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नीतीश कुमार ने पार कर ली विश्वास मत की बाधा, अब सामने हैं ये चार चुनौतियां

नीतीश कुमार ने बिहार में विश्वास मत की बाधा पार कर ली है लेकिन ताजा परिस्थितियों में उनकी राह आसान नहीं नजर आ रही. नीतीश कुमार के सामने जेडीयू को एकजुट बनाए रखने से लेकर बीजेपी से सामंजस्य बनाकर सरकार चलाने तक, ये चार चुनौतियां होंगी.

Nitish Kumar Nitish Kumar
बिकेश तिवारी
  • नई दिल्ली,
  • 15 फरवरी 2024,
  • अपडेटेड 8:55 AM IST

बिहार में नीतीशे सरकार है और इस पर विधानसभा में शक्ति परीक्षण के साथ ही विधायिका की मुहर भी लग चुकी है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने विधानसभा में विश्वास मत तो हासिल कर लिया लेकिन आगे की राह उनके लिए, उनकी पार्टी जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) के लिए आसान नहीं नजर आ रही. विश्वास मत पर वोटिंग से पहले जिस तरह उनकी पार्टी के करीब आधा दर्जन विधायक आउट ऑफ कॉन्टैक्ट हुए और कुछ को विधानसभा तक लाने के लिए भी पुलिस-प्रशासन का सहयोग लेना पड़ा, उसे नीतीश और जेडीयू के लिए अलार्मिंग सिचुएशन बताया जा रहा है.

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नीतीश के सामने कौन सी चुनौतियां?

नीतीश कुमार के सामने अपनी पार्टी को, अपनी पार्टी के नेताओं को एकजुट रखने के साथ ही लोकसभा से लेकर विधानसभा चुनाव तक जेडीयू का पुराना रुतबा बचाए रखने की चुनौती होगी. सुशासन बाबू को बीजेपी के साथ सामंजस्य बनाने से लेकर राष्ट्रीय जनता दल से क्रेडिट वार तक के मोर्चे पर जूझना होगा. नीतीश के सामने बड़ी चुनौतियां क्या हैं?

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1- जेडीयू की एकजुटता

नीतीश के सामने सबसे बड़ी चुनौती जेडीयू को एकजुट रखने की है. विश्वास मत पर वोटिंग से पहले जिस तरह से संजीव कुमार को झारखंड से बिहार में प्रवेश करने पर हिरासत में लेकर पुलिस-प्रशासन ने विधानसभा पहुंचाया, बीमा भारती जिस तरह से गैरहाजिर रहीं और अब अपनी पार्टी के खिलाफ ही मोर्चा खोल रखा है, वह बताता है कि जेडीयू में सबकुछ ठीक नहीं है. बीमा भारती ने कहा है कि नीतीश कुमार विधायकों का भरोसा खो चुके हैं. बीमा के पति को पुलिस अवैध हथियार रखने के मामले में गिरफ्तार कर चुकी है तो वहीं अब जेडीयू के ही विधायक सुधांशु शेखर ने अपनी ही पार्टी के विधायक संजीव कुमार के खिलाफ आरजेडी का समर्थन करने के लिए पांच करोड़ रुपये एडवांस और मंत्री पद के साथ ही बाद में पांच करोड़ देने का ऑफर देने के आरोप में एफआईआर करा दी है. संजीव कुमार खुद को निर्दोष बता रहे हैं, जेडीयू नेताओं के एक गुट पर अपने खिलाफ साजिश का आरोप लगा रहे हैं. सच क्या है और क्या नहीं, यह जांच का विषय है लेकिन ये मामले नीतीश के लिए टेंशन बढ़ाने वाले हैं.

