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रोजगार के मुद्दे पर क्या उम्मीदों पर खरा उतरा बजट?

रोजगार के मोर्चे पर किसी विशेष एक्शन की जगह वित्त मंत्री ने आंकड़ों को दुरुस्त करने और ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार बढ़ाने के परंपरागत प्रयासों पर ही भरोसा किया है. इस मामले में किसी खास पैकेज की उम्मीद पूरी नहीं हुई.

नौकरियों के मामले में सरकार की हो रही आलोचना नौकरियों के मामले में सरकार की हो रही आलोचना
दिनेश अग्रहरि
  • नई दिल्ली,
  • 02 फरवरी 2018,
  • अपडेटेड 2:13 PM IST

पर्याप्त संख्या में नौकरियां सृजित करने के मामले में सरकार के 'विफल' रहने को लेकर पिछले दिनों में विपक्ष काफी हमलावर हुआ है. इसलिए सबकी नजर वित्त मंत्री अरुण जेटली पर थी कि बजट में वह इस बारे में क्या ठोस कदम उठाते हैं. लेकिन रोजगार के मोर्चे पर किसी विशेष एक्शन की जगह वित्त मंत्री ने आंकड़ों को दुरुस्त करने और ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार बढ़ाने के परंपरागत प्रयासों पर ही भरोसा किया है. इस मामले में किसी खास पैकेज की उम्मीद पूरी नहीं हुई.

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यह मसला कितना महत्वपूर्ण है, यह इसी बात से समझा जा सकता है कि एक अनुमान के अनुसार अगले पांच साल में करीब 10.5 करोड़ बेरोजगार नौकरियों की तलाश में खड़े हो जाएंगे.  बजट इस बात के लिए बेहतर अवसर था कि वित्त मंत्री ऐसी ठोस नीतियां बनाएं और आवंटन करें जिससे नौकरियों का सृजन रफ्तार पकड़ सकें. लेकिन सरकार नौकरियों के सृजन के मामले में आंकड़ों को दुरुस्त करने और मौजूदा विकल्पों को अपनाने पर ही जोर दे रही है. ऐसा माना जा रहा है कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था और निजी क्षेत्रों में उभरते सेक्टर के दम पर नौकरियां बढ़ेंगीं.

उद्योग चैंबर सीआईआई के अनुमान के अनुसार साल 2011-12 से 2015-16 के बीच हर साल 36.5 लाख नौकरियों का सृजन हुआ था. लेकिन जीएसटी और नोटबंदी के दौर में इस सिलसिले पर रोक लग गई. आलोचना के बाद इस मोर्चे पर सुधार के लिए सरकार दो स्तरीय रवैया अपना रही है. उन सेक्टर की पहचान की जा रही है जहां नौकरियों का सृजन हो सकता है और साथ ही, नीति आयोग से कहा गया है कि वह नौकरियों के बेहतर आंकड़े तैयार करने पर काम करे.

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एसबीआई के मुख्य आर्थिक सलाहकार सौम्य कांति घोष और आईआईएम के प्रोफेसर पुलक घोष के एक अध्ययन में कहा गया है कि 2017-18 में 55 लाख नौकरियों का सृजन होगा. हालांकि, ईपीएफ, कर्मचारी बीमा निगम, जीपीएफ और नेशनल पेंशन सिस्टम की सदस्यता के आधार पर यह आंकड़े तय किए गए हैं. शायद इसी के आधार पर वित्त मंत्री ने कहा है कि 2018-19 में 70 लाख नौकरियों का सृजन किया जाएगा.

वित्त मंत्री ने एमएसएमई में रोजगार को बढ़ावा देने के लिए 3,794 करोड़ रुपये का प्रावधान किया है. इसके अलावा मुद्रा योजना में अगले वित्त वर्ष में 3 लाख करोड़ रुपये लोन देने का लक्ष्य रखा गया है. वित्त मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी का कहना है कि अब वास्तव में नौकरियां ग्रामीण क्षेत्रों में ही बढ़ सकती हैं. इस वजह से सरकार ने पशुपालन, फूड पार्क आदि पर जोर दिया है.

सरकारी सूत्रों का यह कहना है कि 98 फीसदी उद्यम लेबर रिकॉर्ड ब्यूरो के दायरे से बाहर हैं, इसलिए नौकरियों का सही आंकड़ा नहीं आ पाता. इसलिए निजी और सार्वजनिक क्षेत्र से हासिल जटिल आंकड़ों के आधार पर वास्तविक तस्वीर हासिल करने की कोशिश हो रही है.

सूत्रों के अनुसार वित्त मंत्रालय ने नौकरियों के सृजन के लिए सोलर इक्विपमेंट मैन्युफैक्चरिंग, साइबर सिक्योरिटी, आयुर्वेद, योग, इलेक्ट्रॉनिक्स और टेलीकॉम मैन्युफैक्चरिंग जैसे सेक्टर की पहचान की है. इसके अलावा सरकार को उम्मीद है कि स्टील, बिजली, डिफेंस इक्व‍िपमेंट और एफएमसीजी सेक्टर में सुधार से नौकरियां बढ़ेंगी.

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