्सफील्ड टायर एंड रबर कंपनी के सहयोग से ऑटोमोबाइल, विमान, साइकिल के लिए टायर और ट्यूब बनाती थी. मैन्सफील्ड, ओहियो, यू.एस.ए. टायरों को मैन्सफील्ड टायर्स (MRF) ब्रांड नेम के तहत बेचा जाता था. 

1963:

उस वक्त भारत को आजाद हुए दो दशक से भी कम समय हुआ था, देश में पंडित जवाहर लाल नेहरू के नेतृत्व वाली कांग्रेस की सरकार थी. तब कंपनी ने एक और माइलस्टोन स्थापित किया और तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने 12 जून, 1963 को तिरुवोट्टियूर कारखाने के उद्घाटन की याद में तिरुवोट्टियूर में रबड़ अनुसंधान केंद्र (Rubber Research Centre) की आधारशिला रखी.
 
1964: 

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देश में तेजी से ओधौगिक क्रांति हो रही थी, कारोबार को बल मिल रहा था और इधर बीच MRF ने भारत के बाहर भी अपने बिजनेस को शुरू करने की योजना बनाई. साल 1964 में एमआरएफ ने बेरूत (Beirut) में एक विदेशी दफ्तर की स्थापना की, जो टायरों के निर्यात और कंपनी की पहचान को और मजबूत बनाने के लिए भारत के पहले प्रयासों में से एक था. यही वो समय था जब एमआरएफ मसलमैन (MRF Muscleman) का जन्म हुआ, जिसे आप ब्रांड के लोगो के तौर पर आज भी देखते हैं. 

1965: 

MRF तेजी से आगे बढ़ रहा था, बेरूत से विदेशी धरती पर शुरू हुआ कारोबार कंपनी को नई पहचान दे रहा था. अपने पहले फॉरेन वेंचर के शुरू किए जाने के महज एक साल के बाद ही एमआरएफ देश की पहली ऐसी कंपनी बन गई जिसने टायरों की जन्मस्थली कहे जाने वाले देश संयुक्त राज्य अमेरिका (United States) में टायरों का निर्यात शुरू कर दिया. इस नई शुरूआत ने कंपनी की विदेशी धरती पर उपस्थिति को और भी ज्यादा बल दिया था. 

1970-72: 

MRF के लिए सत्तर के दशक की शुरुआत काफी बेहतर रही और कंपनी ने महज तीन सालों के भीतर ही तीन नए फैक्ट्रियों को शुरू किया. मार्केट में एमआरएफ की डिमांड तेजी से बढ़ रही थी, साथ ही एक्सपोर्ट मार्केट भी विकसीत हो रहा था. इस दौरान MRF ने साल 1970 में कोट्टायम में अपना दूसरा प्लांट, 1971 में गोवा में तीसरा प्लांट और 1972 में अराक्कोनम में चौथा प्लांट शुरू किया. 

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1973:

सत्तर के दशक के आगे बढ़ने के साथ ही नई और आधुनिक तकनीक ने दस्तक देनी शुरू कर दी थी, अब पारंपरिक शैलियों से उठकर नई टेक्नोलॉजी पर ध्यान दिया जाना जरूरी था. बाजार और प्रोडक्ट की मांग को लेकर भी बदलाव देखे जा रहे थें. इसी दौरान साल 1973 में, MRF ने नायलॉन टायरों का निर्माण शुरू किया और एमआरएफ व्यावसायिक रूप से नायलॉन पैसेंजर कार टायरों का निर्माण करने वाली भारत की पहली कंपनियों में से एक बन गई.

1978:

एमआरएफ ने साल 1978 में ट्रकों में इस्तेमाल होने वाले पारंपरिक टायरों की तकनीकी में सुधार किया और एक नए तरह के हैवी ड्यूटी टायर का निर्माण शुरू किया, जिसे एमआरएफ सुपरलग-78 (MRF Superlug-78) नाम दिया गया. इस टायर का इस्तेमाल भारी-भरकम ट्रकों के लिए किया जाता था. बाद के वर्षों में ये देश का सबसे अधिक बिकने वाला ट्रक टायर बन गया था. 

