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दीवारों से झांकती राइफल की नाल, तांगों का चक्रव्यूह... बाहुबली अनंत सिंह की हिस्ट्री में घनघोर फिल्मी मसाला है!

अनंत सिंह के यहां तांगा चलाने की शर्त ये थी कि उन्हें रात को अनंत सिंह के घर के पास ही रहना होगा. रात को इन 100 तांगों को N आकार में अनंत सिंह के घर से आधा किलोमीटर की दूरी पर खड़ा कर दिया जाता था. इसके बाद घोड़े बांध दिये जाते थे. फिर रात को इस रेंज में आने वाले हर व्यक्ति पर अनंत सिंह के लोगों की नजर होती थी.

टमटम और तांगों के शौकीन रहे हैं अनंत सिंह (फोटो- सोशल मीडिया) टमटम और तांगों के शौकीन रहे हैं अनंत सिंह (फोटो- सोशल मीडिया)
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 23 जनवरी 2025,
  • अपडेटेड 3:30 PM IST

बिहार के मोकामा का लदमा गांव. यहां एक दबंग और बहुत शक्तिशाली व्यक्ति का कच्चा मकान था. मकान मालिक का नाम था अनंत सिंह. वही अनंत सिंह जिन्हें बिहार में 'छोटे सरकार' का विशेषण प्राप्त है. इस मकान की दीवारों में कई छोटे-छोटे छेद थे. रात के अंधेरे में दीवारों की इन छेद से राइफल की नालें निकली रहती थीं. हर पांच-सात मिनट में इन छेद से टॉर्च की रोशनी मारी जाती थी. राइफल की नालें और टॉर्च की रोशनी एक साथ चमकती थीं. अगर टॉर्च की रोशनी में नजर आने वाला शख्स पहचाना होता तो ठीक. अन्यथा नहीं पहचान में आने वाले शख्स को गोली मारने का आदेश था. 

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ये कहानी बिहार के वरिष्ठ पत्रकार ज्ञानेश्वर ने बताई है.  1998-99 के लोकसभा चुनाव के दौरान कवरेज पर निकले ज्ञानेश्वर सिंह पत्रकारों के साथ अनंत सिंह के घर पहुंचे थे. इस दौरान टाल क्षेत्र के चर्चित CPM (चावल प्याज और मटन) भोज के दौरान अनंत सिंह की जिंदगी की किताब के कई पन्ने उलटे गए. 

वही अनंत सिंह जिनके समर्थकों और इलाके के ही सोनू-मोनू गैंग के बीच 60-70 राउंड फायरिंग हुई. 

इस फायरिंग के बाद अनंत सिंह ने एक्स पर पोस्ट किया- 'जिनके साथ हो महाकाल, काल उसका क्या बिगाड़े काल?.'

पटना से कुछ ही दूर हुए फायरिंग ने बिहार के लोगों को 90 के दशक की याद दिला दी है जब बिहार में जातीय गैंगवार और फायरिंग की घटनाएं आम थीं. 

दरअसल राजपूतों और भूमिहारों के बीच खूनी जंग का इतिहास रहे बाढ़ में लोग रात में घरों से निकलने से भी डरते थे. इस इलाके में अनंत सिंह भूमिहार समुदाय के रक्षक के रूप में उभरे थे. 

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अनंत सिंह के घर में मौजूद बंदूकधारी (वीडियो ग्रैब-आजतक)

रौबदार मूंछें, काउबॉय हैट और हमेशा चश्मा पहनने के शौकीन अनंत सिंह ने दोस्ती और दुश्मनियां बराबर की पालीं. इन पर कई बार हमले हुए. अनंत सिंह के दुश्मनों की लिस्ट में उनके गोतिया विवेका पहलवान की खास लिस्ट है. दोनों के घर की दीवारें एक दूसरें से मिलती हैं. 

बात 2004 की है. अनंत सिंह अपने तीस साथियों के साथ छत पर सोए हुए थे. अचानक उनपर हमला होता है. अनंत सिंह को पीठ में गोली लगती है. पीठ में लगी गोली सीने में अटक जाती है. कहानियां है कि अनंत सिंह को खजांची रोड के आलोक नर्सिंग होम में भर्ती कराया गया. अस्पताल के डॉ नरेंद्र सिंह ने कहा कि तुरंत ऑपरेशन जरूरी है. 

