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बिहार में आठ विधायकों का मैजिक नंबर! नीतीश या तेजस्वी, किसकी फिट होगी सियासी गोटी? समझें नंबर गेम

बिहार में सियासी भूचाल के बीच अब जोड़-तोड़ की कोशिशें भी शुरू हो गई हैं. नीतीश के बिना सरकार बनाने के लिए महागठबंधन को आठ विधायकों के समर्थन की जरूरत है और लालू यादव एक्टिव हो गए हैं. नीतीश कुमार या तेजस्वी यादव, किसकी सियासी गोटी फिट होगी?

नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव
बिकेश तिवारी
  • नई दिल्ली,
  • 26 जनवरी 2024,
  • अपडेटेड 3:58 PM IST

बिहार में पिछले कुछ दिनों से चल रहा सियासी खेल अब उत्कर्ष पर है. जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) की महागठबंधन छोड़कर भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) में एंट्री तय बताई जा रही है. हालांकि, इसे लेकर अभी औपचारिक ऐलान होना बाकी है लेकिन खबर है कि नीतीश कुमार महागठबंधन सरकार के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देकर 28 जनवरी को एनडीए सरकार के मुख्यमंत्री के रूप में पद एवं गोपनीयता की शपथ ले सकते हैं.

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बिहार की राजधानी पटना में हलचल बढ़ गई है. जेडीयू ने अपने सभी विधायकों से तत्काल पटना पहुंचने के लिए कहा है तो वहीं दूसरी तरफ लालू यादव के नेतृत्व वाला राष्ट्रीय जनता दल (आरजेजडी) भी एक्टिव मोड में आ गया है. आरजेडी ने राबड़ी देवी के आवास पर विधायकों की आपात बैठक बुला ली है और उन संभावित विकल्पों पर मंथन भी तेज कर दिया है जिनसे नीतीश के साथ छोड़कर जाने के बाद भी सरकार बनाई जा सके.

लालू यादव ने कभी महागठबंधन का हिस्सा रहे हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (हम पार्टी) के अध्यक्ष जीतनराम मांझी से भी बात की है. लालू ने मांझी को उनके बेटे संतोष मांझी को डिप्टी सीएम बनाने का ऑफर भी दिया है. हालांकि, संतोष मांझी ने इस तरह की खबरों को खारिज करते हुए कहा है कि हम एनडीए के साथ हैं और एनडीए के साथ ही रहेंगे. बीजेपी से लेकर जेडीयू और आरजेडी तक, तीनों खेमों में हलचल है. आरजेडी ने जोड़-तोड़ की कोशिशें शुरू कर दी हैं. उसके पास क्या विकल्प हैं, इसकी चर्चा से पहले बिहार विधानसभा का नंबर गेम समझना भी जरूरी है.

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बिहार विधानसभा का नंबर गेम

बिहार विधानसभा के नंबर गेम की बात करें तो 243 सदस्यों वाले सदन में बहुमत के लिए जरूरी जादुई आंकड़ा 122 विधायकों का है. लालू यादव के नेतृत्व वाली आरजेडी 79 सदस्यों के साथ बिहार विधानसभा में सबसे बड़ी पार्टी है वहीं बीजेपी 78 विधायकों के साथ दूसरे नंबर पर है. पहले और दूसरे नंबर की ये दोनों पार्टियां बहुमत के लिए जरूरी जादुई आंकड़े से बहुत पीछे हैं.

अब गठबंधन का गणित देखें तो नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू 45 विधायकों के साथ तीसरे नंबर की पार्टी है. जेडीयू को हटा दें तो महागठबंधन में शामिल कांग्रेस के 19 और लेफ्ट के 16 विधायक हैं. आरजेडी, कांग्रेस और लेफ्ट, तीनों के विधायकों की संख्या जोड़ लें तो कुल सदस्य संख्या 114 पहुंचती है जो बहुमत के लिए जरूरी जादुई आंकड़े से आठ कम है.

बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए की बात करें तो गठबंधन की अगुवाई कर रही पार्टी के 78 विधायक हैं. जीतनराम मांझी की अगुवाई वाली हम पार्टी के चार विधायक हैं. नीतीश कुमार को माइनस करके देखें तो एनडीए के विधायकों की संख्या 82 पहुंचती है. असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी का भी एक विधायक है जो न तो एनडीए में शामिल है और ना ही महागठबंधन में. आंकड़ों के आइने में देखें तो एनडीए हो या महागठबंधन, नीतीश कुमार की पार्टी जिधर का रुख कर ले उधर आसानी से सरकार बन और बच जाएगी. लेकिन अब सवाल यह भी है कि विधानसभा का नंबर गेम नीतीश के जाने से एनडीए के मुफीद होने के बावजूद आरजेडी को आखिर सरकार बनाने की उम्मीद क्यों और कैसे नजर आ रही है?

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नीतीश के बिना कैसे बन सकती है महागठबंधन सरकार?

महागठबंधन को नीतीश कुमार के बिना सरकार बनाने के लिए आठ विधायकों का समर्थन जुटाना होगा. जीतनराम मांझी की हम पार्टी अगर महागठबंधन के साथ जाने का विकल्प चुनती है तो महागठबंधन विधायकों का आंकड़ा 118 तक पहुंच जाएगा. एआईएमआईएम के एकमात्र विधायक का समर्थन भी उसे अगर मिल जाता है तो फिर महागठबंधन को बस तीन विधायकों के समर्थन की जरूरत होगी.

दूसरा विकल्प यह भी है कि महागठबंधन मांझी और एआईएमआईएम को साथ लाए और फिर जेडीयू या बीजेपी में सेंध लगा दे. मांझी और ओवैसी के विधायक के साथ आने के बाद जेडीयू या बीजेपी के छह विधायक अगर विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दें तो बिहार विधानसभा की सदस्य संख्या 237 रह जाएगी और फिर बहुमत का आंकड़ा 119 विधायकों का होगा. ऐसे में महागठबंधन की सरकार बन सकती है.

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महागठबंधन सरकार के लिहाज से तीसरी स्थिति यह है कि नीतीश या एनडीए के खेमे से 16 विधायक विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दें. अगर ऐसा होता है तो बिहार विधानसभा की कुल सदस्य संख्या 227 रह जाएगी. ऐसे में बहुमत का आंकड़ा 114 विधायकों का रह जाएगा और इस स्थिति में भी महागठबंधन सरकार बन सकती है. लेकिन ये अगर-मगर का फेर है.

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महागठबंधन के लिए राह कितनी आसान- कितनी मुश्किल

विधानसभा के आंकड़ों का ऊंट नीतीश के पाला बदलने के बावजूद महागठबंधन के पक्ष में भी बैठ सकता है लेकिन यह इतना आसान नहीं है. पूर्व सीएम जीतनराम मांझी के पुत्र संतोष मांझी भी एनडीए के साथ ही रहने की प्रतिबद्धता जता रहे हैं. नीतीश के बिना महागठबंधन की राह में तमाम चुनौतियां हैं लेकिन लालटेन की सरकार बनाने की उम्मीदें अगर टिमटिमा रही हैं तो उसके पीछे एक वजह यह भी है कि स्पीकर की कुर्सी पार्टी के ही पास है.

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बिहार की सियासत के पुराने दिग्गज लालू यादव एक्टिव मोड में हैं. आरजेडी की ओर से जोड़तोड़ की कोशिशें तेज हो गई हैं और पार्टी हर वह दांव आजमा रही है जिससे नीतीश के साथ छोड़ने के बाद भी सत्ता बची रह सके, तेजस्वी की ताजपोशी का रास्ता साफ हो सके. अब देखना होगा कि नीतीश या तेजस्वी, किसकी सियासी गोटी सेट होती है.

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