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आज बजट को आसानी से समझना है तो इन शब्दों को समझ लीजिए

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के बजट भाषण को समझना आपके लिए मुश्किल न हो, इसके लिए हम लेकर आए हैं, बजट की शब्दावली आसान शब्दों में. इन शब्दों को समझ लें, आपके लिए बजट समझना आसान हो जाएगा.

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण पेश करेंगी बजट (फोटो: PIB) वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण पेश करेंगी बजट (फोटो: PIB)
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 05 जुलाई 2019,
  • अपडेटेड 10:36 AM IST

केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतामरण आज मोदी सरकार 2.0 का पहला बजट पेश करने जा रही हैं. इसे 'न्यू इंडिया' का बजट कहा जा रहा है जिसके जरिए मोदी सरकार सुस्त पड़ी अर्थव्यवस्था की गति तेज करने के उपाय कर सकती है. इस बजट पर कॉरपोरेट-उद्योग जगत की नजर तो है ही, सबसे ज्यादा नजर उस आम आदमी की है जो बेरोजगारी और आमदनी न बढ़ने से परेशान है. कुछ ही घंटों में वित्त मंत्री निर्मला सीतामरण अपना बजट भाषण शुरू करेंगी, लेकिन इसे समझना आपके लिए मुश्किल न हो, इसके लिए हम लेकर आए हैं, बजट की शब्दावली आसान शब्दों में. इन शब्दों को समझ लें, आपके लिए बजट समझना आसान हो जाएगा.

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1. टैक्स (कर): सरकार अपने खर्चों को पूरा करने के लिए आमदनी टैक्स से करती है.  यह एक प्रकार का अनिवार्य भुगतान है जिसे करदाता को सरकार को देना होता है. यह टैक्स दो प्रकार होते हैं, प्रत्यक्ष कर और अप्रत्यक्ष कर. वह टैक्स, जिसे आपसे सीधे तौर पर वसूला जाता है, जैसे इनकम टैक्स, कॉरपोरेट टैक्स, शेयर या दूसरी संपत्तियों से आय पर कर, प्रॉपर्टी टैक्स आदि डायरेक्ट टैक्स या प्रत्यक्ष कर कहलाते हैं. दूसरी तरफ, वह टैक्स जिसे सीधे जनता से नहीं लिया जाता किंतु जिसका बोझ आखि‍रकार उसी पर पड़ता है, उसे अप्रत्यक्ष कर कहलाते हैं. जैसे, देश में तैयार की गई वस्तुओं पर लगने वाला उत्पाद शुल्क (एक्साइज), आयात या निर्यात किए जाने वाले वस्तुओं पर लगने वाले सीमा शुल्क (कस्टम), सर्विस टैक्स आदि अप्रत्यक्ष कर हैं.

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2  उपकर और अधि‍भार (Cess एवं Surcharge): सेस या उपकर किसी टैक्स के साथ किसी विशेष उद्येश्य के लिए धन इकठ्ठा करने के लिए, कर आधार (tax base) पर ही लगाया जाता है. जैसे स्वच्छ भारत सेस, कृषि कल्याण सेस, स्वच्छ पर्यावरण सेस आदि. अधिभार या सरचार्ज कर के ऊपर लगने वाला कर है जिसकी गणना कर दायित्व के आधार पर की जाती है. सामान्यतः इसे इनकम टैक्स के ऊपर लगाया जाता है.

3. आयकर (Income tax): यह हमारी आय के स्रोत जैसे कि आमदनी, निवेश और उस पर मिलने वाले ब्याज पर लगता है.

4. कॉरपोरेट टैक्स (Corporate tax): कॉरपोरेट टैक्स कॉरपोरेट संस्थानों या फर्मों पर लगाया जाता है, जिसके जरिए सरकार को आमदनी होती है.

