
बिहार विधानसभा में राज्य का वार्षिक बजट पेश होने के बाद एक बड़ा सवाल ये है कि क्या नीतीश कुमार महिला वोट को लेकर अभी कुछ ऐसा सोच रहे हैं, जिससे भविष्य की राजनीति पलट सकती है? चुनावी गणित कहता है कि महिला वोट के दम पर जीतना है, तो महिलाओं के लिए पहले से ही वादे करने होंगे.
खासकर महिलाओं के खाते में अगर हर महीने पहले से पैसा आने लगे तो चुनाव जीतने की गारंटी बढ़ जाती है. उदाहरण महाराष्ट्र-मध्य प्रदेश है, जहां कई किस्त महिलाओं के बैंक अकाउंट में पहुंच गई तो जीत भी उस पैसा देने वाली पार्टी को मिली. यही योजना दिल्ली में नहीं चली, क्योंकि केजरीवाल सिर्फ वादा किए, कोई पैसा खाते में नहीं दे पाए.
बिहार विधानसभा में सीन नंबर 1: उप मुख्यमंत्री और वित्त मंत्रालय संभालते सम्राट चौधरी बजट भाषण पढ़ रहे हैं. बगल में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार. अचानक कुछ इशारा करने लगते हैं. ये इशारे नीतीश कुमार सामने बैठे पूर्व उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव को देखकर करते हैं.
जैसे नीतीश कुमार सामने बैठे तेजस्वी यादव से कुछ पूछ रहे हों, जिसे देखकर जब तक जवाब तेजस्वी ने दिया तब तक कैमरा घूम चुका था. तेजस्वी सिर्फ नीतीश कुमार के इशारे पर मुस्कुराते दिखे, और फिर बाद में बताया कि क्या इशारों में बात हुई.
बिहार के उप मुख्यमंत्री रहे तेजस्वी यादव ने बताया कि हर किसी को इशारा करते हैं, मुंह चबाकर कहते हैं, क्या मुंह चबा रहे हो, बड़ा नोटिस कर रहे थे. हम पर, खाना खाकर आए थे, पल्स खा रहे थे.
बिहार विधानसभा में सीन नंबर 2: अब जैसे ही सम्राट चौधरी का बजट भाषण पूरा होता है. नीतीश कुमार एकदम खड़े हो गए. सम्राट चौधरी की पीठ नीतीश ठोकने लगे. गले लगा लिया. सदन में ताली बजने लगी. नीतीश कुमार का अचानक उठकर सम्राट चौधरी को गले लगाना, पीठ ठोंकना क्या एक मुख्यमंत्री का चुनावी साल में अपनी सरकार के आखिरी पूर्ण बजट के प्रस्तुत होने की खुशी है, या फिर इसमें भी कुछ सियासत है?
बिहार के डिप्टी सीएम सम्राट चौधरी कहते हैं कि नीतीश पिता तुल्य बड़े भाई हैं, आशीर्वांद मिलता रहे. तेजस्वी यादव ने भी कहा कि जो नए लोग मिलते हैं, नीतीश की आदत है, आपको ही संभालनी है, आपको ही देखनी है. ये आदत है, पीठ ठोकें ना ठोकें, क्या फर्क पड़ता है.
बजट भाषण में तेजस्वी क्या खा रहे हैं, ये इशारे से पूछने वाले नीतीश कुमार बजट भाषण के बाद सहयोगी बीजेपी से डिप्टी सीएम सम्राट चौधरी को गले लगाते हैं. दोनों इशारों में क्या कोई राजनीति हो सकती है? हो सकता है... आप कहें कि नीतीश कुमार को लेकर इतने सवालों की सियासत क्यों? हो सकता है कि आपको लगे कि नीतीश को लेकर कुछ ज्यादा ही पलटने की आशंका जताई जाती है?
सवाल इसलिए क्योंकि जिस बिहार में आठ महीने बाद चुनाव होना है, वहां महिला वोटर को लेकर फिलहाल नीतीश सरकार की तरफ से कोई बड़ा ऐलान नहीं हुआ है. अब ये NDA सरकार की रणनीति है, आत्मविश्वास है या फिर नीतीश कुमार का कोई पेंच? बिहार में 7.64 करोड़ कुल मतदाता हैं, जिसमें से 4 करोड़ पुरुष और 3.6 करोड़ महिला वोटर हैं. बिहार में बजट पेश होने से 24 घंटे पहले तेजस्वी यादव महिला वोट को लेकर दांव चलते हैं.
महिला वोट कितना अहम है, इसे इस बात से समझिए कि मध्य प्रदेश में लाडली बहना योजना की छह किश्त चुनाव से पहले खाते में पहुंचा दी गई, तो बीजेपी की बंपर जीत महिला वोट से हुई. महाराष्ट्र में पांच किश्त पहुंचा दी तो बड़ी जीत NDA को मिली. झारखंड में हेमंत सोरेन सरकार ने भी 3 किश्त मइयां योजना का महिलाओं के बैंक अकाउंट में पहुंचा दी तो जीत हेमंत सरकार की हुई.
