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दलित चेहरा, राहुल गांधी के करीबी... बिहार प्रदेश अध्यक्ष के लिए आखिर कांग्रेस ने राजेश कुमार को ही क्यों चुना?

बिहार कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में दलित समुदाय से आने वाले विधायक राजेश कुमार चुना गया है. कुटुंबा विधानसभा से कांग्रेस विधायक राजेश कुमार को प्रदेश अध्यक्ष बनाए जाने का फैसला पार्टी के रणनीतिक कदम के रूप में देखा जा रहा है. इससे कांग्रेस ने स्पष्ट संकेत दिया है कि वह बिहार में अपने बूते दलित राजनीति को मजबूती से आगे बढ़ाना चाहती है.

बिहार कांग्रेस अध्यक्ष बने राजेश कुमार बिहार कांग्रेस अध्यक्ष बने राजेश कुमार
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 18 मार्च 2025,
  • अपडेटेड 10:59 PM IST

बिहार में आगामी विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस ने बड़ा सियासी कदम उठाया है. भूमिहार जाति से आने वाले अखिलेश प्रसाद सिंह की जगह दलित समुदाय से आने वाले विधायक राजेश कुमार को प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष नियुक्त किया गया है.

राजेश कुमार को मिली बिहार कांग्रेस की कमान 

कुटुंबा विधानसभा से कांग्रेस विधायक राजेश कुमार को प्रदेश अध्यक्ष बनाए जाने का फैसला पार्टी के रणनीतिक कदम के रूप में देखा जा रहा है. इससे कांग्रेस ने स्पष्ट संकेत दिया है कि वह बिहार में अपने बूते दलित राजनीति को मजबूती से आगे बढ़ाना चाहती है.

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अखिलेश प्रसाद सिंह की जगह नियुक्ति, आंतरिक असंतोष के संकेत 

राजेश कुमार की नियुक्ति ऐसे समय में हुई है जब पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश प्रसाद सिंह पार्टी के भीतर समन्वय की कमी को लेकर नाराजगी जता चुके थे. लोकसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस के खराब प्रदर्शन और अपने बेटे को टिकट दिलाने को लेकर भी उन पर सवाल उठे थे.

राहुल गांधी के करीबी माने जाते हैं राजेश कुमार 

राजेश कुमार की नियुक्ति का एक और महत्वपूर्ण पहलू यह है कि वह राहुल गांधी के करीबी माने जाते हैं. इससे पहले कांग्रेस के पूर्व प्रदेश प्रभारी भक्त चरण दास ने भी राजेश कुमार को प्रदेश अध्यक्ष बनाने का प्रस्ताव दिया था, लेकिन तब किन्हीं कारणों से अखिलेश प्रसाद सिंह को नेतृत्व सौंपा गया था.

आरजेडी को कांग्रेस की चुनौती 

कांग्रेस के इस फैसले को राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के लिए एक सियासी संदेश के रूप में भी देखा जा रहा है. अब सीट शेयरिंग के मुद्दे पर कांग्रेस आरजेडी को नेतृत्व के स्तर पर चुनौती देती नजर आ सकती है. कांग्रेस के इस कदम से बिहार की राजनीति में नए समीकरण बन सकते हैं, खासकर दलित वोट बैंक के प्रभावी इस्तेमाल की रणनीति में.

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