
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने केंद्रीय बजट पेश करते हुए कहा कि अब भारत सरकार देश में विदेशी विद्यार्थियों के एडमिशन को बढ़ावा देने के लिए 'स्टडी इन इंडिया' प्रोग्राम शुरू करेगी. वित्त मंत्री ने कहा, स्टडी इन इंडिया प्रोग्राम का मकसद विदेशी छात्रों के लिए भारत को एजुकेशन हब बनाना और देश के शीर्ष शैक्षणिक संस्थानों में पढ़ने के लिए विदेशियों का रास्ता साफ करना है.
लेकिन हैरानी की बात है कि इस योजना को पहले ही लॉन्च किया जा चुका है. सरकार जिस 'स्टडी इन इंडिया' को नया प्रोग्राम बता रही है उसे साल 2018 में लॉन्च किया जा चुका है. इस योजना को तत्कालीन विदेश मंत्री सुषमा स्वराज और सूचना एवं प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने शुरू किया था. जिस समय इस योजना को शुरू किया गया था, इस योजना की वेबसाइट भी बनाई गई थी.
खास बात है कि स्टडी इन इंडिया का ट्विटर हैंडल भी बना हुआ है. यह केवल औपचारिक घोषणा ही नहीं थी बल्कि इसके लिए बाकायदा प्रेस इन्फॉर्मेशन ब्यूरो (पीआईबी) ने प्रेस नोट भी जारी किया था. मानव संसाधन विकास मंत्रालय और विदेश मंत्रालय ने मिलकर स्टडी इन इंडिया (studyinindia.gov.in) नाम के कार्यक्रम की शुरुआत की थी.
अपने भाषण के दौरान निर्मला सीतारमण ने भारत के तीन बड़े शैक्षणिक संस्थानों का जिक्र किया. इन संस्थानों में 2 इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (IIT) और 1 इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस (IISc) का जिक्र किया है. उन्होंने अपने अभिभाषण में कहा कि ये तीनों संस्थान विश्व के शीर्ष 200 शैक्षणिक संस्थानों में से एक हैं.
क्या था योजना का मकसद?
उस वक्त केंद्र सरकार ने कहा था कि इस योजना के जरिए देश में पढ़ाई करने आने वाले विदेशी छात्रों में से टॉप 25 फीसदी छात्रों की फीस पूरी तरह माफ कर दी जाएगी. साथ ही यह भी कहा गया था कि अगले 25 फीसदी छात्रों को केवल 50 फीसदी शुल्क जमा कराना होगा. अगले 25 फीसदी छात्रों को 25 फीसदी छूट दी जाएगी और शेष 25 फीसदी छात्रों के लिए कोई छूट की व्यवस्था नहीं की गई थी.
इस योजना का मकसद शिक्षा की गुणवत्ता को सुधारने के साथ-साथ भारत की सॉफ्ट पावर को कूटनीतिक रंग देना भी था. पड़ोसी देशों को भी इस कार्यक्रम के तहत लाभ पहुंचाने की बात कही गई थी. भारत के शैक्षणिक संस्थानों की गुणवत्ता सुधारने और वैश्विक स्तर के विश्वविद्यालयों को तैयार करने के लिए केंद्र सरकार ने यह पहल की थी.
इस योजना के लिए केंद्र सरकार ने 2018 में ही 150 करोड़ का बजट रखा था. यह योजना 2018-19 और 2019-20 तक के लिए चालू की गई थी. इस दौरान कहा गया था कि सरकार इस योजना की ब्रांडिंग पर खास ध्यान देगी.
मौजूदा सरकार ने बढ़ाया बजट
2019 से 2022 तक विश्वस्तरीय शैक्षणिक संस्थानों के निर्माण और विकास के लिए इस बार 400 करोड़ खर्च करने का लक्ष्य रखा गया है. यह पिछले बजट से तीन गुना ज्यादा है.
हायर एजुकेशन कमीशन का होगा गठन
केंद्रीय बजट पेश करते हुए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि शैक्षणिक संस्थानों की जांच के लिए एक उच्च स्तरीय कमीशन का गठन किया जाएगा, जो एक रेगुलेटरी के तौर पर काम करेगा.
निर्मला सीतारमण ने कहा कि 5 साल पहले तक भारत में एक भी संस्थान वैश्विक स्तर का नहीं था, लेकिन आज स्थिति अलग है. निर्मला सीतारमण ने कहा, 'शैक्षणिक संस्थानों के सुधार के लिए हर संभव प्रयास किया जा रहा है. दो IIT और IISc संस्थान विश्व स्तर के 200 संस्थानों में जगह बनाने में कामयाब हुए हैं.'
अब देखने वाली बात होगी कि किस तरह एक पुरानी योजना को नया बताकर केंद्र सरकार स्टडी इन इंडिया कार्यक्रम की चुनौती का सामना करेगी. साथ ही उसके सामने नए कलेवर के साथ भारतीय शिक्षा व्यवस्था को सुधारने का भी चैलेंज रहेगा.