1985: 

अस्सी के दशक में देश का ऑटो सेक्टर तेजी से बदल रहा था, एक तरह देश की पहली किफायती कार के तौर पर मारुति 800 सड़कों पर फर्राटा भर रही थी. दूसरी ओर टू-व्हीलर इंडस्ट्री भी तेजी से आगे बढ़ रहा था. ऐसा पहली बार था जब कंपनी ने छोटे टायरों के निर्माण पर ध्यान दिया और साल 1985 में कंपनी ने टू-व्हीलर्स के लिए टायर बनाने शुरू कर दिए. कंपनी की इस पहल ने MRF को तकरीबर हर घर तक पहुंचा दिया था. 

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1989: 

खिलौने से शुरू हुए कारोबार का नाता खिलौनों से अभी छूटा नहीं था. साल 1989 में एमआरएफ ने दुनिया के सबसे बड़े खिलौना निर्माता कंपनी हैस्ब्रो इंटरनेशनल यूएसए के साथ गठबंधन किया और फनस्कूल इंडिया लॉन्च किया.

1989: 

भारत को अपना पहला वर्ल्ड कप जीते तकरीबन 6 साल बीत चुके थें, देश में क्रिकेट को लेकर क्रेज लगातार बढ़ता जा रहा था और कंपनी ने इसी को ध्यान में रखते हुए  जवाहरलाल नेहरू ट्रॉफी के लिए एमआरएफ वर्ल्ड सीरीज क्रिकेट टूर्नामेंट प्रायोजित किया. इसी साल कंपनी ने उस वक्त की आंध्र प्रदेश और आज तेलंगाना राज्य के मेदक ज़िले में अपने नए प्लांट की शुरूआत भी की. 

1993: 

दशकों का कारोबार अब पूरी तरह स्थापित हो चुका था, देश-विदेश में हजारों लोगों को रोजगार देने वाला MRF अब किसी पहचान का मोहताज नहीं था. ट्रक, कार, बाइक-स्कूटर बाजार के बाद सचिन के बल्ले तक अपनी छाप छोड़ने वाली MRF दुनिया भर में मशहूर हो चुका था. अब वक्त था, इसके जन्मदाता के सम्मान की, 1993 में, के.एम. मैमेन मपिल्लई पद्मश्री से सम्मानित होने वाले पहले दक्षिण भारतीय उद्योगपति बने. 

2000 के बाद:

नई सदी की शुरुआत के MRF ने जे. डी. पावर अवार्ड जीता और इसके बाद कंपनी ने एशिया-पेसिफिक रैली चैम्पियनशिप (APRC) में हिस्सा लेना शुरू किया. इस दौरान कंपनी की रैली टीम ने कई चैम्पियनशिप अपने नाम की. 2007 में कंपनी का टर्न-ओवर बढ़कर एक बिलियन डॉलर का हो गया, इसी साल कंपनी ने पहला इको फ्रैंडली  ZSLK टायर लॉन्च किया. 

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2011-15

साल 2011 में MRF ने दो नए प्लांट शुरू किए, अंकनपल्ली (आंध्र प्रदेश) में सातवाँ और त्रिची (तमिलनाडु) में 8वां प्लांट शुरू किया गया. इसी साल कंपनी ने घोषणा की कि, MRF का टर्नओवर बढ़कर 2 बिलियन डॉलर तक पहुंच गया है. साल 2013 में MRF का एयरो मसल टायर फाइटर जेट - सुखोई 30 एमकेआई (Sukhoi 30 MKI) के लिए चुना जाने वाला एकमात्र भारतीय टायर बन गया. साल 2015 में MRF का नाम फोर्ब्स की टॉप 50 बेस्ट इंडियन कंपनियों में शामिल हुआ. 

इस साल दो बड़े कीर्तिमान: 

इस साल बीते अप्रैल महीने में ब्रांड फाइनेंस की नई रिपोर्ट के अनुसार, एमआरएफ लिमिटेड दुनिया के दूसरे सबसे मजबूत टायर ब्रांड के रूप में उभरा है. कंपनी ने एक बयान में कहा, "दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ने वाला टायर ब्रांड 'MRF' ने ब्रांड स्ट्रेंथ में 100 में से 83.2 स्कोर किया है और उसे AAA- ब्रांड रेटिंग से सम्मानित किया गया. आज कंपनी के शेयरों ने दलाल स्ट्रीट में तहलका मचा दिया और कंपनी के एक शेयर की कीमत 1 लाख रुपये हो गई. 

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