
बिहार में अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं और सूबे में नीतीश कुमार के बाद कौन सत्ता का चेहरा हो, इसे लेकर पिच सेट करने में सियासी दल जुट गए हैं. नीतीश कुमार ने पिछले चुनाव में प्रचार थमने से ठीक पहले इमोशनल कार्ड चलते हुए ये ऐलान किया था कि यह मेरा अंतिम चुनाव है. नीतीश 2025 के चुनाव में मैदान से दूरी बनाएंगे या नहीं बनाएंगे, इसे लेकर तस्वीर अभी साफ नहीं है लेकिन विपक्षी खेमे में नीतीश कुमार के विकल्प की लड़ाई छिड़ गई है. महागठबंधन की अगुवाई कर रहे राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के तेजस्वी यादव और चुनावी डेब्यू का ऐलान कर चुके जन सुराज के अगुवाकार प्रशांत किशोर के बीच इसे लेकर परसेप्शन की लड़ाई छिड़ी हुई है.
आरजेडी जहां पिछले चुनाव से ही तेजस्वी यादव को सीएम फेस के तौर पर प्रोजेक्ट करती आई है. वहीं, अब प्रशांत किशोर भी खुलकर मैदान में आ गए हैं. अभी तक 'सरकार को ये करना चाहिए, सरकार को वो करना चाहिए' वाली भाषा बोलते आए प्रशांत किशोर ने पहली बार खुलकर ये कहा है कि हमारी सरकार आई तो हम पहला फैसला क्या लेंगे? उन्होंने कहा है कि हम सत्ता में आए तो पहले एक घंटे में शराब बंदी खत्म कर देंगे. पीके ने खुलकर ये तो नहीं कहा कि मुख्यमंत्री कौन होगा लेकिन जन सुराज का सबसे बड़ा चेहरा होने के नाते वही पार्टी के सीएम फेस माने जा रहे हैं. तेजस्वी यादव और पीके के बीच छेड़े परसेप्शन वॉर को पांच पॉइंट्स में समझा जा सकता है.
1- नीतीश का विकल्प
तेजस्वी यादव और प्रशांत किशोर, दोनों ही नेता खुद को वर्तमान सरकार यानि सीएम नीतीश के विकल्प के तौर पर प्रस्तुत कर रहे हैं. तेजस्वी यादव सीएम नीतीश की महागठबंधन सरकार के समय हुए कार्यों को अपनी उपलब्धि के रूप में जनता के बीच लेकर जा रहे हैं तो वहीं पीके अपना विजन लेकर. करीब-करीब एक ही समय एक्टिव पॉलिटिक्स में आए दोनों ही नेता मैदान में भी उतर चुके हैं. पीके जहां जन सुराज की सियासी जमीन तैयार करने के लिए पिछले करीब दो साल से पदयात्रा पर हैं. वहीं, तेजस्वी यादव भी अब संवाद यात्रा और सभी 243 विधानसभा क्षेत्रों में राजनीतिक कार्यक्रमों के जरिये माहौल अपने पक्ष में मोाड़ने की रणनीति पर काम कर रहे हैं.
2- जननेता कौन
नीतीश कुमार की इमेज एक ऐसे नेता की रही है जिसे जमीन पर जनता क्या चाहती है, ये पता होता है. बिजली आपूर्ति हो या माफियाओं को जेल भेजना या फिर शराबबंदी, नीतीश कुमार की पार्टी 20 साल से बिहार की सत्ता का केंद्र बनी हुई है तो उसके पीछे इन सबका महत्वपूर्ण रोल माना जाता है. अब तेजस्वी और पीके के बीच खुद को जननेता साबित करने की लड़ाई भी चल रही है. पीके पदयात्रा के दौरान जहां आम जनता के दर्द की, उसकी समस्याओं की बात करते हैं तो वहीं तेजस्वी यादव भी अपने खान-पान, रहन-सहन और बोलचाल के जरिये यह संदेश देने का कोई मौका नहीं चूकते कि हम भी आपके बीच के हैं.
3- यूथ आइकॉन
नीतीश की अगुवाई वाली महागठबंधन सरकार के समय हुई शिक्षक भर्ती को आरजेडी तेजस्वी यादव की बड़ी उपलब्धि के रूप में जनता के बीच लेकर जा रही है. आरजेडी की रणनीति तेजस्वी यादव की इमेज 'रोजगार पुरुष' की सेटन करने की है. वहीं, यूथ आइकॉन की इस लड़ाई में प्रशांत किशोर भी मजबूती से मैदान में हैं. पीके पलायन के दर्द की बात कर रहे हैं, युवाओं को रोजगार के अवसर बिहार में ही देने के वादे कर रहे हैं. वह यह कह रहे हैं कि 10 हजार तक के रोजगार के लिए किसी को बिहार से जाने की जरूरत नहीं होगी.
