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नरेंद्र मोदी सरकार ने अपना अंतिम पूर्ण बजट पेश कर दिया और इस बजट में सबसे ज्यादा चर्चा बटोरी महत्वाकांक्षी 'आयुष्मान भारत' योजना ने, लेकिन इसमें एक और खास बात रही जिसको अपेक्षाकृत काफी कम चर्चा मिली.
वित्त मंत्री अरुण जेटली ने अपने बजट भाषण में दुनिया की सबसे बड़ी स्वास्थ्य योजना 'आयुष्मान भारत' का ऐलान करते हुए कहा कि इसके तहत करीब 10 करोड़ परिवारों को सलाना 5 लाख रुपये का मेडिकल कवर भी दिया जाएगा. साथ ही इस योजना का लाभ देश की 40 फीसदी आबादी यानी 50 करोड़ लोगों को मिलेगा. इसमें निजी क्षेत्र की कंपनियां भी भाग ले सकेंगी.
खर्चीला मोदीकेयर!
मोदी सरकार की इस स्वास्थ्य योजना को 2010 में अमेरिका में शुरू की गई चर्चित 'ओबामाकेयर' की तरह माना जा रहा है. 'ओबामाकेयर' की तरह 'मोदीकेयर' में भी भारी पैसा लगेगा. सूत्र बताते हैं कि केंद्र सरकार के अनुमान के मुताबिक देश में एक व्यक्ति को यह बीमा देने की लागत लगभग 1100 रुपये आएगी. इस तरह से 'मोदीकेयर' में हर साल 11 हजार करोड़ रुपये का खर्चा आएगा. लेकिन अब बात करते हैं उस खास चीज की जिसको कम तरजीह मिली.
जेटली ने बजट भाषण के दौरान कहा था कि भारत को स्वस्थ भारत बनाया जाएगा, इसके लिए देशभर में 1.5 लाख स्वास्थ्य केंद्र खोले जाएंगे. इन स्वास्थ्य केंद्रों के खोले जाने का फायदा आम लोगों को फौरी तौर पर होगा, क्योंकि उन्हें आम बीमारियों के इलाज के लिए दूर नहीं जाना होगा और पास के इन केंद्रों से इलाज करा सकेंगे. साथ ही आरोग्य से जुड़ी सुविधाएं भी मुहैया कराई जाएंगी.
बीमा तो दूर, शुरुआती इलाज में मिलेगा फायदा
दूसरी ओर, आम लोगों को 5 लाख रुपये की बीमा का फायदा तब मिलेगा जब बीमारी बड़ी या फिर गंभीर होने की स्थिति में वह हॉस्पिटल में भर्ती होगा, लेकिन स्वास्थ्य केंद्रों का फायदा छोटे और बड़े हर तरह के बीमार लोगों को तुरंत मिलेगा.
अब तक देश में एक स्वास्थ्य केंद्र से दूसरे स्वास्थ्य केंद्र के बीच काफी दूरी होती थी, लेकिन डेढ़ लाख नए स्वास्थ्य केंद्रों के आ जाने की सूरत में बीमार लोगों के लिए घर के करीब ही इलाज कराना सुलभ हो जाएगा. खासकर दूर-दराज और ग्रामीण अंचलों में रहने वाले लोगों के लिए. उनकी महंगे निजी हॉस्पिटल पर निर्भरता कम होगी.
नए कॉलेजों से आएंगे नए डॉक्टर्स
नए स्वास्थ्य केंद्र खुलेंगे तो डॉक्टरों की जरूरत भी होगी. ऐसे में सरकार ने देश में डॉक्टरों की कमी को दूर करने की बड़ी योजना बनाई है और इसके लिए पूरे देश में 24 जिला हॉस्पिटलों को अपग्रेड करते हुए मेडिकल कॉलेज में तब्दील कर दिया जाएगा. इन मेडिकल कॉलेजों में इलाज के साथ-साथ नए डॉक्टर्स भी तैयार किए जाएंगे.
आज की तारीख में भारत में डॉक्टर और मरीज के बीच भारी अंतर दिखता है और यह अनुपात है 1: 1700 का. जबकि विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार 400 मरीजों पर एक डॉक्टर होने चाहिए.
नई योजना के तहत हर 3 संसदीय क्षेत्र या फिर एक राज्य में कम से कम एक मेडिकल कॉलेज खोले जाएंगे. फिलहाल देश में निजी और सरकारी दोनों मेडिकल कॉलेजों से हर साल 67 हजार एमबीबीएस और 31 हजार पोस्ट ग्रेजुएट डॉक्टर पास होकर निकलते हैं. ऐसे में कई नए मेडिकल कॉलेज खुलने से डॉक्टरों की कमी दूर होगी और लोगों के इलाज के लिए पर्याप्त डॉक्टर सुलभ हो सकेंगे.
रोजगार भी बढ़ेगा
24 जिला हॉस्पिटलों को अपग्रेड करते हुए मेडिकल कॉलेज खोले जाने और डेढ़ लाख नए स्वास्थ्य केंद्र खोले जाने से देश में रोजगार भी बढ़ेगा. आसपास के क्षेत्रों से मरीजों के आने से कई तरह की सुविधाएं विकसित होंगी और आम लोगों को इससे फायदा होगा.
पर क्या यह इतना आसान होगा
मोदी सरकार की महत्वाकांक्षी और चुनाव से एक साल पहले ऐलान किए गए 'आयुष्मान भारत' योजना क्या कामयाब हो सकेगी. मोदी सरकार का यह अंतिम पूर्ण बजट है और भाषण के दौरान वित्त मंत्री ने इस पर खर्च की जाने वाली धनराशि को लेकर कोई चर्चा नहीं की.
अभी सिर्फ ऐलान ही किया गया है और इसकी रुपरेखा तैयार होने में समय लग सकता है. सरकार अगर अगले कुछ महीनों में इसकी विस्तृत घोषणा करती है तो कुछ बात बन सकती है, लेकिन अगर इसमें 6 माह से ज्यादा की भी देरी हुई तो उस समय तक देश में चुनावी माहौल बनता जाएगा और केंद्र में बीजेपी अपनी सत्ता बचाए रखने की जुगत में बिजी हो जाएगी. फिर इसका भविष्य नई सरकार पर निर्भर करेगा.
इसका दूसरा पक्ष यह भी है कि इसे लागू किस तरह किया जाता है. पहले भी कई बड़ी और महत्वाकांक्षी योजना देश में शुरू की गई और इसका हश्र सभी ने देखा. 2005 में मनमोहन सिंह सरकार द्वारा घोषित राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (NHM) का हाल सभी को मालूम है. NHM के तहत राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य योजना (NHRM) अपने घोटाले के लिए ज्यादा चर्चा में रहा. राष्ट्रीय बीमा योजनाओं का प्रदर्शन बहुत खराब रहा है.
स्वास्थ्य बीमा योजना भी हर घोषणा की तरह लोक-लुभावनी दिख रही है, लेकिन इसकी कामयाबी इस पर निर्भर करती है कि इसे लागू कैसे और किस तरह से साथ ही कितनी गंभीरता के साथ किया जाता है.