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2- पालाबदल और क्रेडिट वॉर

नीतीश कुमार के बार-बार पालाबदल और आरजेडी के '17 महीने बनाम 17 साल' नारे से निपटना भी जेडीयू के लिए चुनौतीपूर्ण होगा. नीतीश के फैसले को जेडीयू हर चुनाव में अपने नेतृत्व वाले गठबंधन को सत्ता मिलने का हवाला देकर सही ठहरा रही है लेकिन एक पहलू यह भी है कि हर पालाबदल के बाद पार्टी की सीटें घटती चली गईं. बिहार के वरिष्ठ पत्रकार ओमप्रकाश अश्क ने कहा कि नीतीश के बार-बार पालाबदल को लेकर उनकी पार्टी के नेताओं और जनता में भी भ्रम की स्थिति है. जेडीयू अगर बेहतर प्रदर्शन करना चाहती है तो उसे इस दिशा में काम करना होगा. नीतीश कुमार हाल की भर्तियों को लेकर चाहे जैसे और जितना कह लें कि यह सात निश्चय पार्ट वन में था, पार्ट टू में था लेकिन आरजेडी इसे तेजस्वी की उपलब्धि के रूप में जनता तक ले जाने में अब तक सफल नजर आ रही है. जेडीयू और नीतीश को इसकी भी काट खोजनी होगी. 

3- बीजेपी के साथ सामंजस्य

नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू और बीजेपी लंबे समय तक गठबंधन में रहे हैं. इसे स्वाभाविक गठबंधन भी बताया जाता रहा है लेकिन इस बार दोनों दलों के बीच सामंजस्य बनाकर सरकार चलाना नीतीश के लिए आसान नहीं होगा. दरअसल, जेडीयू के साथ सरकार बनाने के बाद भी बिहार बीजेपी के अध्यक्ष सम्राट चौधरी के बयान पुराने ट्रैक पर ही नजर आ रहे हैं. नीतीश सरकार में डिप्टी सीएम बनने के बाद एक सवाल पर सम्राट चौधरी ने कहा कि बिहार में बीजेपी की सरकार बनाने के संकल्प पर हम अब भी कायम हैं.

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बिहार बीजेपी के अध्यक्ष का यह बयान बताता है कि नीतीश के साथ गठबंधन तो हो गया लेकिन पार्टी की स्टेट यूनिट इसे लेकर अभी सहज नहीं हो पाई है. नीतीश का नेतृत्व अभी है लेकिन बीजेपी की रणनीति उनकी छाया से निकलने की होगी. प्रेशर पॉलिटिक्स, खींचतान की सियासत की आशंकाएं भी जताई जा रही हैं और देखना होगा कि नीतीश किस तरह से बीजेपी नेताओं के साथ सामंजस्य स्थापित कर सरकार चलाते हैं?

4- सीट शेयरिंग

बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए में पहले से ही चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी रामविलास (एलजेपीआर), पशुपति पारस की राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी (आरएलजेपी), उपेंद्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक जनता दल (आरएलजेडी), जीतनराम मांझी की हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (हम) भी पहले से ही हैं. चिराग और पशुपति, दोनों के ही दल सात-सात सीटें मांग रहे हैं. मांझी की पार्टी भी दो से तीन और कुशवाहा की पार्टी भी तीन से चार सीटें पाना चाहती है. ऐसे में अब जेडीयू के एनडीए में आ जाने से सीट शेयरिंग का गणित और उलझ गया है. नीतीश की पार्टी के फिलहाल 16 सांसद हैं. पिछले चुनाव में जेडीयू, बीजेपी के बराबर 17 सीटों पर चुनाव लड़ी थी.

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नीतीश की पार्टी महागठबंधन में रहते हुए बार-बार यह दोहरा रही थी कि 17 सीटों के बाद बात होगी. अब एनडीए में आने के बाद उनको भी कुछ मुद्दों पर समझौते करने होंगे जिनमें सीट शेयरिंग भी शामिल है. बीजेपी नेताओं, खासकर सम्राट चौधरी के बयानों से तो ऐसा लगता है कि विधानसभा चुनाव में भी पार्टी इसबार नीतीश के दल के लिए अधिक सीटें छोड़ने के मूड में नहीं है. ऐसे में नीतीश के सामने विधानसभा से लेकर लोकसभा तक, गठबंधन में पुरानी स्थिति बनाए रखने, पिछले चुनावों के बराबर सीटें पाने की चुनौती भी होगी.

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