4- वोटबैंक के विस्तार की लड़ाई
बिहार में जातीय गणित के साथ ही इससे परे हटकर वर्गों के समीकरण भी हैं. नीतीश कुमार ने सत्ता में आते ही छात्राओं को मुफ्त साइकिल देकर महिला वोटबैंक अपने पाले में करने की जो कोशिशें शुरू कीं, शराबबंदी और अपराधियों पर सख्ती जैसे कदमों के साथ ही बिजली आपूर्ति में सुधार ने उसे और मजबूत किया. यही वजह है कि नीतीश कुमार को जब भी चुका हुआ मान लिया जाता है, वे मजबूती से वापसी करते हैं जैसा हालिया लोकसभा चुनाव में भी देखने को मिला.
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एम-वाई (मुस्लिम-यादव) से आगे निकल अब तेजस्वी की रणनीति भी युवा और गरीब को साथ लाकर नया वोटा गणित गढ़ने की कोशिश में जुटे हैं. इसी तरह की लड़ाई में अब पीके भी उतर आए हैं. पीके के दल जन सुराज को लेकर कहा जा रहा है कि ये प्रबुद्ध वर्ग के मतदाताओं को आकर्षित कर रहा है. अब पीके ने शराबबंदी का ऐलान किया है तो इससे प्रबुद्ध वर्ग के साथ ही गरीब-मजदूर, दलित-पिछड़ा को भी जोड़ने की रणनीति के रूप में देखा जा रहा है.
5- विरासत बनाम आम
प्रशांत किशोर परिवारवाद को लेकर लालू परिवार और आरजेडी पर हमलावर रहे हैं. पीके ने हाल ही में परिवारवाद को लेकर तंज करते हुए कहा भी था, "शाहरुख खान ने शुरुआत में जिस तरह का भी काम मिला, उसे चुना और अपनी काबिलियत के दम पर नाम बनाया. बॉलीवुड में कई सालों तक काम करने, कई सुपरहिट मूवीज देने के बाद शाहरूख ने अपनी पसंद का डायरेक्टर, प्रोडक्शन हाउस और स्क्रिप्ट चुनना शुरू किया जबकि अभिषेक बच्चन की पहचान यह है कि वह अमिताभ बच्चन के बेटे हैं, इसलिए उनको हमेशा से अपनी पसंद का काम चुनने का मौका मिला." पीके की कोशिश जमीन से उठे और संघर्ष के दम पर अपनी राह बनाने वाले नेता की इमेज सेट करने की है.
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जबकि, आरजेडी पीके को बीजेपी की बी टीम बताती आई है. वहीं, तेजस्वी यादव को सियासत विरासत में मिली है. तेजस्वी के लिए यह सियासी प्लस पॉइंट है. बिहार के वरिष्ठ पत्रकार ओमप्रकाश अश्क ने कहा कि लालू यादव ने तेजस्वी को विरासत में न सिर्फ राजनीति सौंपी, समस्याएं भी सौंप दीं. करीब 10 साल के सियासी जीवन में ही तेजस्वी का नाम लैंड फॉर जॉब और अन्य मामलों में आ चुका है. जो बात तेजस्वी को पीके के खिलाफ परसेप्शन की लड़ाई में अपरहैंड दिला रही है, वही उनके लिए मुश्किलें भी उत्पन्न कर रही है. पीके की बात है तो वह नीतीश, तेजस्वी और चिराग के साथ सूबे की सियासत के चार प्रमुख चेहरों में शामिल जरूर हो गए हैं. पीके को जनसमर्थन भी मिल रहा है लेकिन परसेप्शन की लड़ाई में अभी तेजस्वी भारी पड़ते नजर आ रहे हैं.
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पीके बनाम तेजस्वी क्यों?
बिहार में सरकार एनडीए की है लेकिन चर्चा का केंद्र दो विपक्षी नेता बने हुए हैं- पीके और तेजस्वी. बिहार की चुनावी लड़ाई को ये दोनों दल तेजस्वी बनाम पीके बनाते नजर आ रहे हैं तो इसके पीछे जेडीयू में नीतीश की विकल्पहीनता का फायदा उठाने, बीजेपी को पैर जमाने देने से रोकने की रणनीति भी वजह बताई जा रही है.