
बिहार के दिग्गज और दलित नेता श्याम रजक (70 साल) ने एक बार फिर राष्ट्रीय जनता दल (RJD) का साथ छोड़ दिया है. वे RJD में राष्ट्रीय महासचिव थे. गुरुवार को उन्होंने पद और पार्टी से इस्तीफा दे दिया. उन्होंने दूसरी बार आरजेडी छोड़ी है और पार्टी छोड़ने की वजह भी बताई है. रजक ने कविता के जरिए अपना दर्द बयां किया है. माना जा रहा है कि श्याम रजक अब दूसरी बार जेडीयू में शामिल हो सकते हैं.
श्याम रजक छह बार विधायक रहे हैं और फुलवारी इलाके में खासा प्रभाव माना जाता है. आरजेडी अध्यक्ष लालू प्रसाद को लिखे अपने इस्तीफे में श्याम रजक ने कहा, मैं राष्ट्रीय जनता दल के राष्ट्रीय महासचिव और पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे रहा हूं. अंत में एक कविता लिखा, मैं शतरंज का शौकीन नहीं था, इसलिए धोखा खा गया. आप मोहरे चल रहे थे, मैं रिश्तेदारी निभा रहा था.
जेडीयू में वापसी करेंगे श्याम रजक?
बाद में रजक ने पत्रकारों से बातचीत में कहा कि राजद से मोहभंग हो गया है. उन्होंने बिहार के मुख्यमंत्री और जेडीयू सुप्रीमो नीतीश कुमार के विजन और नेतृत्व की खुलकर प्रशंसा भी की. हालांकि, उन्होंने अपनी अगली रणनीति के बारे में कुछ नहीं बताया. माना जा रहा है कि रजक जेडीयू में वापसी करेंगे. 2020 तक वो जेडीयू का हिस्सा था. 2020 के विधानसभा चुनावों से ठीक पहले आरजेडी में वापस आ गए थे.
आरजेडी ने 2020 में नहीं दिया था टिकट
हालांकि, विधानसभा चुनाव में उन्हें पहला झटका तब लगा, जब आरजेडी ने उन्हें पारंपरिक सीट फुलवारी से टिकट देने से इनकार कर दिया. आरजेडी ने यह सीट गठबंधन की सहयोगी भाकपा (माले) एल को दे दी और उसने वहां से जीत हासिल कर ली.
लोकसभा चुनाव में भी नहीं जताया भरोसा
श्याम रजक को आरजेडी में रहते दूसरा बड़ा झटका लोकसभा चुनाव में लगा है. हालिया लोकसभा चुनाव में वो समस्तीपुर या जमुई से चुनाव लड़ना चाहते थे. उन्होंने अपने इरादे भी जाहिर कर दिए थे, लेकिन पार्टी ने उन्हें फिर से मैदान में नहीं उतारा.
क्यों आरजेडी से नाराज चल रहे थे श्याम रजक
जानकारी के मुताबिक, आरजेडी नेतृत्व से रजक वैसे तो लंबे समय से नाराज चल रहे थे. लेकिन खासतौर पर यह नाराजगी तब और बढ़ गई, जब 2022 में विधान परिषद में उन्हें टिकट देने पर विचार नहीं किया गया. यानी पहले विधानसभा चुनाव लड़ने का मौका नहीं मिला और सदन में जाने के दूसरे रास्ते (विधान परिषद) को भी बंद कर दिया गया. उसके बाद 2024 का लोकसभा चुनाव आया और पार्टी ने फिर इग्नोर कर दिया. आरजेडी ने जमुई से अर्चना रविदास को मैदान में उतारने का फैसला किया. ऐसे में रजक के सामने समस्तीपुर (आरक्षित सीट) से उतरने का विकल्प बचा, लेकिन यह सीट भी अलायंस में सहयोगी कांग्रेस को दे दी गई. तब से वो जल्द पार्टी छोड़ने की रणनीति पर काम कर रहे थे.
रजक कभी लालू यादव के बेहद करीबी माने जाते थे. हालांकि, लालू के बेटे और पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी प्रसाद यादव के उभरने के बाद वो आरजेडी में हाशिए पर चले गए. आरजेडी सूत्रों बताते हैं कि रजक लंबे समय से नाराज चल रहे थे.
बिहार की राजनीति में चर्चित थी राम-श्याम की जोड़ी
बिहार की राजनीति में जब लालू प्रसाद यादव संगठन से लेकर सरकार का कामकाज खुद देखते थे, उस समय राम-श्याम की जोड़ी का दबदबा माना जाता था. राम कृपाल यादव और श्याम रजक, लालू के लेफ्ट और राइट हैंड कहे जाते थे. राम और श्याम के नाम से यह जोड़ी सियासी गलियारे में इतनी चर्चा में रहती थी कि दोनों नेता अपनी किसी भी मांग को पार्टी हाईकमान से पूरा करवाने में सक्षम माने जाते थे. हालांकि, समय के साथ परिस्थितियां बदलीं और सबसे पहले राम यानी रामकृपाल यादव ने आरजेडी से एग्जिट किया और बीजेपी में शामिल हो गए. उसके बाद अब दूसरा ऐसा मौका आया, जब श्याम रजक को भी आरजेडी छोड़नी पड़ी है. इसका प्रमुख कारण यही माना जा रहा है कि लालू यादव भले पार्टी सुप्रीमो हैं, लेकिन संगठन से जुड़े सभी निर्णय उनके बेटे तेजस्वी यादव ले रहे हैं और लालू के करीबी और पुराने भरोसेमंद साथियों की एक नहीं चल रही है. पुराने नेता आज खुद को पार्टी में असहज महसूस कर रहे हैं और अपने लिए ही टिकट की जुगाड़ नहीं कर पा रहे हैं. ऐसे में उनके सामने एग्जिट करने या मौका मिलने तक इंतजार करने के अलावा दूसरा कोई ऑप्शन नहीं बच रहा है.
श्याम रजक के मामले में भी यही हुआ है. तेजस्वी के नेतृत्व में उनकी भूमिका बहुत सीमित रह गई थी. उन्होंने खुद को हाशिए पर महसूस किया और पार्टी छोड़ने का फैसला किया.
राबड़ी सरकार में मंत्री रहे रजक
श्याम रजक ने 1995 में फुलवारी से अपना पहला विधानसभा चुनाव जीता था. उसके बाद वे वहां से लगातार चार बार चुनाव जीते. ये सीट अनुसूचित जाति (एससी) के लिए आरक्षित है. रजक ने आरजेडी चीफ की पत्नी राबड़ी देवी के नेतृत्व वाली सरकार में बिजली मंत्री के रूप में भी काम किया.
नीतीश सरकार में दो बार मंत्री रहे रजक
रजक के बारे में कहा जाता है कि वो अपनी राजनीतिक शुरुआत में नीतीश कुमार के खिलाफ मुखर रहे हैं. हालांकि, बाद में नीतीश के पाले में आ गए. जेडीयू में शामिल होने के बाद उन्होंने 2010 के चुनावों में फुलवारी से फिर से जीत हासिल की और उन्हें नीतीश मंत्रिमंडल में शामिल किया गया. रजक उस समय खाद्य प्रसंस्करण और उपभोक्ता संरक्षण मंत्री बनाए गए थे.
रजक ने 2015 के विधानसभा चुनाव में भी फुलवारी सीट बरकरार रखी और नीतीश सरकार में उन्हें उद्योग मंत्री बनाया गया. हालांकि, अगस्त 2020 में नीतीश से मतभेद हो गए और वे फिर से आरजेडी में शामिल हो गए.