
इस साल आजादी की 75वीं वर्षगांठ के मौके पर देशभर में आजादी का अमृत महोत्सव मनाया जा रहा है. इस मौके पर हम आपको बता रहे हैं कि कैसे 75 वर्षों में भारत खाने-पीने के सामान पर अब दूसरे देशों पर ज्यादा निर्भर नहीं रह गया है.
खाद्यान्न के मामले में आत्मनिर्भर हुआ भारत
खाद्यान्न के मामले में भारत की स्थिति कितनी दयनीय थी इसका अनुमान इस किस्से से समझा जा सकता है. साल था 1965 यानी भारत-पाक के बीच युद्ध के बाद देश के आर्थिक हालात कमजोर हो गए थे. ऐसे में भारत में अमेरिकी सरकार के एक अमेरिकी रिसोर्स इकोनॉमिस्ट लीस्टर ब्राउन ने अनुमान लगाया कि भारत में अनाज की भारी कमी होने वाली है.
भारत ने नहीं फैलाए हाथ
अपनी कैलकुलेशन के आधार पर ब्राउन ने अमेरिकी सरकार को उस वक्त तक के सबसे बड़े फूड शिपमेंट के लिए तैयार कर लिया था. लेकिन भारत ने तब अपनी घरेलू जरूरतों को किसी तरह से पूरा कर लिया था. उस वक्त देश को आजाद हुए केवल 18 साल ही हुए थे. लेकिन अब 75 साल बाद भारत खाद्यान्न के मामले में कितना बदला है इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि दुनिया भर के कई देश भारत की बदौलत खाद्यान्न संकट से बचे हुए हैं.
तेजी से बढ़ने वाली इकोनॉमी
आजादी के बाद लगातार कई साल सूखे के अटैक और खाद्यान्न की कमी का सामना वाला भारत अब दुनिया भर के देशों को खाद्यान्न एक्सपोर्ट कर रहा है. दरअसल, बीते 75 बरसों में भारत दुनिया के बेहद गरीब मुल्क से ऊपर उठकर अब दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ने वाली इकोनॉमी बन गया है.
अभी हम दुनिया की 5 बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में शामिल हैं और आने वाले कुछ वर्षों में देश दुनिया के टॉप 3 अर्थव्यवस्थाओं में शुमार होने की तरफ तेजी से बढ़ रहे हैं. लेकिन ये कामयाबी आसानी से नहीं मिली है. ये भारतीयों की कड़ी मेहनत और संघर्ष से मुमकिन हुआ है.
75 साल में कितनी बढ़ी भारत की अर्थव्यवस्था?
आजादी के 75 बरसों में भारत ने हर एक मोर्चे पर तरक्की की है. लेकिन सबसे जरूरी मसला है देश की विकास दर, जिससे रोजगार से लेकर हर तरह की सुख सुविधाएं जुड़ी हुई हैं. आइए देखते हैं पिछले 75 साल में भारत की अर्थव्यवस्था किस तरह से बढ़ी है. ये आंकड़े भारत की तरक्की की कहानी को बता रहे हैं.
1947 में आजादी के वक्त भारत की GDP महज 2.7 लाख करोड़ रुपये की थी और ये दुनिया की GDP के 3 फीसदी से भी कम थी. 75 साल में भारत की GDP 55 गुना बढ़कर करीब 150 लाख करोड़ रुपये हो गई है और दुनिया भर की GDP में इसका हिस्सा 2024 तक 10 फीसदी से ज्यादा होने का अनुमान है. इन 75 वर्षो में भारत की GDP में 3 मौकों को छोड़कर हमेशा ग्रोथ दर्ज की गई है.
यही नहीं औसत ग्रोथ भी लगातार बढ़ती रही है. अगर 1960 से 2021 के जीडीपी ग्रोथ के आंकड़ों पर नजर डालें तो 1966 से पहले ग्रोथ का औसत 4 फीसदी से कम था. वहीं 2015 के बाद से औसत ग्रोथ 6 फीसदी से ज्यादा रही है. अर्थव्यवस्था के 75 साल का सफर तो हमने देख लिए, लेकिन इस बीच इसकी चाल कैसी रही है. ये समझना भी बेहद दिलचस्प है.
कैसी रही अर्थव्यवस्था की चाल
वर्ल्ड बैंक की रिपोर्ट के मुताबिक वक्त बीतने के साथ भारतीय अर्थव्यवस्था लगातार मजबूती होती चली गई है. अर्थव्यवस्था में उतार चढ़ाव के लंबे दौर के बाद 1992 से देश की इकॉनमी में तेजी का ही रुख बना. 1947 से 1980 के बीच अर्थव्यवस्था की ग्रोथ 9 फीसदी से लेकर माइनस 5 फीसदी के दायरे में रही है. यानी इसमें काफी तेज उतार-चढ़ाव देखने को मिला.