तभी स्टोरी में ट्विस्ट आता है. जिस अस्पताल में अनंत सिंह भर्ती थे वहां एक कॉल आता है. फोन करने वाले ने धमकी दी थी कि यदि अनंत सिंह की सर्जरी हुई तो इसका गंभीर अंजाम होगा. जीवन-मरण का सवाल था. अनंत के भाई दिलीप सिंह ने खड़े होकर अपने भाई का ऑपरेशन करवाया. उस समय आरोप लगा कि ये हमला विवेका पहलवान ने कराया था. 

अनंत सिंह का अपने भाइयों से बड़ा प्रेम है. चार भाइयों में सबसे छोटे अनंत सिंह का एकबार दुनियादारी से मन उचट गया. वे वैराग्य की ओर बढ़ गए. साधु बनने के लिए अयोध्या और हरिद्वार में घूम रहे थे. लेकिन साधुओं के जिस दल में थे, वहां झगड़ा हो गया.

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इस बीच सबसे बड़े भाई बिरंची सिंह की हत्या हो गई. फिर क्या था अनंत पर बदला लेने का भूत सवार हो गया. वे दिन-रात भाई के हत्यारे को खोजते रहे. एक दिन पता चला कि हत्यारा एक नदी के पास बैठा है. कहा जाता है कि फिर उस शख्स का काम-तमाम हो गया.

टमटम के शौकीन क्यों हैं अनंत सिंह 

यूं तो अनंत सिंह सभी लग्जरी गाड़ियों में दिखते हैं. लेकिन उनका रौब बग्घी और टमटम पर सबसे ज्यादा दिखता है. वरिष्ठ पत्रकार इस टमटम प्रेम की कहानी बताते हैं. 

दरअसल बाढ़ से सकसोहरा जाने वाली सड़क पर अनंत सिंह का प्रभुत्व था. ये वो दौर था जब बिहार की सड़के लालू यादव के फिल्मी वादों के बावजूद बेहद खटारा थीं. लिहाजा लोग आने जाने के लिए टमटम का इस्तेमाल करते थे. लेकिन इस सड़क पर अनंत सिंह के अलावा किसी और की टमटम नहीं चल सकती थी. अनंत सिंह ने दबंगई और शासन-प्रशासन से मिलकर ऐसी व्यवस्था कर रखी थी. कहा जाता है कि अनंत सिंह ने अपनी सुरक्षा के लिहाज से ऐसा किया था. कुल मिलाकर इस सड़क पर अनंत सिंह के सौ-सौ तांगे चलते थे. 

कुछ सालों बाद दो मिनी बस चलने लगी, लेकिन ये दोनों बसें भी अनंत सिंह की ही थी. हालांकि अनंत सिंह को यहां भी चुनौती मिली. उनके दुश्मन इस सड़क पर अपनी गाड़ी चलाना चाहते थे. लेकिन अनंत सिंह ने उन्हें स्टॉप करवा दिया. 

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अनंत सिंह (फाइल तस्वीर)

अनंत सिंह भले ही सौ सौ तांगे चलवाते थे लेकिन वे तांगा चलाने वाले इन लोगों से नाम मात्र का पैसा लेते थे. या कहिए कि नहीं लेते थे. तांगे या टमटम चलवाने का मकसद अनंत सिंह की सुरक्षा का इंतजाम करना था. 

अनंत सिंह के यहां तांगा चलाने की शर्त ये थी कि उन्हें रात को अनंत सिंह के घर के पास ही रहना होगा. रात को इन 100 तांगों को N आकार में अनंत सिंह के घर से आधा किलोमीटर की दूरी पर खड़ा कर दिया जाता था. इसके बाद घोड़े बांध दिये जाते थे. 

