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चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर जन सुराज अभियान के तहत पदयात्रा के क्रम में सहरसा पहुंचे हैं. इसकी शुरुआत उन्होंने सोनबरसा राज प्रखंड से की. सोमवार को पदयात्रा के दूसरे दिन वो सलखुआ प्रखंड पहुंचे. इसमें बड़ी संख्या में लोग शामिल हुए. इस दौरान प्रशांत किशोर ने एक जनसभा को भी संबोधित किया.
प्रशांत किशोर ने कहा कि आप लोग अपनी दुर्दशा देखिए, शायद ही ऐसा कोई घर होगा, जहां से आपका जवान बेटा, पति, भाई, भतीजा नौकरी करने के लिए दूसरे राज्यों में न गए हो. मैंने 17 महीनों से अपना घर छोड़ा है. मगर, आपके बच्चे तो सालों से आपको छोड़कर चले गए हैं.
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उन्होंने कहा कि एक बार जो मजदूरी करने के लिए गए, वो साल में एक बार छठ में, ईद में घर आते हैं. तब आप उनका मुंह देख पाते हैं. साल भर वो आदमी वहां गुलामी कर रहा है. 10 घंटे मेहनत करते हैं, पेट काटते हैं ताकि घर में 6-8 हजार रुपये भेज सकें. मगर, यहां के लोगों से पूछिए कि उन्होंने वोट क्यों दिया था? तो वो बताते हैं कि अपनी जाति का नेता खड़ा था इसलिए दे दिए,
उन्होंने कहा कि गांव में मुर्गा-भात खाकर, पाउच पीकर वोट दे दिया तो आपके परिजन नहीं भोगेंगे तो भला और कौन भोगेगा? दूसरे राज्यों में कमा रहा आपका बच्चा बीमार पड़ जाए तो आप उसे देख नहीं सकेंगे. सिर्फ छटपटा कर रह जाएंगे. वोट जिसे भी देना है दो लेकिन वोट अपने बच्चों की शिक्षा-रोजगार के लिए दो.
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प्रशांत किशोर ने कहा कि कुछ लोग कहते हैं कि आप दल बनाइए, बिहार में विकल्प नहीं था. आप आगे-आगे चलिए हम पीछे-पीछे चलेंगे. हमें आपका साथ नहीं चाहिए. भला आप हमारा साथ क्या देंगे. आप तो वो लोग हैं, जिन्होंने अपने बच्चों का साथ नहीं दिया. हम 17 महीने नहीं 17 साल चल लें, फिर भी आप नहीं सुधरेंगे. नेताओं ने आपकी नसों में जाति और धर्म इतना घुसा दिया है कि आपको अपने बच्चों का दर्द भी नहीं दिख रहा है.
इसलिए आपको एक रास्ता बता रहे हैं. वोट जिसे देना है दीजिए, लेकिन अगली बार वोट देते समय स्वार्थी बनिए. अपना और अपने बच्चों का स्वार्थ देखिए. नेता आएंगे और कहेंगे देश के लिए वोट दो. कोई कहेगा अपनी जाति वाले को जिताना है, इसलिए वोट दो. वोट जिसे भी देना है दो, जीवन में एक बार संकल्प लो कि वोट अपने बच्चों के लिए देंगे. जाति, नेता या किसी विचारधारा के लिए नहीं.