5. उत्पाद शुल्क (Excise duties): देश की सीमा के भीतर बनने वाले सभी उत्पादों पर लगने वाला टैक्‍स को उत्पाद शुल्क  कहते हैं. एक्‍साइज़ ड्यूटी को अब जीएसटी में शामिल कर लिया गया है.

6. सीमा शुल्क (Customs duties): सीमा शुल्क उन वस्तुओं पर लगता है, जो देश में आयात की जाती है या फिर देश के बाहर निर्यात की जाती है.

7. वित्तीय वर्ष: भारत में वित्तीय वर्ष की शुरुआत एक अप्रैल से होती है और यह अगले साल के 31 मार्च तक चलता है. इस साल का बजट वित्तीय वर्ष 2019-20 के लिए होगा जो एक अप्रैल 2019 से 31 मार्च 2020 तक के लिए होगा. ऐसी मांग उठती रही है कि वित्तीय वर्ष को जनवरी से दिसंबर तक किया जाए, लेकिन अभी इसे माना नहीं गया है.

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8.  शॉर्ट टर्म और लॉन्ग टर्म गेन: शेयर बाजार में कोई भी व्यक्ति यदि एक साल से कम समय के लिए पैसे लगा कर लाभ कमाता है तो उसे अल्पकालिक पूंजीगत लाभ (शॉर्ट-टर्म कैपिटल गेन) कहते हैं. शेयरों में जो पैसा एक साल से अधिक समय के लिए होता है उसे दीर्घकालिक पूंजीगत लाभ (लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन) कहते हैं. पहले लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन पर टैक्स नहीं देने का प्रावधान था लेकिन 2018-19 के बजट में इस पर 10 फ़ीसदी टैक्स का प्रावधान किया गया. हालांकि, यह टैक्स सिर्फ़ 1 लाख रुपये से अधिक की कमाई पर ही देना होता है.

9. सब्सिडी (Subsidies): आर्थिक असमानता दूर करने के लिए सरकार की ओर से आम लोगों को दिया जाने वाला आर्थिक लाभ सब्सिडी कहा जाता है. जैसे एलपीजी सिलिंडर के गैस भराने वाले गरीबों को सरकार सब्सिडी देकर उसे सस्ता कर देती है. यह नकद भी हो सकता है, लेकिन अब ज्यादातर सब्सिडी डीबीटी के द्वारा यानी सीधे लाभार्थी के खाते में डाला जाता है. कंपनियों को सब्सिडी टैक्स छूट के तौर पर दी जाती है ताकि औद्योगिक गतिविधियां बढ़ें और रोजगार पैदा हो.

10.  राजकोषीय नीति (Fiscal Policy) और राजकोषीय घाटा (fiscal deficit): यह एक ऐसी नीति होती है कि जो कि सरकार की आय, सार्वजनिक व्यय (रक्षा, स्वास्थ्य, शिक्षा, बिजली, सड़क आदि), टैक्स की दरों (प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष), सार्वजनिक ऋण, घाटे की वित्त व्यवस्था से सम्बंधित होती है. सरकार की कुल सालाना आमदनी के मुकाबले जब खर्च अधिक होता है तो उसे राजकोषीय घाटा कहते हैं. चूंकि बजटरी घाटा सही तरीके से सरकार के ऋण दायित्वों की जानकारी नही देता है, इसलिए राजकोषीय घाटे की व्यवस्था लाई गई. इसे कुछ लोग वित्तीय घाटा भी कहते हैं.

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11. बजट घाटा (Budgetary deficit): बजट घाटा की स्थिति तब पैदा होती है जब खर्चे, राजस्व से अधिक हो जाते हैं. इसमें सरकार की कर्ज देनदारी शामिल नहीं होती. बजटरी घाटा = कुल प्राप्ति – कुल व्यय.

