
बिहार के सुपौल में हिंदू और मुस्लिम समुदाय के सैकड़ों बुजुर्गों ने मिलकर भव्य फूलों की होली का आयोजन किया. इस आयोजन में जाति, धर्म, ऊंच-नीच का भेदभाव भुलाकर सभी ने एक-दूसरे पर फूलों की वर्षा की और प्रेम, शांति व एकता का संदेश दिया. इस कार्यक्रम का आयोजन संस्कृत निर्मली इलाके में की गई.
फूलों की होली से भाईचारे का संदेश
इस अनोखे होली मिलन समारोह में न तो रंग थे, न गुलाल बस फूलों की बारिश थी. दोनों समुदाय के बुजुर्गों ने एक साथ होली के गीत गाए, नृत्य किया और एक-दूसरे पर फूल बरसाकर सौहार्द का प्रतीकात्मक प्रदर्शन किया. इस कार्यक्रम के पीछे एक लंबी सामाजिक पहल की कहानी है, जो 2008 की कोसी त्रासदी के बाद शुरू हुई थी.
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2008 की बाढ़ ने सिखाया एकता का पाठ
बुजुर्ग संघ के अध्यक्ष सीताराम मंडल ने बताया कि 2008 की भीषण बाढ़ के दौरान जब अपनों ने साथ छोड़ दिया, तब बाहर से आई सामाजिक संस्थाओं ने इन बुजुर्गों को संगठित होकर जीवन जीने का तरीका सिखाया. इसी अनुभव ने इन्हें जाति-धर्म से ऊपर उठकर एक साथ रहने और त्योहारों को मिलजुलकर मनाने की प्रेरणा दी. उन्होंने कहा, हम हर साल इसी तरह सभी जाति और धर्म के लोग मिलकर होली मनाते हैं, जिसमें किसी तरह का भेदभाव नहीं होता.
मो. मोलिम अंसारी ने भी बताया कि 2008 की बाढ़ ने सभी को समान रूप से प्रभावित किया था. तबाही के समय यह साफ हो गया कि आपदा धर्म या जाति देखकर नहीं आती. इसी विचारधारा ने इस इलाके के लोगों को एकजुट किया और 2012 से हर साल होली मिलन समारोह का आयोजन किया जाने लगा.
बुजुर्गों के सामूहिक प्रयासों की मिसाल
ग्राम पंचायत के जनप्रतिनिधि मो. इकबाल ने बताया कि यह आयोजन केवल होली तक सीमित नहीं है, बल्कि यह बुजुर्गों की आत्मनिर्भरता और संगठन शक्ति का भी उदाहरण है. बाढ़ के बाद इन बुजुर्गों ने समूह बनाकर खुद को सशक्त किया. आज सुपौल जिले के विभिन्न गांवों में बुजुर्गों के हजारों समूह सक्रिय हैं, जिनकी सामूहिक आय करोड़ों रुपये में पहुंच चुकी है. यह बुजुर्ग न केवल सामाजिक और धार्मिक कार्यों में सहयोग करते हैं, बल्कि जरूरतमंद बुजुर्गों के लिए पेंशन का प्रबंध भी करते हैं.
रमज़ान में भाईचारे की मिसाल
इस बार की होली मिलन विशेष थी क्योंकि यह रमज़ान के महीने में मनाई गई. जितेंद्र झा ने बताया, यह आयोजन वसुधैव कुटुंबकम की भावना को मजबूत करता है. जब हिंदू और मुस्लिम बुजुर्ग मिलकर फूलों की होली खेलते हैं, तो यह समाज को एक सकारात्मक संदेश देता है.
सामूहिक भोज और आयोजन का समापन
फूलों की होली के बाद सभी बुजुर्गों के लिए सामूहिक भोज का आयोजन किया गया, जहां जाति-धर्म से ऊपर उठकर सभी ने एक साथ भोजन किया. इस आयोजन ने एक बार फिर यह साबित कर दिया कि समाज में प्रेम, भाईचारा और एकता से बड़ा कोई धर्म नहीं होता. सुपौल जिले के बुजुर्गों द्वारा किया गया यह अनोखा आयोजन केवल होली मनाने का माध्यम नहीं था, बल्कि यह सामाजिक समरसता, आपसी सहयोग और भाईचारे का प्रेरणादायक उदाहरण भी है.