90 का ये दशक वैसा समय था जब अनंत सिंह लगातार अपने दुश्मनों के निशाने पर रहते थे. अनंत सिंह के घर तक पक्की सड़क नहीं बनी थी न ही अनंत सिंह पक्की सड़क चाहते थे. इसकी वजह ये थी कि न तो पुलिस और न ही उनके दुश्मन जल्द उनके घर तक पहुंच पाएं. 

रात को अनंत सिंह के घर तक पहुंचने के लिए सबसे पहले 100 की संख्या में मौजूद इन तांगों को हटाना जरूरी था. ऐसा करते ही अनंत सिंह के करीबी इसकी जानकारी उनको दे देते थे. 100 की संख्या में घोड़ों के रहने का फायदा ये था कि अनंत सिंह कभी भी आधे घंटे के अंदर अपने गैंग के साथ इन घोड़ों के जरिये जा सकते थे. इस इलाके में चलने की वजह से इन घोड़ों को इस पूरे टाल क्षेत्र के भौगोलिक क्षेत्र की जानकारी थी और वे आसानी से रात हो या दिन दौड़ लगा सकते थे. गौरतलब है कि अनंत सिंह के पास हमेशा 40-50 लोग मौजूद रहते थे. 

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इसलिए अगर दुश्मन या पुलिस अनंत सिंह के घर के आस-पास पहुंच ही जाए तो अनंत सिंह इन घोड़ों की मदद से रफू चक्कर हो सकते थे. यही वजह रही कि अनंत सिंह को घोड़ों से खास लगाव था. 

2007 में अनंत सिंह जानवरों के मेले में लालू का घोड़ा खरीदने पहुंचे थे. अनंत सिंह को पता था कि लालू उन्हें अपना घोड़ा नहीं बेचेंगे, इसलिए उन्होंने किसी और के जरिए घोड़ा खरीदा था. 

राजनीति में अनंत सिंह की एंट्री सीएम नीतीश कुमार ने कराई लेकिन जरिया बने उनके अपने भाई दिलीप सिंह. 

अनंत सिंह के बड़े भाई दिलीप सिंह बिहार के बाहुबली नेता थे. वे लालू यादव की सरकार में मंत्री भी रहे थे. 80 के दशक में कांग्रेस विधायक रहे श्याम सुंदर धीरज के लिए बूथ कब्जाने का काम करने वाले दिलीप उन्हीं को मात देकर जनता दल के टिकट पर विधायक (1990-2000) बने थे. दिलीप सिंह विधायक बनते ही सफेदपोश हो चुके थे और उन्हें दबदबा कायम रखने के लिए एक भरोसेमंद की जरूरत थी. लंबी-चौड़ी कद काठी रौबदार आवाज और बिहारी अंदाज वाले अनंत सिंह इन शर्तों को पूरी करते थे. वे इस रोल में फिट बैठ गए. 

इससे पहले इस कहानी में एक और मोड़ है. 1994 में लालू यादव बिहार के सीएम थे. तब तक लालू  नीतीश कुमार और उनके समर्थकों को साइड लाइन कर चुके थे. साल 1996 का लोकसभा चुनाव आया तो नीतीश को टेंशन होने लगी. उन्होंने बाढ़-मोकामा क्षेत्र में एक ऐसा नेता चाहिए था जो दबंग हो और जिसकी पकड़ हो. तब उनकी नजर पड़ी रौबदार व्यक्तित्व वाले नेता अनंत सिंह पर. 1996, 1998 और 1999 के लोकसभा चुनाव में अनंत सिंह ने नीतीश कुमार की बड़ी मदद की. 

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अनंत सिंह के सितारे तब चमके जब नीतीश कुमार ने साल 2005 में जनता दल यूनाइटेड के टिकट पर उन्हें मोकामा विधानसभा से उतारा. नीतीश ने आलोचना सहकर भी ऐसा काम किया क्योंकि नीतीश कुमार लालू यादव द्वारा तैयार किए गए 'सिस्टम' के खिलाफ चुनाव लड़ रहे थे. पर नीतीश ने आलोचनाओं की परवाह नहीं की. 

अनंत सिंह मोकामा विधानसभा सीट से जीतने में कामयाब रहे. अब राजनीति में आकर वे 'छोटे सरकार' बन चुके थे. 
 

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