12. सकल घरेलू उत्पाद (GDP): सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी एक वित्तीय वर्ष में देश की सीमा के भीतर उत्पादित कुल वस्तुओं और सेवाओं का कुल जोड़ होता है. इसे एक तरह से पूरी अर्थव्यवस्था का आकार मानते हैं और इसमें बढ़त की दर को ही अर्थव्यवस्था की तरक्की की दर मानी जाती है. भारत की जीडीपी वृद्ध‍ि दर पिछले वित्त वर्ष में 6.8 फीसदी रही.

13.  समेकित कोष (Consolidated Fund): यह भारत सरकार का वह कोष है जिसमे सरकार की समस्त राजस्व प्राप्तियां, सरकार द्वारा जारी किये गए ट्रेज़री बिल्स और वसूले गए ऋण आदि को शामिल किया जाता हैं .

14. आकस्मिक कोष (Contingency Fund): इस फंड में आकस्मिक व्यय को पूरा करने के लिए एक राशि रखी जाती है. इससे व्यय ऐसे मुद्दों पर किया जाता है जिनको टाला नही जा सकता है लेकिन बाद में संसद से अनुमति लेकर संचित निधि से रुपया लेकर इसमें डाल दिया जाता है. इस फंड पर राज्यों में राज्यपाल और केंद्र के संबंध में राष्ट्रपति का अधिकार रहता है.

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15. राजस्व प्राप्तियां (Revenue Receipts): ऐसी प्राप्तियां जिनके लौटाने का दायित्व सरकार का नही हो या जिनके साथ किसी संपत्ति की बिक्री नही जुड़ी हों, राजस्व प्राप्तियां कहलाती हैं. इन प्राप्तियों के कारण सरकार की देयता (liability) में बढ़त नही होती है. इनको कर राजस्व (इनकम टैक्स, कॉरपोरेट टैक्स, जीएसटी इत्यादि) और गैर-कर राजस्व (ब्याज, फीस, लाभांश) में बांटा जा सकता है.

16 . पूंजीगत प्राप्तियां (Capital Receipts): ऐसी सार्वजनिक प्राप्तियों को पूंजीगत प्राति कहते हैं जिनसे सरकार के देनदारी में बढ़त होती है और सरकार की परिसंपत्तियों में कमी होती है. जैसे देश के अंदर लिया गया कर्ज, विदेश से लिया गया कर्ज, रिज़र्व बैंक से लिया जाने वाला कर्ज आदि.  

17 . राजस्व व्यय (Revenue Expenditure): इसके अन्दर उन खर्चों को रखा जाता है जिससे सरकार की न तो उत्पादन क्षमता का विस्तार होता है और न ही भविष्य के लिए अतिरिक्त आय सृजित होती है | उदाहरण: सरकारी विभागों को चलाने में होने वाला खर्च, सरकारी सब्सिडी, कर्ज पर ब्याज की अदायगी, राज्य सरकारों को अनुदान आदि |

18. पूंजीगत व्यय (Capital Expenditure): सरकार के उन खर्चों को पूंजीगत व्यय के अंतर्गत रखा जाता है जिससे सरकार की संपत्तियों में बढ़त होती है, जैसे सड़क, स्कूल, अस्पताल, किसी पुराने भवन की मरम्मत आदि.

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19. योजनागत व्यय (Planned Expenditure): उस व्यय को योजनागत व्यय कहा जाता है जिससे उत्पादन परिसंपत्ति (production assets) का निर्माण होता है. यह व्यय विभिन्न आर्थिक कल्याणकारी योजनाओं से सम्बंधित होता है, जैसे स्कूल, सड़क, हॉस्प‍िटल का निर्माण आदि.

20. गैर योजनागत व्यय (Non-Plan Expenditure): ऐसा सार्वजनिक व्यय जिससे कि कोई विकास का काम नही होता है, गैर योजनागत व्यय की श्रेणी में गिना जाता है. जैसे रक्षा व्यय, पेंशन, महंगाई भत्ता, बाढ़, सूखा, ओला वृष्टि आदि पर किया गया खर्च आदि. इसके लिए धन की व्यवस्था भारत की संचित निधि से होती है. 

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