
मोदी सरकार के मौजूदा बजट को ग्रामीण गरीबों और खासकर किसानों के लिए काफी हितैषी बताया जा रहा है. लेकिन जानकारों का मानना है कि फसलों की एमएसपी बढ़ाने, कर्ज आसान करने जैसे उपायों के बावजूद खेती-किसानी का संकट कम से कम हाल के वर्षों में दूर होता नहीं दिख रहा.
बजट पेश करते हुए वित्त मंत्री अरुण जेटली ने दावा किया कि मोदी सरकार किसानों के कल्याण के लिए प्रतिबद्ध है. वित्त मंत्री ने कृषि क्षेत्र में 'ऑपरेशन ग्रीन' शुरू करने के साथ ही, खरीफ की फसलों के लिए एमएसपी उपज लागत से 50 फीसदी ज्यादा तय करने की घोषणा की है. लेकिन यदि तथ्यों की जांच करें और कुछ दिन पहले ही जारी इकोनॉमिक सर्वे से तुलनात्मक अध्ययन कर लें तो लगेगा कि यह सब बातें महज कागजी ही हैं.
बजटीय आवंटन में ज्यादा बढ़त नहीं
कृषि पर बजटीय आवंटन 46,700 करोड़ रुपये का ही किया गया है, जो पिछले साल के बजट से थोड़ा ही ज्यादा है और कुल 21 लाख करोड़ रुपये के बजट का महज 2.3 फीसदी है. पिछले बजट की तुलना में इसमें 4,845 करोड़ रुपये की ही बढ़ोतरी की गई है. ऐसे में सवाल उठता है कि महज इतनी बढ़ोतरी में साल 2022 तक किसानों की आय दोगुना करने का लक्ष्य क्या पूरा कर पाएगी सरकार?
एमएसपी का छलावा
खरीफ फसल के लिए एमएसपी में लागत से 50 फीसदी ज्यादा की बात सुनने में बहुत आकर्षक लगती है, लेकिन सच तो यह है कि इसके साथ एक लोचा है. इसमें कहीं यह साफ नहीं किया गया है कि यह बढ़त उत्पादन लागत से ऊपर होगी या नहीं. उत्पादन लागत का मतलब है कि उसमें परिवार के श्रम, लगाई गई पूंजी, जमीन के किराए आदि सभी को शामिल किया जाए. किसान नेताओं का कहना है कि, 'बाजार हस्तक्षेप और कीमत समर्थन योजना के लिए आवंटन पिछले साल के बजट के संशोधित अनुमान 950 करोड़ रुपये से पांच गुना घटाकर महज 200 करोड़ रुपये कर दिया गया है.'
पूर्व वित्त मंत्री पी चिदम्बरम ने इसे महज दिखावे का बताया है. उन्होंने कहा, 'एमएसपी को 1.5 गुना बढ़ाने का वादा किया गया है, लेकिन इसका कोई विवरण नहीं दिया गया है. इसके अलावा, ई-मार्केट्स के लिए 2,000 करोड़ रुपये और ऑपरेशन ग्रीन के लिए 500 करोड़ रुपये की रकम भी मामूली ही है. इससे कहीं यह संकेत नहीं मिलता कि किसानों की वास्तविक आय बढ़ेगी. उन्होंने कहा, 'कृषि क्षेत्र की समस्या जारी रहेगी और गहराएगी ही, इससे खेती पर निर्भर बहुसंख्यक लोगों के जीवन में दुर्दशा बनी रहेगी.'
कर्ज का ज्यादा फायदा नहीं
कृषि क्षेत्र के लिए संस्थागत कर्ज वितरण को बढ़ाकर 11 लाख करोड़ रुपये करने की बात कही गई है, लेकिन सच तो यह है कि ज्यादातर किसान इस कर्ज व्यवस्था के दायरे से बाहर हैं. इकोनॉमिक सर्वे के अनुसार इस वित्त वर्ष में प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना पर महज 600 करोड़ रुपये का आवंटन हुआ, जबकि राज्यों में सूखे और मानूसन की अनिश्चितता के हालात देखे गए. इसकी वजह से किसान काफी नाराज रहे और राजस्थान सहित कई राज्यों में किसानों ने विरोध प्रदर्शन किए.
किसान संगठनों के अनुसार, 'बजट में भूमिहीन जोतदार किसानों के कल्याण की बात कही गई है, लेकिन सच यह है कि पिछले कुछ वर्षों से भूमिहीन किसान क्रेडिट स्कीम लागू करने के बावजूद उनकी हालत में कोई अंतर नहीं आया है. आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, ओडिशा आदि राज्यों में आत्महत्या करने वाले ज्यादातर किसान भूमिहीन ही रहे हैं. बजट में जोतदार किसानों के हितों के लिए वास्तव में कुछ किया भी नहीं गया है.'
फसल बीमा का भी खास फायदा नहीं
बजट 2018 में प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के लिए 4,000 करोड़ रुपये की व्यवस्था की गई है. लेकिन पिछले आंकड़ों से पता चलता है कि इसमें जनता का पैसा सिर्फ बर्बाद ही हो रहा है और वास्तव में किसानों का ज्यादा भला नहीं हो रहा. इसका ज्यादा से ज्यादा फायदा निजी बीमा कंपनियों को मिल रहा है.
आपाद राहत आवंटन में कमी
इकोनॉमिक सर्वे में जलवायु परिर्वतन और आपदा को खेती-किसानी के लिए महत्वपूर्ण बताया गया था. लेकिन वित्त मंत्री ने आपदा राहत के लिए आवंटन घटा दिया है. सर्वे के अनुसार जलवायु परिवर्तन से खेती की आय में 20 फीसदी की गिरावट आ सकती है. उस पर भी बढ़त का ज्यादातर हिस्सा उर्वरक और रसायन सब्सिडी में चला जाएगा.
(dailyo.in से साभार)