दिल्ली में यही काम केजरीवाल नहीं कर पाए. महिला वोट इस बार नहीं सधा, ना सरकार बनी, तो अब सवाल है कि ये गणित जानकर भी लाडला मुख्यमंत्री कहे गए नीतीश कुमार की सरकार ने लाडली बहना जैसी योजना का ऐलान क्यों नहीं किया?
नीतीश सरकार की तरफ से महिलाओं के लिए ऐलान तो बजट में होता है, जैसे:
सम्राट चौधरी भी कहते हैं कि नीतीश जी ने खुद सहायता समूह में 46 हजार करोड़ दिया है, लेकिन तेजस्वी यादव का कहना है कि अभी बिहार ट्रांसपोर्ट का बस तो ढंग से चल नहीं रहा, सब हवा हवाई बातें हैं, बोलने के लिए कुछ भी बोल सकते हैं.
लेकिन क्या बिहार जैसे राज्य में जहां महिला लगातार तीन चुनावों से वोट परसेंट में पुरुषों से ज्यादा मतदान करने आ रही हैं, वहां नीतीश कुमार अपनी सरकार के बजट में क्यों कोई लाडली बहना जैसी योजना नहीं लाए? याद करिए जाति गणना के वक्त का सियासी दौर. तेजस्वी-कांग्रेस तब नीतीश के साथ थे. जाति गणना बिहार में हुई. कुछ वक्त बाद नीतीश महागठबंधन से अलग हो गए.
बाद में तेजस्वी-राहुल ये प्रचार करते रहे कि उनके कहने पर ही नीतीश ने जाति गणना कराई थी. यानी जाति गणना का क्रेडिट लेने का बंटवारा होता दिखा. क्या कुछ ऐसा ही सोचकर अभी नीतीश कुमा्र बिहार में किसी भी तरह से महिलाओं के खाते में पैसा देने वाली योजना से बच रहे हैं? जिसे वो बाद में अपनी पार्टी के मंच से ऐलान करना चाहेंगे?
नीतीश के साथ महिला वोटर का भरोसा
नीतीश कुमार ने अभी हाल में ही महिला संवाद यात्रा की है. फिर भी अगर चुनाव से पहले के आखिरी बजट में इस वक्त की सबसे बड़ी चुनावी योजना बन चुकी, महिलाओं के खाते में कैश देने वाली स्कीम से नीतीश सरकार ने दूरी बनाई तो क्या इसका कारण ये है कि जेडीयू से ज्यादा अब बीजेपी महिला वोट पाने लगी है?
चुनाव आयोग के मुताबिक, 2010 में 53 प्रतिशत पुरुषों ने बिहार में मतदान किया था, जबकि महिलाओं के 54.5 प्रतिशत वोट पड़े थे. इस चुनाव में नीतीश कुमार की पार्टी को विधानसभा की 115 सीटों पर जीत मिली थी, जो बहुमत से सिर्फ 7 सीटें कम थी.
2015 विधानसभा चनाव: 2015 के विधानसभा चुनाव में भी वोट देने में महिलाएं आगे थी. इस चुनाव में 51.1 प्रतिशत पुरुषों ने मतदान किया था, जबकि महिलाओं का वोटिंग टर्नआउट 60.4 प्रतिशत था. पुरुषों के मुकाबले इस चुनाव में महिलाओं के करीब 9 प्रतिशत ज्यादा वोट पड़े थे. ये वो चुनाव था, जिसमें नीतीश कुमार बीजेपी से अलग होकर आरजेडी के साथ लड़े थे. नीतीश कुमार की पार्टी विधानसभा में दूसरे नंबर की पार्टी बन गई. उसे 71 सीटों पर जीत मिली.
2020 विधानसभा चुनाव: 2020 के चुनाव में पुरुषों के 54.6 प्रतिशत वोट पड़े थे, जबकि 59.7 प्रतिशत महिलाओं ने इस चुनाव में मतदान किया था. इस चुनाव में नीतीश कुमार की पार्टी तीसरे नंबर पर पहुंच गई. उसे सिर्फ विधानसभा की 43 सीटों पर जीत मिली थी. एनडीए में जेडीयू का प्रदर्शन सबसे खराब था. नीतीश कुमार की पार्टी ने 2020 में 22 महिलाओं को टिकट दिया था, जिसमें से सिर्फ 6 महिलाएं चुनाव जीतकर सदन पहुंच पाई. बीजेपी ने इस चुनाव में 13 महिलाओं को मैदान में उतारा था और उसे 8 सीटों पर जीत मिल गई.
यानी आंकड़ों के मुताबिक महिला वोटर को बीजेपी पर ज्यादा भरोसा हो सकता है, और क्या तब इसीलिए नीतीश कुमार के बजट में फिलहाल लाडली बहना जैसी जिताऊ योजना का प्रस्ताव नहीं दिखा, जिसके लिए शायद नीतीश आगे की सियासत देखकर ही पत्ता खोलना चाहते हों.