1980 से 1991 के दौरान भारतीय अर्थव्यवस्था संभलकर चलती रही और इस बीच में ये एक बार भी शून्य से नीचे नहीं पहुंची और इसने 9 फीसदी से ज्यादा की रिकॉर्ड ग्रोथ भी दर्ज की. 1992 से 2019 तक विकास दर 4 से 8 फीसदी के दायरे में ही बनी रही यानी समय के साथ भारतीय अर्थव्यवस्था में स्थिरता के साथ मजबूती आई.
कहां पहुंचा इंटरनेशनल ट्रेड?
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, 75 साल में लगातार इंटरनेशनल ट्रेड में भारत का हिस्सा बढ़ा है और 2000 के बाद से इसमें और तेजी देखने को मिली.
घट गई गरीबों की संख्या
75 वर्षों में भारत ने तरक्की की रफ्तार को नए स्तर पर पहुंचते देखा है. इस दौरान की सबसे बड़ी उपलब्धि है कि देश में गरीबों की संख्या में भारी कमी आई है. 1947 में भारत की आजादी के वक्त देश की 70 फीसदी जनसंख्या बेहद गरीबी में जी रही थी. 1977 तक ये संख्या घटकर 63 फीसदी पर पहुंच गई. फिर 1991 के सुधारों के साथ देश में पहली बार आधी जनसंख्या गरीबी रेखा से ऊपर पहुंच गई. साल 2011 के आंकड़ों के अनुसार देश में 22.5 फीसदी लोग बेहद गरीबी में रह रहे थे.
कोरोना में बिगड़े हालात
लेबर फोर्स सर्वे 2020-21 के मुताबिक 2021 के आखिर तक गरीबी रेखा से नीचे रहने वालों की संख्या घटकर 18 फीसदी से कम हो गई है. सर्वे के अनुमान वर्ल्ड बैंक और IMF के अनुमानों से ही मेल खा रहे हैं. इन दोनों दिग्गज संस्थानों ने भी देश में गरीबी रेखा से नीचे रहने वालों का अनुमान 20 फीसदी के नीचे दिया है.
UNESCAP की 2017 की रिपोर्ट के मुताबिक 1990 से 2013 के बीच भारत में करीब 17 करोड़ लोग गरीबी रेखा से बाहर निकले थे. हालांकि, कोरोना काल में एक बार फिर से गरीबों की संख्या में इजाफा हुआ था. लेकिन इसके बावजूद UN की रिपोर्ट में माना गया है कि भारत के हालात दूसरे विकासशील देशों से बेहतर रहेंगे.
दुनिया का दवाखाना बनेगा भारत
आजादी के बाद से वैसे तो भारत ने कई मामलों में तरक्की की है. लेकिन इलाज के मामले में देश की तरक्की वाकई काबिलेतारीफ है. अब सामान्य बीमारियों में लोगों को सस्ता और आसान इलाज मिल जाता है. भारतीयों के साथ विदेशियों को भी ये सुविधा मिल रही है. ऐसे में भारत दुनिया का सबसे सस्ता दवाखाना बनने की तैयारी कर रहा है, जिसका सीधा फायदा देश के फार्मा एक्सपोर्ट को होगा.
70 अरब डॉलर पर पहुंचने का अनुमान
हाल ही में आए फार्मा एक्सपोर्ट के आंकड़ों ने भी भारत की इस क्षेत्र में बढ़ती ताकत का सबूत पेश किया है. फार्मा में भारत की तरक्की आगे नई बुलंदियों को चूमने के लिए तैयार है. फार्मा एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल के मुताबिक 2030 तक फार्मा निर्यात में सालाना 5 अरब डॉलर की बढ़ोतरी होगी. 2021-22 में भारत का फार्मा निर्यात 24.47 अरब डॉलर रहा था. इसे 2030 तक 70 अरब डॉलर पर पहुंचने का अनुमान है.
फिलहाल भारत का फार्मा बाजार 47 अरब डॉलर का है. इसमें 22 अरब डॉलर का कारोबार घरेलू स्तर पर होता है. दूसरी तरफ दवा के कच्चे माल के उत्पादन के लिए प्रोडक्शन लिंक्ड स्कीम यानी PLI के बाद 35 API का उत्पादन शुरू किया गया है जो अभी तक भारत में आयात होती थीं.
PLI स्कीम के तहत 53 API की उत्पादन के लिए पहचान की गई है और इसके लिए 32 नए प्लांट लगाए गए हैं. भारत हर साल 2.8 अरब डॉलर का API और दूसरे कच्चे माल का आयात चीन से करता है. वहीं भारत 4.8 अरब डॉलर के API और दवा के दूसरे कच्चे माल का निर्यात भी करता है.
API का उत्पादन होने से भारत फार्मा सेक्टर में आत्मनिर्भर बनेगा. ऐसे में आयुर्वेद का बढ़ता चलन भी भारत के फार्मा सेक्टर को नई ऊंचाई पर ले जाएगा.